शवेता दर्पण न्यूज चैनल सब पर पैनी नजर
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February 3, 2025 at 04:51 PM
*गीता भावार्थ* *अथाष्टादशोऽध्यायः* *तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।* *तत् प्रसादात्-परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्।।६२।।* अब सच्चिदानंद मुकुंद परमात्मा गोविंद कुंती नंदन अर्जुन से कहते हैं कि *हे भारत- भरत कुल नंदन अर्जुन, तुम अपने हृदय में विराजमान उसी मायापति परमेश्वर की शरण में सर्व भाव से जाओ, उसी हृदयस्थ परम देव परमात्मा की कृपा-प्रसाद से तुम अविनाशी परम शांति पद अर्थात् परमधाम प्राप्त करोगे।* *यही गीता का सर्व गुह्यतम उपदेश है।* *गुणमयी माया सचराचर जगत के जीवों को विवश करके कर्म करा रही है, यह गुणमयी माया- प्रकृति परमात्मा के अधीन रहती है, इसलिए इस प्रकृति से छुटकारा पाने के लिए इसके स्वामी श्री कृष्ण भगवान की शरण में जाना चाहिए, तभी छुटकारा मिलेगा अन्यथा छुटकारा मिलना संभव नहीं है। क्योंकि स्वामी ही मुक्त कर सकता है, दूसरा कोई नहीं। यही कहने का आशय है।* *अंतर्यामी सर्वशक्तिमान श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि सब उपदेश दे दिया गया। अब जैसी तुम्हारी इच्छा हो, वैसा करो-* *इति ते ज्ञान माख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं मया।* *विमृश् यैतद शेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।।६३।।* अब आदिदेव देवदेव वासुदेव सच्चिदानंद मुकुंद परमात्मा गोविंद कुंती नंदन अर्जुन से कहते हैं कि *इस प्रकार मेरे द्वारा तुम्हें गोपनीय से भी अधिक गोपनीय उपदेश दिया गया। इस पर पूर्ण रूप से आदि से अंत तक विचार करलो, उसके बाद जैसा चाहो, वैसा करो।* *कहने का आशय यह है कि गुरुजी ने अपना काम कर दिया। अब शिष्य को अपना काम करने की बारी आ गई है। शिष्य को जैसा उचित लगे वह अपने कल्याण का विचार करके तदनुसार कार्य करे। गुरु जी का काम उपदेश देना है, शिष्य का कर्तव्य है- उपदेशों का पालन करना। उपदेश सुनकर यदि शिष्य उसका जीवन में पालन नहीं करता, तो इसके लिए वह स्वयं दोषी है, दूसरा कोई नहीं और अकल्याण होने की दशा में शिष्य किसी को दोष नहीं दे सकता।* *गीता के उपदेशों पर मनन करके निष्कर्ष निकालना उच्च कोटि के विद्वानों के लिए भी बहुत कठिन है और साधारण साधकों के लिए तो और भी कठिन है। इसलिए अर्जुन को निमित्त बनाकर हम साधारण भक्तों के लिए भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण स्वयं वह परम गोपनीय उपदेश पुनः कह रहे हैं।* *गुरुतर कर्म धर्म उपदेशा।* *केशव महिमा कथन विशेषा।।* धर्म का उपदेश देना कठिन कार्य है और श्रीकृष्ण भगवान की महिमा का कथन करना तो सबसे कठिन कार्य है। *कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्।* स्वयं श्री भगवान ही श्रीकृष्ण रूप में अवतार लिए हैं। *सुन्दर विग्रह मेघ समाना।* *कृष्ण कमल लोचन भगवाना।।* कमल नयन श्रीकृष्ण भगवान की देह नील मेघ के समान अत्यंत सुंदर है। *श्रीकृष्ण भगवान की जय।* गीता सुनीता कर्तव्या।*जय भगवद् गीते।* तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्‌ । सुखसङ्‍गेन बध्नाति ज्ञानसङ्‍गेन चानघ ॥

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