Mufti Touqueer Badar Alqasmi Alazhari
Mufti Touqueer Badar Alqasmi Alazhari
February 17, 2025 at 02:39 AM
https://whatsapp.com/channel/0029VanfrMPCcW4uesYGyc3N 👇👇 _*ध्यानपूर्वक पढें*_ *_मदरसों के महंगे जलसे और शिक्षकों की तनख्वाह में टालमटोल_* प्रश्न: आस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाहि वबरकातुह! मुफ्ती साहब, आजकल मदरसों में महंगे-महंगे जलसे आयोजित किए जा रहे हैं। इसी तरह, कुछ मदरसों में सालभर बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण और विभिन्न कार्यक्रमों का सिलसिला चलता रहता है। लेकिन, इन मदरसों में शिक्षकों की तनख्वाह समय पर नहीं दी जाती। कई बार 3-4 महीने तक उनकी तनख्वाह रोक दी जाती है, और फंड की कमी का बहाना बनाया जाता है, जबकि जलसों और अन्य कार्यक्रमों का सिलसिला जारी रहता है। ऐसे हालात में मजबूर शिक्षक या तो कर्ज लेकर अपना गुजारा करते हैं या फिर मदरसा ही छोड़ देते हैं। कृपया बताएं कि इस मामले में क़ुरआन, हदीस और इस्लामी शरिया क्या कहती है? उत्तर: वअलैकुम अस्सलाम वरहमतुल्लाहि वबरकातुह! इस्लामी शरीयत में मेहनत और मजदूरी का मामला एक बड़ी अमानत और इंसाफ से जुड़ा हुआ है। इस्लाम ने सख्ती से आदेश दिया है कि किसी भी काम करने वाले को उसकी मजदूरी समय पर दी जाए, चाहे वह शिक्षक हो या कोई अन्य कर्मचारी। अगर मदरसों में जलसे, इमारतों का निर्माण और अन्य कार्यक्रमों पर भारी धन खर्च किया जा रहा है, लेकिन शिक्षकों की तनख्वाह समय पर नहीं दी जा रही, और उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि वे या तो कर्ज लें या नौकरी छोड़ दें, तो इस्लाम की नज़र में यह बहुत बड़ी नाइंसाफी, ज़ुल्म, गुनाह-ए-कबीरा (बड़ा पाप) और बहुत बड़ी खियानत (विश्वासघात) है। इस मामले में क़ुरआन और हदीस से प्रमाण: 1) क़ुरआन से प्रमाण: (क) अमानत और इंसाफ का हुक्म: "إِنَّ اللّٰہَ یَاْمُرُكُمْ اَنْ تُؤَدُّوا الْاَمٰنٰتِ اِلٰۤی اَھْلِھَا وَ اِذَا حَكَمْتُمْ بَیْنَ النَّاسِ اَنْ تَحْكُمُوْا بِالْعَدْلِ..." (सूरतुन्निसा: 58) अनुवाद: "निःसंदेह अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतें उनके असल हक़दारों तक पहुंचा दो, और जब लोगों के बीच फैसला करो तो इंसाफ के साथ करो।" ➡ इस आयत से स्पष्ट होता है कि शिक्षकों की तनख्वाह रोकना एक अमानत में खियानत (विश्वासघात) है। (ख) लोगों का हक न खाने की मनाही: "وَلَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُم بَيْنَكُم بِالْبَاطِلِ..." (सूरतुल बक़रा: 188) अनुवाद: "और आपस में एक-दूसरे का माल नाजायज़ तरीके से मत खाओ।" ➡ अगर मदरसों के पास धन होते हुए भी शिक्षकों की तनख्वाह नहीं दी जाती, तो यह नाजायज़ तरीके से उनका हक़ खाने के बराबर है। 2) हदीस से प्रमाण: (क) मजदूरी को समय पर देने का हुक्म: रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: "أَعْطُوا الأَجِيرَ أَجْرَهُ قَبْلَ أَنْ يَجِفَّ عَرَقُهُ" (सुनन इब्ने माजा, हदीस नंबर: 2443) अनुवाद: "मजदूर को उसकी मजदूरी उसका पसीना सूखने से पहले दे दो।" ➡ इस हदीस के मुताबिक़ शिक्षकों की तनख्वाह में देरी करना सीधा इस्लाम की शिक्षा के खिलाफ़ है। (ख) हक़ देने में टालमटोल करने की सख्त मनाही: रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: "مَطْلُ الْغَنِيِّ ظُلْمٌ" (सहीह बुखारी: 2400, सहीह मुस्लिम: 1564) अनुवाद: "संपन्न (धनी) व्यक्ति का टालमटोल करना ज़ुल्म (अत्याचार) है।" ➡ अगर मदरसा धन होने के बावजूद शिक्षकों को समय पर तनख्वाह नहीं दे रहा, तो यह सीधा ज़ुल्म है। (ग) मज़दूरी न देने वाले पर सख्त चेतावनी: रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: "अल्लाह ने तीन लोगों के खिलाफ़ क़यामत के दिन मुकदमा लड़ने का ऐलान किया है, उनमें से एक वह व्यक्ति है जो किसी को मजदूरी पर रखे, उससे पूरा काम ले, लेकिन उसकी मज़दूरी न दे।" (सहीह बुखारी, हदीस नंबर: 2227) ➡ अगर मदरसों के ज़िम्मेदार लोग शिक्षकों से पूरा काम ले रहे हैं, लेकिन तनख्वाह नहीं दे रहे, तो क़यामत के दिन अल्लाह खुद उनके खिलाफ मुकदमा करेगा। फ़िक़्ही हुक्म: علامہ ابن عابدین شامی رحمہ اللہ فرماتے ہیں: "وَيَحْرُمُ الْمَطْلُ فِي الْأُجْرَةِ إِذَا كَانَ صَاحِبُهَا مُحْتَاجًا إِلَيْهَا، وَيَجِبُ تَعْجِيلُهَا لَهُ" (رد المحتار علی الدر المختار، جلد 6، صفحہ 60) अनुवाद: "अगर मजदूर अपनी मजदूरी का जरूरतमंद हो, तो उसमें टालमटोल करना हराम है और उसे जल्दी अदा करना वाजिब (अनिवार्य) है।" ➡ शिक्षकों की तनख्वाह रोकना शरीयत के मुताबिक हराम (निषिद्ध) है। इस्लामी शिक्षण संस्थानों के फ़तवे: दारुल उलूम देवबंद और जामिया बनूरिया जैसी प्रतिष्ठित इस्लामी शिक्षण संस्थाओं के फ़तवों के अनुसार: ✅ अगर मदरसा आर्थिक रूप से सक्षम होते हुए भी शिक्षकों की तनख्वाह रोकता है, तो यह नाजायज़ और हराम है। ✅ अगर जलसे और निर्माण कार्य के लिए पैसे खर्च हो रहे हैं, लेकिन शिक्षकों की तनख्वाह नहीं दी जा रही, तो यह एक बड़ा अत्याचार है। ✅ मदरसा प्रशासन को सबसे पहले शिक्षकों का हक़ अदा करना चाहिए, वरना क़यामत के दिन सख्त हिसाब होगा। निष्कर्ष: 📌 अगर मदरसा प्रशासन के पास पैसा होते हुए भी शिक्षकों की तनख्वाह नहीं दी जा रही, तो यह नाजायज़ और ज़ुल्म है। 📌 मदरसों को सबसे पहले शिक्षकों का हक अदा करना चाहिए, जलसों और निर्माण कार्य बाद में किए जाएं। 📌 यह अमानत में खियानत (विश्वासघात) और गुनाह-ए-कबीरा (बड़ा पाप) है। अल्लाह हमें न्याय और इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार चलने की तौफीक दे। आमीन! _____ (मुफ्ती)तौक़ीर बद्र अल-क़ासिमी अल-अज़हरी (डायरेक्टर: अल-मर्कज़ अल-इल्मी लिल-इफ़्ता वाल-तहक़ीक़, सुपोल, बिहार) (साबिक़ लेक्चरर: अल-महद अल-आली लिल-तदरीब फ़िल-क़ज़ा वल-इफ़्ता, ईमारत ए शरिया फुलवारी शरीफ, पटना, बिहार, इंडिया) 17/02/2025 +918789554895

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