
MUFTI ABDUSSUBHAN MISBAHI
March 1, 2025 at 11:29 AM
*रमज़ान में अल्लाह से माँगने वाला महरूम नहीं रहता।*
सहाबी-ए-रसूल हज़रत हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:रमज़ान में जो शख़्स दिल से अल्लाह का ज़िक्र करे, उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं, और जो ख़ालिस नीयत से दुआ मांगे, अल्लाह तआला से सवाल करे तो उसकी झोली भर दी जाती है।" (अत्-तऱगीब वत्-तऱहीब, 2/122)
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*शरह*
रमज़ानुल मुबारक एक ऐसा महीना है जो अल्लाह तआला की बेपनाह रहमतों, बरकतों और मग़फ़िरत से भरपूर है। यह महीना सिर्फ़ इबादत और रोज़े रखने के लिए नहीं, बल्कि यह अल्लाह से क़ुरबत हासिल करने, गुनाहों से निजात पाने और रूहानी तरक़्क़ी का एक सुनहरा मौक़ा भी है।
आज की तेज़ रफ़्तार दुनिया में, जहाँ मादी ख़्वाहिशात, सोशल मीडिया और दुनियावी मसरूफ़ियात ने इंसान को अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल कर दिया है, रमज़ान हमें रोककर अपनी रूहानी हालत पर ग़ौर करने, दिल को पाक करने और अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ मुतवज्ज़ह होने का मौक़ा फ़राहम करता है। इस महीने में अल्लाह का ज़िक्र करना और उससे माँगना, आम दिनों के मुक़ाबले में ज़्यादा असर रखता है, क्योंकि अल्लाह तआला की रहमतें जोश में होती हैं और वह अपने बंदों को माफ़ करने के बहाने तलाशता है।
इसी वजह से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रमज़ान में अल्लाह के ज़िक्र और दुआ की ख़ास ताकीद फ़रमाई है। आपने इस हक़ीक़त को निहायत जामिअ अंदाज़ में बयान फ़रमाया कि: "जो रमज़ान में अल्लाह का ज़िक्र करता है, वह बख़्श दिया जाता है, और जो उससे माँगता है, वह महरूम नहीं रहता।"
यह हदीस हमें इस बात का शुऊर देती है कि रमज़ान महज़ इबादतों का महीना नहीं, बल्कि एक रूहानी टर्निंग पॉइंट है, जहाँ से हम अपनी ज़िंदगी को गुनाहों से पाक करके नेकी के रास्ते पर गामज़न कर सकते हैं। इस हदीस की रौशनी में हम समझ सकते हैं कि रमज़ान में अल्लाह के ज़िक्र और दुआ की कितनी बड़ी फ़ज़ीलत है और किस तरह हम इसे अपनी अमली ज़िंदगी में ला सकते हैं।
यह हदीस-ए-मुबारक रमज़ानुल मुबारक की अज़मत और अल्लाह तआला के ख़ास करम को बयान कर रही है और ज़िक्र-ए-इलाही और दुआ की ख़ुसूसी अहमियत को वाज़ेह करती है। आज के दौर में, जहाँ लोग मुख्तलिफ़ मसाइल, ज़ेहनी दबाव और रूहानी कमज़ोरियों का शिकार हैं, यह हदीस हमारे लिए एक उम्मीद की किरण है।
इसके पैग़ाम को गहराई से समझने के लिए, हम इसकी अहमियत और अफ़ादियत को चंद नुक्तों में तक़सीम कर सकते हैं:
1. *रमज़ान: गुनाहों की माफ़ी का महीना*
रमज़ान सिर्फ़ रोज़े रखने का नाम नहीं, बल्कि यह एक Refresh Button है, जो हमारे गुनाहों को मिटाने और हमें एक नई रूहानी ज़िंदगी देने का ज़रिया बनता है। अगर कोई शख़्स गुनाहों की दलदल में फँसा हुआ है, तो रमज़ान में अल्लाह के ज़िक्र से वह अपने गुनाहों को धो सकता है। रसूलुल्लाह ने वाज़ेह फ़रमाया कि जो शख़्स रमज़ान में अल्लाह को याद करे, उसका ज़िक्र करे तो वह बख़्श दिया जाता है। यानी यह महीना अल्लाह की मग़फ़िरत हासिल करने का सुनहरा मौक़ा है। आम दिनों में भी ज़िक्र-ए-इलाही की बड़ी फ़ज़ीलत है, मगर रमज़ान में इसका असर कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए जो शख़्स अल्लाह को याद करता है, इस्तिग़फ़ार करता है और उसकी बड़ाई बयान करता है, उसके गुनाह मिटा दिए जाते हैं।
*आज के दौर में फ़ायदा:*
✔ अगर कोई शख़्स गुज़िश्ता ज़िंदगी में गुनाहों में मुब्तला रहा है, तो रमज़ान में ज़िक्र के ज़रिए अपनी ज़िंदगी को पाक बना सकता है।
✔ जो लोग अपने दिल में बे-सुकूनी और मायूसी महसूस करते हैं, वे अल्लाह के ज़िक्र से हक़ीक़ी रूहानी इत्मिनान हासिल कर सकते हैं।
2. *अल्लाह का ज़िक्र: एक ताक़तवर थेरेपी*
आजकल स्ट्रेस, एंग्ज़ाइटी और डिप्रेशन आम मसाइल हैं। लोग महँगी थेरेपी और दवाइयों की तरफ़ भागते हैं, जबकि अल्लाह के ज़िक्र से दिलों को वह सुकून मिल सकता है जो कोई दवा नहीं दे सकती। इस हदीस में ज़िक्र-ए-इलाही की क़ुव्वत को वाज़ेह किया गया है कि जो भी रमज़ान में अल्लाह को याद करता है, उसके लिए मग़फ़िरत तय है।
3. *दुआ: एक कभी न ख़ाली होने वाली झोली*
इंसान अक्सर इस ख़ौफ़ में मुब्तिला होता है कि उसकी दुआएँ क़बूल नहीं हो रहीं। लेकिन इस हदीस में रसूलुल्लाह ने 100% गारंटी दी है कि रमज़ान में जो भी अल्लाह से माँगेगा, वह ख़ाली हाथ नहीं लौटेगा।
*आज के दौर में फ़ायदा:*
अगर कोई शख़्स ज़िंदगी में किसी मुश्किल, बीमारी, माली परेशानी या किसी भी उलझन का शिकार हो, तो रमज़ान बेहतरीन मौक़ा है कि वह अल्लाह के सामने झुककर दुआ करे और उसके दर से ख़ैर माँगे।
जो नौजवान बेहतर करियर, दीन-ओ-दुनिया की कामयाबी चाहते हैं, वे रमज़ान में अल्लाह से अपनी मंज़िलें आसान करने की दुआ माँग सकते हैं।
4. *इस हदीस पर अमल कैसे करें?*
रोज़ाना कम से कम 10 मिनट "ला इलाहा इल्लल्लाह", "अस्तग़फिरुल्लाह", और "सुब्हानल्लाह वा बिहम्दिही, सुब्हानल्लाहिल अज़ीम" का ज़िक्र करें।
सोशल मीडिया पर वक़्त ज़ाया करने के बजाय क़ुरआन की तिलावत और ज़िक्र में वक़्त लगाएँ।
हर सहरी और इफ़्तार के वक़्त, अल्लाह से ख़ालिस दुआ करें, क्योंकि यह क़बूलियत का वक़्त होता है।
अपने मोबाइल में ज़िक्र और दुआ की याद दिलाने के लिए Reminder लगाएँ ताकि दिन भर अल्लाह की याद में रहें।
5. *रमज़ान: ज़िंदगी बदलने का मौक़ा*
यह हदीस हमें रमज़ान की असली रूह को समझने का मौक़ा देती है। अगर हम चाहते हैं कि हमारी ज़िंदगी में मुसीबतें दूर हों, हमारा रिश्ता अल्लाह से मज़बूत हो, और हम कामयाब ज़िंदगी गुज़ारें, तो रमज़ान हमें वह मौक़ा फ़राहम करता है।
*जदीद दौर में फ़ायदा:*
आधुनिक दौर में सोशल मीडिया और दुनियावी मशगूलियत ने हमें ज़िक्र और दुआ से ग़ाफ़िल कर दिया है, मगर रमज़ान हमें मौक़ा देता है कि हम अपनी रूहानी तरक़्क़ी पर काम करें। रोज़ाना एक मुक़र्रर वक़्त अल्लाह के ज़िक्र और दुआ के लिए निकालने से हमारा दिल नूरानी और ज़िंदगी बरकतों से भरपूर हो सकती है।
6. *ज़िक्र-ए-इलाही: ज़ेहनी सुकून और रूहानी ताक़त*
साइंस भी इस बात को मानती है कि Meditation और Positive Thinking ज़ेहनी सुकून का ज़रिया बनते हैं। मगर इस्लाम हमें इससे भी ज़्यादा ताक़तवर नुस्ख़ा देता है, जो अल्लाह का ज़िक्र है।
क़ुरआन में फ़रमाया गया:
"ख़बरदार! अल्लाह के ज़िक्र से ही दिलों को सुकून मिलता है।"(सुरह अर-रअद: 28)
*आज के दौर में फ़ायदा:*
जो लोग डिप्रेशन, एंग्ज़ाइटी, या ज़ेहनी दबाव का शिकार हैं, उनके लिए अल्लाह के ज़िक्र से बेहतर कोई दवा नहीं।
दुनियावी मुश्किलात का हल सिर्फ़ मादी ज़राए (Material Means) नहीं, बल्कि अल्लाह पर भरोसा और दुआ ही सबसे बड़ा सहारा है।
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*नतीजा: रमज़ान को ज़ाया न करें!*
मालूम हुआ कि रमज़ान में अल्लाह को याद करने वाला महरूम नहीं रहता, बल्कि अल्लाह की रहमत और मग़फ़िरत उसके नसीब में लिखी जाती है।
इस मुबारक महीने को ग़नीमत जानें, ज़िक्र-ए-इलाही को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाएँ और दिल की सच्चाई से अल्लाह से माँगें।
✅ ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह का ज़िक्र करें।
✅ हर नमाज़ के बाद दुआ की आदत बनाएँ।
✅ सहरी और इफ़्तार के वक़्त अल्लाह से माँगें।
✅ अपनी दुआओं में अपने लिए, अपने वालिदैन के लिए, और पूरी उम्मत के लिए ख़ैर तलब करें।
अगर हम इन बातों पर अमल करें, तो रमज़ान-उल-मुबारक हमारे लिए मग़फ़िरत का ज़रिया बनेगा और हमारी ज़िंदगी बरकतों से भर जाएगी, इंशाअल्लाह!
अल्लाह हमें उन लोगों में शामिल करे जिनके लिए यह रमज़ान गुनाहों से पाक होने का ज़रिया बन जाए, आमीन!