
Kitabganj / किताबगंज
February 20, 2025 at 10:09 AM
इस मुल्क में हर आदमी
कम से कम एक केस
सीने में ही लिए मर जाता है।
हर चिता की आग में
एक फ़ाइल जलती है
जिसे किसी मीलॉर्ड ने वक़्त की
तंगी के कारण खोला ही नहीं।
हम सब के सीने इतने भारी हो चुके हैं
कि
कोर्टरूम की कुर्सियां अब
इस मुल्क के लोगों का
वज़न नहीं झेल पातीं।
मेरी आँखें बंद हैं
और एक बदतमीज जज मुझे
डांटे जा रहा है
मुझे पता भी नहीं कि
अपराध क्या है-
खैर उस जज की गाड़ी
मेरे हर अपराध से लंबी है।
मेरे पिता ने कहा था कि
कोर्ट-कचहरी के चक्कर से दूर रहना-
स्टेट के आंतें हैं न्यायालय
जहाँ हर जगह से पीसने के बाद
छोड़ दिया जाता है
ये व्यवस्था हमारा हर दुख
पचा जाती है
और उसका खाद बना
छींट देती है
उन पेड़ों में
जिनकी लकड़ियों से
मीलॉर्ड की कुर्सियां
बनती हैं।
मैं नागरिक नहीं था
मैं था
बस एक पेंडिंग केस।।
(फ़ोटो: अज्ञात)
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