
Mufti Touqueer Badar Alqasmi Alazhari
February 22, 2025 at 09:17 AM
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_*व्यापार और व्यवसाय पर एक विस्तृत और तर्कसंगत मार्गदर्शक लेख*_
*अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहु!*
मुफ्ती साहब, हम कुछ दोस्त शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी के साथ-साथ व्यापार भी करना चाह रहे हैं!
कल यूट्यूब पर इसके बारे में वीडियो सर्च कर रहे थे, तो आपका एक वीडियो भी मिला। वहां से आगे और आपके वीडियो सुने और नंबर वहीं से लिया। मुफ्ती साहब! हमारी आपसे यह प्रार्थना है कि आप व्यापार की अहमियत और इसकी बरकत पर हमारी रहनुमाई करें! इसी के साथ-साथ आपसे यह भी गुज़ारिश है कि एक मुसलमान आज के दौर में किन-किन व्यवसायों को कर सकता है और इस व्यवसाय में उन्हें किन सिद्धांतों का ख्याल रखना चाहिए? वह सब भी बताने की आप ज़हमत करें!
उम्मीद है कि आप हमारी प्रार्थना पर तवज्जोह देंगे।
आपका दीनी भाई अजमल, पुणे, महाराष्ट्र
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*व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाह व बरकातुहु!*
सबसे पहले तो आप और आपके सभी दोस्त, अपने नेक सोच और विचार के लिए मुबारकबाद के मुस्तहक़ हैं। पेशगी मुबारकबाद क़बूल करें!
बिलाशक नौकरी के साथ-साथ व्यापार यह लायक़-ए-तहसीन और क़ाबिल-ए-आफ़रीन है। काश उम्मत-ए-मुस्लिमा का हर एक नौजवान ऐसी ही सोच और फ़िक्र का हामिल और उस पर आमिल होता!!
आपने व्यापार की अहमियत और इसकी बरकत के मुताल्लिक पूछा है, तो व्यापार की अहमियत और बरकत के हवाले से आप यह जान लें कि यह व्यापार महज़ रोज़ी कमाने का ज़रिया नहीं, बल्कि यह एक फन और आर्ट है, व्यापार हिकमत, बसीरत और इस क़ाबिल-ए-सिताइश तजुर्बे का नाम है, जो अपने से वाबस्ता इंसान को मेहनत, सदाक़त, दियानत और बुर्दबारी व आज़िजी का दर्स देता है।
यह वह विभाग है जिसमें रिज़्क की वसअतें व बढ़ोतरी बज़ुबान-ए-रिसालत "तिसअत अशआरुल रिज़्क फिल तिजारह"के मुताबिक छिपी हुई हैं और बरकतें नाज़िल होती हैं। व्यापार करने वाला जब सच्चाई और ईमानदारी को अपना शिआर बनाता है, तो न सिर्फ़ दुनिया में कामयाब होता है, बल्कि आख़िरत में भी बुलंद दरजात पाता है।
यही वजह है कि हमारे आख़िरी नबी-ए-करीम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ख़ुद भी व्यापार फरमाया और सहाबा-ए-किराम रज़वानुल्लाहि अलैहिम अजमईन की भी अमली और फ़िक्री तरबियत की! सच्चाई और दियानत की बदौलत आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ख़ुद "सादिक़" और "अमीन" के लक़ब से मशहूर हुए! तजुर्बा शाहिद है हलाल व्यापार इंसान को ख़ुददारी सिखाता है और दूसरों के मुहताजी से बचाता है। एक ख़ुदा तरस ईमानदार ताजिर की कमाई में जो सुकून, इत्मीनान और रब की रज़ा छिपी होती है, वह दुनिया की किसी और दौलत में नहीं मिलती। व्यापार में अगर नीयत साफ़ हो, मामला दुरुस्त हो और दिल में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा हो, तो तारीख़ के अवराक़ गवाह हैं कि यही काम दुनियावी तरक्की, सियासी उरूज और उख़रवी फ़लाह का ज़ीना भी बन जाता है।
इस्लाम में कारोबार को एक हलाल ज़रिया-ए-मआश समझा गया है बशर्ते कि वह शरीअत के उसूलों के मुताबिक़ हो। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक सवाल के जवाब में फरमाया:
"अन्न अबाया बिन रिफाअ बिन राफ़े बिन ख़दीज, अन जद्दिहि राफ़े बिन ख़दीज, क़ाल: क़ीला: या रसूलल्लाह, अय्युल कस्ब अतयब? क़ाल: "अमलुर रजुल बियदिहि व कुल्लु बैइन मबरूर"।" (मसनद अहमद त अल-रिसाला 28/502)
कस्ब-ए-मआश के ज़राए में से व्यापार और मेहनत को सबसे अफ़ज़ल और अतयब ज़रिया-ए-मआश करार दिया गया है, मंदरजा बाला हदीस में हज़रत राफ़े बिन ख़दीज (रज़ियल्लाहु अन्हु) फ़रमाते हैं कि रसूल-ए-अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से दरयाफ़्त किया गया कि कौन सी कमाई हलाल और तय्यब है? आपने इरशाद फरमाया: "यानी इंसान के हाथ की मज़दूरी और हर सच्ची तिजारत बैइ व शिरा (जिसमें झूठ और फ़रेब न हो)।"
मज़ीद आगे आपका यह सवाल कि:
*मुसलमान किन शोबों में कारोबार कर सकते हैं?*
तो इसका वाज़ेह जवाब यह है कि एक मुसलमान हर वह कारोबार कर सकता है और करना चाहिए जो:
१.हलाल मसनूआत से मुताल्लिक हो।
२.किसी हराम शय या अमल पर मुश्तमिल न हो।
३.इंसानियत और मुल्क व मिल्लत के लिए नुक़सानदेह न हो।
४.झूठ, धोखाधड़ी और सूद से पाक हो।
वज़ाहत की ग़रज़ से
*आज के दौर में हलाल कारोबार की कुछ मिसालें भी पेश की जा रही हैं:*
1.मार्केट वग़ैरह में ऑफ़लाइन दुकान या स्टोर डालकर तिजारत (ख़रीद और फ़रोख़्त)
जैसे कपड़े, जूते, किताबें, इलेक्ट्रॉनिक्स, घरेलू सामान, राशन वग़ैरह की ख़रीद और फ़रोख़्त।
2.घर बैठे या ऑफ़िस से ऑनलाइन स्टोर्स पर ख़िदमात और मसनूआत की फ़राहमी (वेबसाइट और सोशल साइट्स और पेजेज़ वग़ैरह पर, बशर्ते कि मसनूआत और ख़िदमात हलाल हों)।
3.ख़िदमात (सर्विसेज़) आप स्कूल या ऑफ़िस लेकर वहां से तालीम, टेक्निकल तरबियत, मशवरा (कंसल्टेंसी) वग़ैरह का काम करके अपना बिज़नेस शुरू कर सकते हैं और इसे बढ़ाकर बड़ा कर सकते हैं। या हलाल टूरिज़्म, हज और उमरह वग़ैरह की सुविधाएं फ़राहम कर सकते हैं!
4.ज़रई कारोबार (एग्रीकल्चर और फ़ार्मिंग) जैसे फ़सलें उगाना, हलाल जानवरों जैसे मुर्गी, बकरी वग़ैरह की फ़ार्मिंग करना, शहद या दूध की पैदावार वग़ैरह!
5.टेक्नोलॉजी और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स जैसे मोबाइल ऐप्स बनाना, वेब डेवलपमेंट (बशर्ते कि इसमें मवाद हलाल और नफ़ा बख़्श हो)। यूट्यूब चैनल (जायज़ और हलाल मवाद की तख़लीक़ और तालीम पर मबनी चैनल)।
6.रियल एस्टेट (जायदाद का कारोबार) जैसे ज़मीन या मकान की ख़रीद और फ़रोख़्त बशर्ते कि सूदी मामलात से बचा जाए।
7.दस्तकारी और हुनर (आर्ट एंड क्राफ़्ट) पर मबनी कारोबार जैसे टेलरिंग, लकड़ी या धात का काम, आर्ट और डिज़ाइन (जो इस्लामी हुदूद के अंदर हो)।
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जहां तक उसूलों की बात है तो याद रखें कि कारोबार करते वक़्त एक मुसलमान को मंदरजा-ज़ैल उसूलों का हर हाल में ख़्याल रखना चाहिए! क्योंकि दीन-ए-इस्लाम ने कारोबार में कुछ बुनियादी उसूल बताए हैं, जिन पर अमल करना ज़रूरी है:
1.हलाल और हराम की पहचान:
कुरआन मुकद्दस में हिदायत है:
"या अय्युहल्लज़ीना आमनू कुलू मिन तय्यिबाति मा रज़क़नाकुम" (अल-बक़रा: 172)
यानी "ऐ ईमान वालो! जो कुछ हमने तुम्हें दिया है, उसमें से पाक चीज़ें खाओ।"
लिहाज़ा जो भी कारोबार हराम अशयाए (शराब, ख़ंज़ीर, सूदी निज़ाम और फ़रेब व जालसाज़ी) से मुताल्लिक हो, उससे बचना फ़र्ज़ है।
2.सूद से इज्तिनाब:
कुरआन में सूद के बारे में सख़्त वईद आई है:
"व अहल्लल्लाहुल बैइ व हर्रमर रिबा" (अल-बक़रा: 275)
यानी "अल्लाह ने तिजारत को हलाल और सूद को हराम करार दिया है।"
लिहाज़ा बैंक या फ़ाइनेंसिंग के सूदी तरीक़ों से बचना वाजिब है, हां जहां ख़ुदा तरस उलमा और माहिरीन की निगरानी में इस्लामी बैंकिंग या मुज़ारबा का तरीक़ा राइज है तो वहां वह अपनाया जा सकता है।
3.ईमानदारी और दियानतदारी:
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
"अत-ताजिरुस सदूक़ुल अमीन मअन नबिय्यीन वस सिद्दीक़ीन वश शुहदा" (तिर्मिज़ी, हदीस नंबर 1209)
यानी "ईमानदार ताजिर क़ियामत के दिन अंबिया, सिद्दीक़ीन और शुहदा के साथ होगा।"
लिहाज़ा सामान और मामलात में झूठ बोलना, धोखा देना या चीज़ों के नुक़्स और ऐब को छिपाना यह मुकम्मल ममनू और हराम है।
4.मिलावट और धोखाधड़ी से इज्तिनाब:
हदीस में आया है:
"मन ग़श्श फ़लैस मिन्ना" (सहीह मुस्लिम 146)
यानी "जिसने धोखा दिया वह हम में से नहीं है।"
लिहाज़ा ग़ल्ले और दूसरे सामान में मिलावट करना, वज़न में कमी या मेयार में धोखा देना यह हराम और सख़्त गुनाह है।
5.मुआहिदे की पाबंदी:
कुरआन में ताकीद कर दी गई है:
"या अय्युहल्लज़ीना आमनू औफ़ू बिल उक़ूद" (अल-माइदा: 1)
यानी "ऐ ईमान वालो! अपने अहदों को पूरा करो।"
लिहाज़ा डील करते वक़्त डिलीवरी और पैसे ट्रांसफ़र और दूसरे डॉक्यूमेंट्स वग़ैरह की हवालगी के तय शुदा वक़्त और मुक़र्ररा दिन और तारीख़ का पास और लिहाज़ रखना वाजिब है।
6.काम के वक़्त नमाज़ और दीनी फ़राइज़ की पाबंदी:
कुरआन में साफ़-साफ़ हुक्म है:
"व मा ख़लक़तुल जिन्ना वल इनस इल्ला लियाबुदून"
यानी "हमने जिन्न और इंसान को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिए पैदा किया है।"
लिहाज़ा एक मुसलमान को इस बात का भरपूर ख़्याल रखना है कि कारोबार नमाज़ या किसी दीनी फ़राइज़ में रुकावट हरगिज़ न बने, नमाज़ हर बालिग़ मुसलमान मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है। इसे न भूलें!
7.हलाल कमाई में बरकत का यक़ीन:
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
"इन्नल्लाहा तय्यिबुन ला यक़बलु इल्ला तय्यिबा" (सहीह मुस्लिम 539)
यानी "बेशक अल्लाह पाक है और पाक चीज़ ही क़बूल करता है।"
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_*ख़ुलासा-ए-कलाम:*_
1.मुसलमानों के लिए लाज़िम है कि वह कारोबार में नीयत और अमल दुरुस्त रखें और ज़राए आमदनी के साथ-साथ इसे ख़िदमत-ए-इंसानियत का ज़रिया भी जानें!
2.हलाल ज़राए को अपनाएं और हर क़िस्म के हराम अमल और फ़ेल, सूद और धोखाधड़ी से बचें! इसके लिए मंदरजा बाला सारी वज़ाहत को सामने रखें!
3.हलाल कमाई में भले बिज़ाहिर कम मुनाफ़ा हो और मेहनत ज़्यादा हो, मगर इसमें दुनिया और आख़िरत की बरकतें होती हैं, इसका यक़ीन रखें और अपनी ज़िंदगी में इसे महसूस भी करें!
याद रखें आज भी मेहनत से घरों में पाले जाने वाले देसी मुर्ग़ और परिंदे भले वक़्त लेते हैं, ताहम वेद हकीम से लेकर आम आवाम तक हर एक की निगाह में उसी की अहमियत, क़द्र और क़ीमत और अफ़ादियत मुसलम है, जबकि फ़ौरी तौर पर मुहैया हो जाने वाले फ़ार्मी मुर्ग़, सेहत से लेकर अपनी क़ीमत तक किस मेयार के होते हैं, इसे भी सब जानते हैं! मज़ीद बताने की कुछ ज़रूरत नहीं!
फ़क़त वस्सलाम।
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दुआओं में याद रखें!
आपका ख़ैर-अंदेश,
तौक़ीर बद्र अल-क़ासिमी अल-अज़हरी,
डायरेक्टर, अल-मर्कज़ अल-इल्मी लिल इफ़्ता वल तहक़ीक़,
सुपौल बिरौल, दरभंगा, बिहार,
साबिक़ लेक्चरर, अल-महद अल-आली लित-तदरीब फिल क़ज़ा वल इफ़्ता,
इमारत-ए-शरईया, फुलवारी शरीफ, पटना, बिहार, इंडिया।
22/02/2025
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