
Mufti Touqueer Badar Alqasmi Alazhari
February 24, 2025 at 04:39 AM
**नमाज़ में सजदा-ए-सहो कब और क्यों?**
**अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहु!**
मुफ्ती साहब, हमारे यहां अस्र की नमाज़ हो रही थी। जो साहब नमाज़ पढ़ा रहे थे, वे तीसरी रकअत पर बैठ गए। मुक़्तदियों ने उनके खड़े होने का इंतज़ार किया, लेकिन जब वे खुद नहीं उठे, तो लक़्मा (संकेत) दिया गया। फिर वे उठे और आखिर में बिना सजदा-ए-सहो किए उनकी नमाज़ पूरी हो गई। नमाज़ के बाद जब उनसे पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि हमने बैठकर कुछ पढ़ा ही नहीं था, इसलिए सजदा-ए-सहो नहीं किया।
अब यह बताया जाए कि इस स्थिति में सजदा-ए-सहो वाजिब और ज़रूरी था या नहीं? बिना सजदा-ए-सहो किए नमाज़ पढ़ ली, तो क्या वह पूरी अदा हो गई या दोबारा पढ़नी होगी? और यह भी बताने की कृपा करें कि ऐसी स्थिति में सजदा-ए-सहो ही क्यों किया जाता है? कृपया हदीस और फ़िक़्ह से जवाब दें।
**डॉ. अबुल हयात वगैरह, सोपोल बाज़ार, बैरोल, दरभंगा, बिहार**
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**व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाह व बरकातुहु!**
नमाज़ मेराज में मिला एक अज़ीम उश-शान तोहफ़ा है, दीन का अहम और नुमायाँ स्तंभ है, ईमान की भरपूर शहादत है और कुफ़्र के खिलाफ़ ज़बरदस्त अलामत है।
इसलिए, इसके बारे में क़ुरान करीम में अदायगी से संबंधित ताकीद और हदीस में तरीक़ा-ए-अदा की मुकम्मल तसरीह और तस्वीर मौजूद है।
प्रस्तुत सवाल का जवाब यह है कि जब इमाम साहब अस्र की नमाज़ में तीसरी रकअत पर इतनी देर बैठ गए कि लक़्मा देने की नौबत आ गई, अगर यह एक रुक्न (तीन तस्बीह के बराबर) के बराबर हुआ, तो भले ही उन्होंने तीसरी रकअत में बैठकर कुछ नहीं पढ़ा, फिर भी उन्हें सजदा-ए-सहो करना वाजिब था। अगर उन्होंने सजदा-ए-सहो नहीं किया, तो नमाज़ नाकिस (अधूरी) अदा हुई। वक़्त रहते इस नमाज़ को दोहराना वाजिब है।
अब यह सवाल कि सजदा-ए-सहो ही क्यों? तो ज़ाहिर है कि यही हुक्म हमें आक़ा अलैहिस्सलाम व तस्लीम की तरफ़ से मिला है, इसलिए इसे बजा लाना है। हाँ, हदीस नबवी में यह भी दिलनशीं और माकूल वज़ाहत मिलती है कि "यह शैतान को ज़लील करने के लिए होता है।"
ज़ाहिर सी बात है, नमाज़ जैसी महत्वपूर्ण इबादत में भूल-चूक और ज़हन का इधर-उधर भटकना और फिर इसका असर नमाज़ की नज़्म व तरतीब में खलल की सूरत में ज़ाहिर होना, शैतानी वसवसे का ही नतीजा होता है। और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के सामने हुक्म-ए-इलाही के बावजूद सजदे के मुनकिर शैतान लईन इब्लीस को, उनकी औलाद इब्ने आदम के पास सजदे से बेहतर ज़लील करने का और क्या रास्ता हो सकता है? इसलिए सजदा-ए-सहो को रखा गया है!!
यह सारी बातें आप हदीस तय्यिबा में देख सकते हैं!
**सहीह बुख़ारी में है:**
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें ज़ुहर की नमाज़ पढ़ाई। आप दो रकअतों के बाद क़अदा करना भूल गए और खड़े हो गए। लोग भी आपके साथ खड़े हो गए। जब आपकी नमाज़ पूरी करने का वक़्त हुआ, तो लोग सलाम का इंतज़ार कर रहे थे। तो आपने तकबीर (अल्लाहु अकबर) कही और सलाम फेरने से पहले दो सजदे (सहो के) किए, फिर सलाम फेरा। (सहीह बुख़ारी: 6670)
**इसी तरह मुस्लिम शरीफ़ में है:**
जब तुम में से किसी को नमाज़ में शक हो कि उसने तीन रकअतें पढ़ी हैं या चार, तो शक को छोड़ दे और जिस पर यक़ीन हो, उस पर अमल करे। फिर सलाम से पहले दो सजदे करे। अगर उसने पाँच रकअतें पढ़ ली हों, तो यह उसकी नमाज़ मुकम्मल कर देंगे। और अगर चार ही मुकम्मल की हों, तो यह (दो सजदे) शैतान को ज़लील करने के लिए होंगे। (सहीह मुस्लिम: 571)
**फ़ुक़हा-ए-किराम ने भी इन उसूल नबवी की रोशनी में लिखा है:**
"और जान लो कि जब शक इतना गहरा हो कि एक रुक्न के बराबर वक़्त लग जाए और शक की हालत में कोई क़िराअत या तस्बीह न पढ़ी गई हो, तो सजदा-ए-सहो वाजिब हो जाता है।" (तनवीरुल अब्सार अला अश-शामी, किताबुस्सलाह, बाब सजूदिस्सहो, 2/93)
**यह मेरी राय है और सही ज्ञान अल्लाह के पास है।**
**तौक़ीर बद्रुल क़ासिमी अल-अज़हरी**
डायरेक्टर, अल-मर्कज़ुल इल्मी लिल इफ्ता व तहक़ीक़, सोपोल, बैरोल, दरभंगा, बिहार
साबिक लेक्चरर, अल-माहदुल आली लित-तदरीब फिल क़ज़ा वल इफ्ता, फुलवारी शरीफ, पटना, बिहार, इंडिया
24/02/2025
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