मुकेश कुमार सुवालका राजीव वादी
मुकेश कुमार सुवालका राजीव वादी
February 1, 2025 at 04:17 AM
हे ईश्वर! सबको सद्बुद्धि प्रदान करो। कुम्भ स्नान वा गंगा स्नान आदि से पाप धुल जाते हैं तो दिन रात उसमें ही विचरण करने वाले मगरमच्छों व मछलियों के पाप क्यों नहीं धुल जाते? काशी मथुरा आदि स्थानों पर मृत्यु होने से मुक्ति हो जाती है तो इन नगरों में मरने वाले करोड़ों लोगों की मुक्ति क्यों नहीं हो जाती? प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्तियों में प्राण क्यों नहीं आ जाते और तुम अपने मरे हुए माँ बाप में प्राण प्रतिष्ठा कर उन्हें जीवित क्यों नहीं कर लेते? कुम्भ मेलों के आयोजन को लेकर दो तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत की बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार महार्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इन्द्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षिरसागर मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर सम्पूर्ण देवता दैत्यों के साथ सन्धि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुम्भ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इन्द्रपुत्र जयन्त अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए उसका पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयन्त को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा। इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार उज्जैन और नासिक पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं वहाँ-वहाँ कुम्भ पर्व होता है। वास्तव में भेड़ चाल लगी है गंगा स्नान से अमरत्व प्राप्त करने की। पुराणों की काल्पनिक कहानियाँ जो गत लगभग 2500 वर्ष पहले लिखी गई उससे पहले कुम्भ मेले का कोई इतिहास नहीं मिलता। अमरत्व प्राप्त की यह कथा वेद उपनिषद दर्शन रामायण महाभारत मनुस्मृति गीता व पतांजली के योग दर्शन आदि के बिल्कुल विरूद्ध है। लेकिन आज सारा हिन्दू समाज पुराणों में वर्णित काल्पनिक किस्से कहानियों के अनुसार चल रहा है । वेदों पर आधारित सत्य सनातन वैदिक धर्म में तो संयम सदाचार का जीवन व्यतीत करते हुए ध्यान मुद्रा में बैठ कर ओम् नाम के जप को सबसे बड़ा तीर्थ माना गया है। संगम स्नान से उतना पुण्य नहीं मिलता जितना गायत्री मंत्र का जाप करने व गुरुकुलों को दान करने से मिलता है।
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