ISKCON BHOPAL BYC
March 1, 2025 at 04:04 AM
शुद्ध भक्तों की संगति में भगवान की लीलाओं और कार्यों की चर्चा कानों और हृदय को बहुत ही सुखद और संतुष्टि देने वाली होती है। इस प्रकार के ज्ञान की साधना करने से व्यक्ति धीरे-धीरे मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ता है, और उसके बाद वह मुक्त हो जाता है, और उसका आकर्षण स्थिर हो जाता है। तब वास्तविक भक्ति और भक्ति सेवा शुरू होती है। कृष्णभावनाभावित और भक्तिपूर्वक सेवा में उन्नति की प्रक्रिया यह है कि इसका पहला बिंदु यह है व्यक्ति को उन व्यक्तियों की संगति की खोज करनी चाहिए जो कृष्णभावनाभावित हैं और भक्तिपूर्वक सेवा में संलग्न हैं। बिना ऐसी संगति के कोई भी उन्नति नहीं कर सकता। केवल सैद्धांतिक ज्ञान या अध्ययन से कोई भी उल्लेखनीय प्रगति नहीं हो सकती। व्यक्ति को भौतिकवादी व्यक्तियों की संगति छोड़कर भक्तों की संगति की खोज करनी चाहिए, क्योंकि भक्तों की संगति के बिना कोई भगवान की गतिविधियों को समझ नहीं सकता। सामान्यतः लोग निर्गुण तत्त्व के बारे में आश्वस्त होते हैं। क्योंकि वे भक्तों के साथ नहीं रहते, वे यह नहीं समझ पाते कि निर्गुण तत्त्व एक व्यक्ति हो सकता है और उसकी व्यक्तिगत गतिविधियाँ हो सकती हैं। यह एक बहुत कठिन विषय है, और जब तक किसी को निर्गुण तत्त्व की व्यक्तिगत समझ नहीं होती, तब तक भक्ति का कोई अर्थ नहीं होता। सेवा या भक्ति किसी अवैयक्तिक वस्तु की नहीं की जा सकती। सेवा किसी व्यक्ति की ही की जानी चाहिए। भगवान् के व्यक्तिगत कार्यकलापों को समझने के लिए भक्तों की संगति करनी पड़ती है और ऐसी संगति से जब कोई भगवान् के दिव्य कार्यकलापों पर विचार करता है तथा उन्हें समझने का प्रयास करता है, तो मुक्ति का मार्ग खुल जाता है और वह मुक्त हो जाता है।
श्रीमद् भागवतम् 3.25.25 के तात्पर्य से
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