
MUFTI ABDUSSUBHAN MISBAHI
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About MUFTI ABDUSSUBHAN MISBAHI
مدرس:– جامعہ صمدیہ دار الخیر پھپھوند شریف،ضلع:اوریا، اتر پردیش– بھارت– علمی، فنی، فکری اور عملی جہات میں تحریر و بیان، قرطاس و قلم اور سیاست سے مستفید و مستفیض اور مستنیر و بہرہ ور ہونے کے لیے ہمارے واٹس ایپ چینل: (مفتی عبد السبحان مصباحی) (MUFTI ABDUSSUBHAN MISBAHI) کو فالو کریں، ہماری گفتگو کا محور یہ اشعار رہیں گے: *قہاّری و غفاّری و قدّوسی و جبروت* *یہ چار عناصر ہوں تو بنتا ہے مسلمان* *یہ راز کسی کو نہیں معلوم کہ مومن* *قاری نظر آتا ہے، حقیقت میں ہے قُرآن!* Contact number: 0 9808170357
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*📚 आज की मेहनत, कल की आज़ादी 🔓* अगर आज 6 घंटे दिल लगाकर पढ़ लोगे, तो शायद कल 13 घंटे की मज़दूरी से बच सकोगे। *याद रखो!* पढ़ाई कोई बोझ नहीं, बल्कि आज़ादी की चाबी है। यह तुम्हें थकावट से नहीं, ठोकरों से बचाती है। यह सिर्फ इम्तिहान नहीं पास कराती, बल्कि ज़िन्दगी जीतना सिखाती है। 📖 तो उठो, संभलो, और क़लम को हथियार बनाओ! क्योंकि इल्म ही वो ताक़त है जो तक़दीर बदल सकती है।

*📚 آج کی محنت، کل کی آزادی* 🔓 آج اگر 6 گھنٹے دل لگا کر پڑھ لو تو کل شاید 13 گھنٹے کی مزدوری سے بچ سکو! یاد رکھو! پڑھائی کوئی بوجھ نہیں ہے، بلکہ آزادی کی چابی ہے۔ یہ تمہیں تھکن سے نہیں، ٹھوکروں سے بچاتی ہے۔ یہ صرف امتحان نہیں پاس کراتی، بلکہ زندگی جیتنا سکھاتی ہے۔ 📖 تو اُٹھو، سنبھلو، اور قلم کو ہتھیار بناؤ! کیونکہ علم ہی وہ طاقت ہے جو تقدیر بدل سکتی ہے۔

عوام میں جو مشہور ہے کہ گھٹنایااور ستر کھلنے یا اپنا یاپرایا ستر دیکھنے سے وُضو جاتا رہتا ہے محض بے اصل بات ہے۔ ہاں وُضو کے آداب سے ہے کہ ناف سے زانو کے نیچے تک سب ستر چھپا ہو بلکہ استنجے کے بعد فوراً ہی چھپا لینا چاہیئے کہ بغیر ضرورت ستر کھلا رہنا منع ہے اور دوسروں کے سامنے ستر کھولنا حرام ہے۔

*بسم اللہ پڑھ کر وضو کرنے کی فضیلت* ـــــــــــــــــــــــــــــــ عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ مَسْعودٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: إذا تطَهرَ أحدُكم فليذكرِ اسمَ اللَّهَ، فإنَّهُ يطَهِّرُ جسدَه كلَّهُ، وإن لَم يذكرِ أحدُكم اسمَ اللَّهِ، فإنه لا يطهِّرُ إلّا ما مرَّ عليهِ الماءُ“• (الدارقطني، کتاب الطھارة، باب التسمية علی الوضوء، حدیث نمبر:238، مطبع القاہرہ، ۱/۷۳) ــــــــــــــــــــــــــــــــــــ حضرتِ عبد الله بن مسعود رضی اللہ عنہما بیان کرتے ہیں کہ رسول اﷲﷺنے ارشاد فرمایا: جس نے بسم اللہ کہہ کر وُضو کیا سر سے پاؤں تک اس کا سارا بدن پاک ہو گیا اور جس نے بغیر بسم اللہ وُضو کیا اس کا اتنا ہی بدن پاک ہوگا جتنے پر پانی گزرا۔ ــــــــــــــــــــــــــــــــــــ جب انسان پانی سے وضو کرتا ہے تو اس کا جسم صاف ہوتا ہے، لیکن جب وہ وضو سے پہلے ”بسم اللہ“ کہتا ہے، تو اس کی روح بھی وضو کے پانی کے ساتھ دھلنے لگتی ہے۔ یہ محض ایک شرعی عمل نہیں، بلکہ ایک روحانی، نفسیاتی، طبی، اور فکری طہارت ہے۔ جس میں بندہ صرف اعضا نہیں دھوتا بلکہ نیت، شعور، اور دل کی سطح تک خود کو تازہ اور پاک کرتا ہے۔ "بسم اللہ" ایک ایسا دروازہ ہے جو مٹی سے اٹھے انسان کو نور کی دنیا سے جوڑ دیتا ہے۔ یہ وہ کلمہ ہے جو وضو کو محض پانی کے بہاؤ سے نکال کر یادِ الٰہی کے سیلاب میں بدل دیتا ہے۔ یہ کلمہ "بسم اللہ" ایک اعلان ہے کہ اے رب! میں اپنے جسم کو نہیں، اپنی روح کو بھی دھونا چاہتا ہوں۔ یہ وضو اُس محبوب کی بارگاہ میں حاضری کی تیاری ہے، جس سے ملنے کے لیے دل بےتاب ہے۔ اسلام میں طہارت کا مفہوم محض جسم کی صفائی پر محدود نہیں، بلکہ دل و دماغ اور باطن کی پاکیزگی بھی اسی کا جز ہے۔ قرآن مجید میں بارہا پاکی کو پسندیدہ عمل کہا گیا ہے: إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ التَّوَّابِينَ وَيُحِبُّ الْمُتَطَهِّرِينَ" (البقرۃ: 222) یعنی: بے شک اللہ تعالیٰ توبہ کرنے والوں اور پاکی حاصل کرنے والوں سے محبت کرتا ہے۔ اسلام کا یہ وصف کہ وہ مادہ و روح، جسم و قلب، عقل و ایمان کو یکجا کر کے ایک متوازن انسان پیش کرتا ہے۔ اس کی جھلک ہمیں وضو کے حکم میں بھی ملتی ہے۔ ایک طرف اعضا کا دھونا ہے، اور دوسری طرف دل میں ذکرِ الٰہی کا چراغ روشن کرنا۔ جدید سائنس اس بات کو تسلیم کرتی ہے کہ پانی کے ساتھ مخصوص اعضا کو دھونا نہ صرف جراثیم سے حفاظت کا ذریعہ ہے، بلکہ دماغی سکون، بلڈ پریشر میں توازن، اور اعصابی نظام کی بحالی کا بھی ذریعہ ہے۔ وضو کی کیفیت میں انسان کی جلد پر موجود برقی لہریں متوازن ہو جاتی ہیں، جو کہ طبی طور پر ذہنی تناؤ کو کم کرنے میں مددگار ہے۔ لیکن محض پانی بہانا کافی نہیں؛ جب انسان شعور کے ساتھ، نیت کے ساتھ، اور اللہ کے نام سے یہ عمل کرے، تب یہ صرف طبی صفائی نہیں رہتی، بلکہ روحانی تطہیر میں بدل جاتی ہے۔ وضو سے پہلے ”بسم اللہ“ پڑھنا چاہیے۔ فقہائے کرام نے وضو کی روحانی افادیت پر زور دیا ہے کہ یہ عبادت کی بنیاد ہے، اور ذکرِ الٰہی اس بنیاد کی روح۔ ذکرِ الٰہی صرف ثواب نہیں، بلکہ اعمال کے نور اور برکت کی کنجی ہے۔ جب بندہ ”بسم اللہ“ کہتا ہے، تو وہ وضو کو اللہ کے نام سے منسوب کر دیتا ہے، اور گویا وہ پاکیزگی رب کی رضا کے لیے حاصل کر رہا ہے، نہ کہ محض جسم کی طہارت کے لیے۔ اس حدیثِ مبارک میں یہ تعلیم ہے کہ صرف اعضا دھونا کافی نہیں، اصل مقصد رب کی یاد کے ساتھ خود کو اندر سے پاک کرنا ہے۔ جب "بسم اللہ" کہہ کر وضو کیا جائے تو صرف جسم نہیں، پورا وجود رب کی طرف جھک جاتا ہے۔ *ظاہری صفائی اور باطنی طہارت کا فرق:* وضو کرنا صرف جسم دھونا نہیں بلکہ روح کو پاکیزہ کرنے کا عمل بھی ہے۔ جب ہم "بسم اللہ" کہہ کر وضو کرتے ہیں، تو یہ صرف ایک جملہ نہیں، بلکہ روحانی کنکشن ہے، ایک سگنل کہ ہم یہ عمل اللہ کے حکم اور اُس کی رضا کے لیے کر رہے ہیں۔ *نیت اور شعور کی اہمیت:* اگر صرف پانی بہا لیا جائے مگر اللہ پاک کو یاد نہ کیا جائے تو جسم تو بھیگ جائے گا، مگر روح کی دھلائی نہیں ہوگی۔ جیسے مشین چلا کر کوئی عمل کیا جائے بغیر پاور آن کیے، ویسے ہی بغیر اللہ کا نام لیے وضو، صرف جسمانی عمل رہ جاتا ہے۔ *اللہ کا نام طہارت کا مکمل بٹن:* "بسم اللہ" کہنے سے پورا جسم گویا روحانی صفائی کے عمل میں آ جاتا ہے، چاہے پانی صرف مخصوص اعضا پر بہا ہو۔ یہ اللہ کے ذکر کی برکت ہے کہ اُس کی یاد جسمانی عمل کو معنویت دے دیتی ہے۔ *عملی سبق:* ہر وضو سے پہلے دل سے "بسم اللہ" پڑھنے کی عادت بنائیں، تاکہ وضو صرف جسم کی صفائی نہ رہے بلکہ روح کی تازگی بھی بن جائے۔ بچوں کو بھی وضو کے ساتھ "بسم اللہ" کی تعلیم دیں، تاکہ اُن کا دل چھوٹی عمر سے ہی اللہ کے ذکر سے جڑ جائے۔ *बिस्मिल्लाह पढ़कर वुज़ू करने की फज़ीलत* हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: जिसने बिस्मिल्लाह कहकर वुज़ू किया, उसका सारा बदन सर से पाँव तक पाक (पवित्र) हो गया। और जिसने बिना बिस्मिल्लाह के वुज़ू किया, उसका उतना ही बदन पाक होगा, जितने हिस्से पर पानी गुज़रा। ( सुनने दारा कु़तनी, हदीस नंः 238) --- इस्लाम में वुज़ू इबादतों की कुबूलियत की बुनियादी शर्त है। लेकिन अगर इस वुज़ू की शुरुआत "बिस्मिल्लाह" से की जाए, तो यह अमल सिर्फ जिस्म की सफाई नहीं रहता, बल्कि रूह की भी पाकीज़गी का ज़रिया बन जाता है। जब इंसान पानी से वुज़ू करता है तो उसका जिस्म साफ़ होता है, लेकिन जब वह वुज़ू से पहले "बिस्मिल्लाह" कहता है, तो उसकी रूह भी वुज़ू के पानी के साथ धुलने लगती है। यह महज़ एक शरई अमल नहीं, बल्कि एक रूहानी, नफ़्सियाती, तिब्बी और फ़िक्री तहारत है। जिसमें बन्दा सिर्फ़ आज़ा नहीं धोता, बल्कि नीयत, शुऊर और दिल की सतह तक ख़ुद को ताज़ा और पाक करता है। "बिस्मिल्लाह" एक ऐसा दरवाज़ा है जो मिट्टी से उठे इंसान को नूर की दुनिया से जोड़ देता है। यह वह कलिमा है जो वुज़ू को सिर्फ़ पानी के बहाव से निकाल कर यादे-इलाही के सैलाब में बदल देता है। यह कलिमा "बिस्मिल्लाह" एक ऐलान है कि 'ऐ रब! मैं अपने जिस्म को नहीं, अपनी रूह को भी धोना चाहता हूँ।' यह वुज़ू उस महबूब की बारगाह में हाज़िरी की तैयारी है, जिससे मिलने के लिए दिल बेताब है। इस्लाम में तहारत का मफ़हूम महज़ जिस्म की सफ़ाई तक महदूद नहीं, बल्कि दिल, दिमाग़ और बातिन की पाकीज़गी भी इसका हिस्सा है। क़ुरआन मजीद में बार-बार पाकी को पसंदीदा अमल कहा गया है: बेशक अल्लाह तौबा करने वालों और पाकीज़गी हासिल करने वालों से मोहब्बत करता है। इस्लाम की यह ख़ूबी है कि वह माद्दा व रूह, जिस्म व क़ल्ब, अकल व ईमान को मिलाकर एक मुतवाज़िन इंसान पेश करता है। इसकी झलक हमें वुज़ू के हुक्म में भी मिलती है। एक तरफ़ आज़ा को धोना है और दूसरी तरफ़ दिल में ज़िक्र-ए-इलाही का चराग़ रौशन करना। जदीद साइंस भी इस बात को तस्लीम करती है कि पानी के साथ ख़ास आज़ा को धोना न सिर्फ़ जरासीम (बैक्टीरिया) से हिफ़ाज़त का ज़रिया है, बल्कि दिमाग़ी सुकून, ब्लड प्रेशर में तवाज़ुन, और आसाबी निज़ाम की बहाली का भी ज़रिया है। वुज़ू की कैफ़ियत में इंसान की त्वचा पर मौजूद बिजली की तरंगें मुतवाज़िन हो जाती हैं, जो कि तिब्बी तौर पर ज़ेहनी तनाव को कम करने में मददगार है। लेकिन महज़ पानी बहाना काफ़ी नहीं, जब इंसान शुऊर के साथ, नीयत के साथ, और अल्लाह के नाम से यह अमल करे, तब यह सिर्फ़ तिब्बी सफ़ाई नहीं रहती, बल्कि रूहानी तज़किया (तहज़ीब-ए-नफ़्स) में बदल जाती है। फुक़हा ने वुज़ू की रूहानी इफ़ादियत पर ज़ोर दिया है कि यह इबादत की बुनियाद है, और ज़िक्र-ए-इलाही इस बुनियाद की रूह। ज़िक्र-ए-इलाही सिर्फ़ सवाब नहीं, बल्कि आमाल के नूर और बरकत की कुंजी है। जब बन्दा "बिस्मिल्लाह" कहता है, तो वह वुज़ू को अल्लाह के नाम से मन्सूब कर देता है, और गोया वह पाकीज़गी रब की रज़ा के लिए हासिल कर रहा है, न कि सिर्फ़ जिस्म की सफ़ाई के लिए। इस हदीस-ए-मुबारक में यह तालीम है कि सिर्फ़ आज़ा धोना काफ़ी नहीं, असल मक़सद रब की याद के साथ खुद को अंदर से पाक करना है। जब "बिस्मिल्लाह" कहकर वुज़ू किया जाए तो सिर्फ़ जिस्म नहीं, पूरा वजूद रब की तरफ़ झुक जाता है। *बिस्मिल्लाह कहने की फज़ीलत:* 1. रूहानी असर: "बिस्मिल्लाह" अल्लाह से राबिता क़ायम करने का पहला क़दम है। जब बन्दा अल्लाह का नाम लेकर वुज़ू करता है, तो अल्लाह की रहमत उस पर नाज़िल होती है और उसकी तमाम ग़लतियाँ भी धुलने लगती हैं। 2. अमल की कुबूलियत: किसी भी नेक अमल से पहले अल्लाह का नाम लेना सुन्नत है और बग़ैर नाम लिए अमल अधूरा समझा जाता है। ✦ *दीन व दुनिया की नजऱ से:* • मेडिकल साइंस भी मानती है कि जब इंसान ध्यान और सुकून के साथ कोई काम करता है, तो उसका असर गहरा होता है। "बिस्मिल्लाह" के साथ किया गया वुज़ू एक तरह से फोकस, मानसिक शांति और स्प्रिचुअल टच देता है। • वुज़ू खुद एक हाइजीन है, और "बिस्मिल्लाह" से वो हाइजीन इबादत का दर्जा पा जाती है। *ज़ाहिरी सफ़ाई और बातिनी तहारत का फ़र्क:* वुज़ू करना सिर्फ़ जिस्म धोना नहीं बल्कि रूह को पाकीज़ा करने का अमल भी है। जब हम "बिस्मिल्लाह" कहकर वुज़ू करते हैं, तो यह सिर्फ़ एक जुम्ला नहीं, बल्कि एक रूहानी कनेक्शन है। एक संकेत कि हम यह अमल अल्लाह के हुक्म और उसकी रज़ा के लिए कर रहे हैं *नीयत और शुऊर की अहमियत:* अगर सिर्फ़ पानी बहा लिया जाए मगर अल्लाह पाक को याद न किया जाए, तो जिस्म तो भीग जाएगा, मगर रूह की धुलाई नहीं होगी। जैसे कोई मशीन चलाने की कोशिश करे मगर पॉवर ऑन न करे, वैसे ही बग़ैर अल्लाह का नाम लिए वुज़ू सिर्फ़ जिस्मानी अमल रह जाता है। *अल्लाह का नाम — तहारत का मुकम्मल बटन:* "बिस्मिल्लाह" कहने से पूरा जिस्म गोया रूहानी सफ़ाई के अमल में शामिल हो जाता है, चाहे पानी सिर्फ़ कुछ हिस्सों पर ही डाला गया हो। यह अल्लाह के ज़िक्र की बरकत है कि उसकी याद जिस्मानी अमल को मानाख़ेज़ बना देती है। *अमली सबक़:* हर वुज़ू से पहले दिल से "बिस्मिल्लाह" पढ़ने की आदत बनाएं, ताकि वुज़ू सिर्फ़ जिस्म की सफ़ाई न रहे बल्कि रूह की ताज़गी भी बन जाए। बच्चों को भी वुज़ू के साथ "बिस्मिल्लाह" की तालीम दें, ताकि उनका दिल छोटी उम्र से ही अल्लाह के ज़िक्र से जुड़ जाए। ✦ *नतीजा:* "बिस्मिल्लाह" सिर्फ एक लफ्ज़ नहीं, बल्कि एक नीयत, एक इख़लास, और एक रूहानी दरवाज़ा है, जो वुज़ू के ज़रिए इंसान को अल्लाह से जोड़ देता है।


आज 6 घंटे पढ़ लो वरना कल 13 घंटे मज़दूरी करनी पड़ेगी. पढ़ाई बोझ नहीं, आज़ादी की चाबी है।