सुरज ई-सर्विसेज
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February 7, 2025 at 08:25 AM
*लघु कृषक, सीमांत कृषक और भूमिहीन कृषक तीन अलग-अलग श्रेणियाँ हैं जो कृषकों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर परिभाषित की जाती हैं। यहाँ इन तीनों श्रेणियों में अंतर हैं:* *लघु कृषक* 1. *जमीन का आकार*: 1 हेक्टेयर से 2 हेक्टेयर तक की जमीन। 2. *आर्थिक स्थिति*: मध्यम आर्थिक स्थिति, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त आय। 3. *कृषि उत्पादन*: अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त कृषि उत्पादन। 4. *वित्तीय संसाधन*: मध्यम वित्तीय संसाधन, अपने खेतों में निवेश करने में सक्षम। *सीमांत कृषक* 1. *जमीन का आकार*: 1 हेक्टेयर से कम जमीन। 2. *आर्थिक स्थिति*: कमजोर आर्थिक स्थिति, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष। 3. *कृषि उत्पादन*: अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त कृषि उत्पादन नहीं। 4. *वित्तीय संसाधन*: कम वित्तीय संसाधन, अपने खेतों में निवेश करने में असमर्थ। *भूमिहीन कृषक* 1. *जमीन का आकार*: कोई जमीन नहीं। 2. *आर्थिक स्थिति*: बहुत कमजोर आर्थिक स्थिति, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत संघर्ष। 3. *कृषि उत्पादन*: कोई कृषि उत्पादन नहीं। 4. *वित्तीय संसाधन*: बहुत कम वित्तीय संसाधन, अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ। इन तीनों श्रेणियों में अंतर यह है कि लघु कृषकों के पास मध्यम आर्थिक स्थिति और जमीन होती है, सीमांत कृषकों के पास कमजोर आर्थिक स्थिति और कम जमीन होती है, और भूमिहीन कृषकों के पास कोई जमीन नहीं होती और बहुत कमजोर आर्थिक स्थिति होती है। *भूमिहीन कृषक* का अर्थ होता है वह व्यक्ति जो खेती करता है, लेकिन उसके पास अपनी खुद की जमीन नहीं होती है। वह दूसरों की जमीन पर किराए पर या अन्य शर्तों पर खेती करता है। भूमिहीन कृषक आमतौर पर गरीब और वंचित वर्गों से आते हैं और उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए खेती करनी पड़ती है। हालांकि, उनके पास जमीन के अधिकार नहीं होने से उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि जमीन की अनिश्चितता, कम आय, और सामाजिक असुरक्षा। भारत सरकार और राज्य सरकारें भूमिहीन कृषकों के लिए विभिन्न योजनाएं और कार्यक्रम चलाती हैं, ताकि उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाया जा सके।

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