Muwahid
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February 10, 2025 at 12:21 AM
*Existence of God Part 3* *क्या इस कायनात का कोई बनाने वाला है? या ये कायनात खुद व खुद बन गई है?* *(existence of God)* *पृथ्वी का निज़ाम* अब हम अपनी पृथ्वी को देखे जिसमें सूरज की गर्मी की वजह से समुंद्रो के पानी का तापमान बढ़ता है और पानी भाप में बदल जाता है फिर वो भाप, दबाब (Pressure) कम होने की वजह से आसमान में ऊपर जाती है आसमान में पहुँच कर भाप बादलों में बदल जाती है, बादलों को हवाएं उड़ा कर जमीन के कोने कोने में फैलाती हैं फिर आसमान में तापमान (temperature) कम होने की वजह से ठीक समय पर भाप पानी मे बदल जाती है भाप का पानी मे बदलने की वजह से इसका दबाब (pressure) बढ़ जाता है, जिसकी वजह से पानी बारिश की बूंदों के रूप में जमीन पर गिरता है फिर उस बारिश की वजह से मरी हुई जमीन के पेट से तरह तरह के लहलहाते हुए पेड़ पौधे निकाले जाते है और तरह तरह के अनाज, रंग बिरंगे फूल और तरह तरह के फल पैदा किये जाते हैं पृथ्वी पर इन चीज़ों को रात दिन हम होते हुए देख रहे हैं ? क्या पृथ्वी पर इतना पेचीदा निज़ाम (complex system) जो हमारी ज़िंदगी के लिए बहुत जरूरी है क्या ये खुद व खुद बन गया है? भला वो कौन है जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया और तुम्हारे लिये आसमान से पानी बरसाया फिर उसके ज़रिए से वो लुभावने बाग़ उगाए जिनके पेड़ों का उगाना तुम्हारे बस में न था? 📓(कुरआन 27:60) जो लोग अक़्ल से काम लेते हैं, उनके लिये आसमानों और ज़मीन की बनावट में रात और दिन के मुसलसल एक-दूसरे के बाद आने में, उन नावों में जो इन्सान के फ़ायदे की चीज़ें लिये हुए दरियाओं और समन्दरों में चलती-फिरती हैं, बारिश के उस पानी में जिसे अल्लाह ऊपर से बरसाता है, फिर उसके ज़रिए से ज़मीन को ज़िन्दगी देता है और अपने उसी इन्तिज़ाम की बदौलत ज़मीन में हर तरह की जानदार मख़लूक़ को फैलाता है, हवाओं के चलने में और उन बादलों में जो आसमान और ज़मीन के बीच फ़रमाँबरदार बनाकर रखे गए हैं, बेशुमार निशानियाँ हैं। 📓(कुरआन 2:164) ऐसे ही क़ायनात में बहुत चीज़े एक कानून के तहत काम कर रही हैं जिसको अगर मैं लिखना चाहूँ भी तो नही लिख सकता। क़ायनात का निज़ाम इतना ज्यादा पेचीदा (complex) और अच्छी तरह से स्थापित (well established) है कि अगर इसको लिखने के लिए दुनिया के सारे पेड़ो से कलम बना ली जाए और सारे समुन्द्रों से स्याही बना ली जाए तो भी कम पड़ जाएगी, पर हम इस क़ायनात के बारे में नही लिख पायेंगे। इसी बात को अल्लाह ने अपने आखिरी पैगाम कुरआन में कुछ यूं कहा है कि: *ज़मीन में जितने पेड़ हैं, अगर वो सब के सब क़लम बन जाएँ और समुद्र (दवात बन जाए) जिसे सात और समुद्र स्याही जुटाएँ, तब भी अल्लाह की बातें (लिखने से) ख़त्म न होंगी। बेशक अल्लाह ज़बरदस्त और हिकमतवाला है।* 📓(कुरआन 31:27) *ऐ नबी! कहो कि अगर समन्दर मेरे रब की बातें लिखने के लिये रौशनाई बन जाए तो वो ख़त्म हो जाए, मगर मेरे रब की बातें ख़त्म न हों, बल्कि अगर उतनी ही रौशनाई हम और ले आएँ तो वो भी काफ़ी न हो।* 📓(कुरआन 18:109) हमारी क़ायनात को चलाने में काम करने वाले कानूनों में पिछले 13.8 अरब साल गुजर जाने के वाबजूद कोई तब्दीली नही आई है और ये सब कानून इस कदर नपे तुले हिसाब के साथ वुज़ूद में आये थे कि अगर इसके मूल्यों (values) में एक मिली मीटर का भी फ़र्क़ हुआ होता तो ये क़ायनात मुकम्मल तरीके से तबाह और बर्बाद हो जाती और कभी भी इस सूरत में नही हो सकती थी जिस सूरत में आज ये क़ायनात मौजूद है। उदाहरण के लिए क़ायनात एक खास रफ्तार और विस्तार या फैलाव (expansion) के साथ फैल रही है अगर उस रफ्तार और फैलाव (expansion) में एक मिलीमीटर या जर्रे बराबर का भी फ़र्क़ हो जाए तो ये क़ायनात उसी वक़्त खत्म हो जाएगी। जैसे इस क़ायनात की रफ्तार और फैलाव (expansion) मे एक मिलीमीटर की कमी कर दी जाए या एक मिलीमीटर की ज्यादती कर दी जाए तो ये क़ायनात उसी वक़्त खत्म हो जाएगी, जरा सोचिए कि वह कौन है? जो इस क़ायनात की रफ्तार और फैलाव (expansion ) को इतना अच्छे से कंट्रोल कर रहा है? *हक़ीक़त ये है कि अल्लाह ही है जो आसमानों और ज़मीन को टल जाने से रोके हुए है और अगर वो टल जाएँ तो अल्लाह के बाद कोई दूसरा इन्हें थामनेवाला नहीं है।* 📓(कुरआन 35:41) जब बिग बैंग हुआ और ये क़ायनात वुज़ूद मे आई उस समय क़ायनात मे ज़िंदगी के मुमकिन होने के लिए *10^10^123 (10 to the power 10 to the power 123)* सम्भावना मे से सिर्फ एक सम्भावना ऐसी थी जिससे इस क़ायनात मे ज़िंदगी का होना मुमकिन था ये 10^10^123 (10 to the power 10 to the power 123) इतना बड़ा नम्बर है कि न तो हम इसको लिख सकते और न ही इस नम्बर की गणना (calculate) कर सकते है और इतनी बड़ी सम्भावना का होना प्रायिकता (probabilty) के खिलाफ है, और इतनी ज्यादा संभावनाओं में से सिर्फ एक संभावना का होना प्रायिकता (probabilty) में 0 माना गया है यानि के यह बात नामुमकिन है कि इस क़ायनात में ज़िंदगी एक्सीडेंटिली वज़ूद में आ गई। जब बिग बैंग हुआ और ये क़ायनात बनी तो उस समय कोई ज़िंदगी मौजूद नही थी तो फिर इस क़ायनात में ज़िंदगी का वुज़ूद कैसे मुमकिन हुआ जीव विज्ञान (biology) का एक नियम है कि: *Living cell can never be produced from non living source* यानी ज़िंदा चीज़ कभी भी मुर्दा चीज़ से नही बनाई जा सकती ज़िंदा चीज़ हमेशा ज़िंदा चीज़ो से ही बनेगी, जैसे आप दुनिया के सारे केमिकल जोड़ कर भी खून (blood ) नही बना सकते इसलिए ही ज़िंदा इंसान का खून ही दूसरे इंसान को दिया जा सकता है। इसी बात को मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी रह० अपनी किताब शांति मार्ग में कुछ यूं लिखते है कि: आदमी का शरीर जिन पदार्थो से मिलकर बना है, उन सबको साइंसदानो ने अलग-अलग करके देखा तो मालूम हुआ कि कुछ लोहा हैं, कुछ कोयला, कुछ गन्धक, कुछ फास्फोरस, कुछ कैल्शियम, कुछ नमक, कुछ गैसे और बस ऐसी ही कुछ और चीजे हैं, जिनकी पूरी कीमत कुछ रूपयों से अधिक नही हैं। ये चीजे जितने-जितने वजन के साथ आदमी के शरीर मे शामिल हैं उतने ही वजन के साथ उन्हे ले लीजिए और जिस प्रकार जो चाहे मिलाकर देख लीजिए, आदमी किसी तरकीब से न बन सकेगा। फिर किस प्रकार आपकी अक्ल यह मान सकती हैं कि उन कुछ बेजान चीजो से देखता, सुनता, बोलता, चलता-फिरता इन्सान वह इन्सान जो हवार्इ जहाज और रेडियो बनाता हैं, किसी कारीगर की हिकमत और सूझबूझ के बिना आप-से-आप बन जाता है? कभी आपने सोचा कि मॉ के पेट की छोटी-सी फैक्ट्री मे किस प्रकार आदमी तैयार होता हैं? बाप की कारसाजी का इसमें कोर्इ हाथ नही, मॉ की हिकमत का इसमें कोर्इ काम नही। एक छोटी-सी थैली में दो कीड़े जो सूक्ष्म-दर्शक यंत्र (Microscope) के बिना देखे तक नही जा सकते, न जाने कब आपस मे मिल जाते हैं। मां के खून ही से उनको खुराक पहुचना शुरू होती हैं, वही लोहा, गन्धक, फास्फोरस वगैरह सब चीजे जिनको मैने उपर बयान किया, एक खास वजन और एक खास अनुपात के साथ वहॉ जमा होकर लोथड़ा बनती है, फिर उस लोथड़े मे जहॉ आंखे बननी चाहिए वहा आंखे बनती है, जहां कान चाहिए वहां कान बनते हैं, जहॉ दिमाग बनना चाहिए वहां दिमाग बनता है, जहा दिल बनना चाहिए वहां दिल बनता है, हडडी अपनी जगह पर, मांस अपनी जगह पर, रगें अपनी जगह पर, यानी एक-एक पुर्जा अपनी-अपनी जगह पर ठीक बैठता हैं। फिर उसमें जान पड़ती हैं, देखने की ताकत, सुनने की ताकत, चखने और सुघने की ताकत, बोलने की ताकत , सोचने और समझने की ताकत, और कितनी ही अनगिनत ताकते उसमें भर जाती हैं। इस प्रकार जब इन्सान पूर्ण हो जाता हैं तो पेट की वही छोटी-सी फैक्ट्री, जहां नौ महीने तक वह बन रहा था, खुद जोर लगाकर उसे बाहर ढकेल देती हैं और संसार यह देख कर चकित रह जाता हैं कि इस फैक्ट्री मे एक ही तरीके से लाखों इन्सान रोज बनकर निकल रहे हैं, किन्तु हर एक का नमूना भिन्न और अलग हैं, शक्ल अलग, रंग अलग, आवाज, ताकतें और सलाहियते अलग, स्वभाव और विचार अलग, आचार और खूबियॉ अलग, यानी एक ही पेट से निकले हुए दो सगे भार्इ तक एक-दूसरे से नही मिलते । यह ऐसा चमत्कार हैं जिसे देख कर अक्ल दंग रह जाती हैं। इस चमत्कार को देख कर भी जो इन्सान यह कहता हैं कि यह काम किसी जबरदस्त हिकमत, सूझबूझ और जबरदस्त ताकतवाले और जबरदस्त ज्ञान रखनेवाले और अनुपम चमत्कार रखने र्इश्वर के बिना हो रहा हैं या हो सकता हैं, निश्चय ही उसका दिमाग ठीक नही हैं। उसको अक्लमंद समझना अक्ल का अपमान करना हैं। कम-से-कम मै तो ऐसे व्यक्ति को इस योग्य नही समझता कि किसी बौद्धिक और माकूल मसले पर उससे बात-चीत करूॅ। हमने इन्सान को मिट्टी के सत् से बनाया, फिर उसे एक महफ़ूज़ जगह टपकी हुई बूँद में तब्दील किया, फिर उस बूँद को लोथड़े की शक्ल दी, फिर लोथड़े को बोटी बना दिया, फिर बोटी की हड्डियाँ बनाईं, फिर हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया, फिर उसे एक दूसरा ही जानदार बना खड़ा किया। तो बड़ा ही बरकतवाला है अल्लाह, सब कारीगरों से अच्छा कारीगर। 📓(कुरआन 23:12-14) जरा अब आप सोचिए! एक मामूली बल्ब जो आपके सामने जल रहा है, गज भर कपड़ा जिसे आप पहने हुए है, घड़ी जिसमे आप समय देखते है, मोबाइल जो आपके हाथ में है, हवाई जहाज जिसे रात दिन आप उड़ते हुए देखते है और एक मामूली सी कार, जब इन सब चीजों के बारे में आपकी अक्ल यह नहीं मान सकती कि वह किसी बनाने वाले के बिना बन गई है और किसी चलाने वाले के बिना चल रही है। तो इतनी बड़ी कायनात के बारे में आपकी अक्ल इसपर किस प्रकार यकीन कर सकती है कि वह किसी बनाने वाले के बिना बन गई है? और किसी चलाने वाले के बिना चल रही है?
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