
AAP Pulse
February 1, 2025 at 05:43 PM
स्वाति मालीवाल जी के विशेष आग्रह पर अफ़ज़ल गुरु अपनी कब्र से निकलकर दिल्ली में चुनाव प्रचार के लिए आ गए हैं...
अब हम जानेंगे कि कैसे आज़ाद देश में, अपने ही देश के राष्ट्रपति से, अपने देश के संविधान के तहत, किसी के लिए माफ़ी की अपील करना ग़लत था!
और ये तो हम पहले से जानते हैं की ग़ुलाम देश में अंग्रेज़ी हुक़ूमत से ख़ुद की सज़ा माफ़ी की अपील करना ग़लत नहीं था!
वैसे अफ़ज़ल गुरु और फाँसी के मुद्दे पर नेताओं और कोर्ट के अलावा तिहाड़ के पूर्व जेलर श्री सुनील गुप्ता* का मत भी मायने रखता है।
सुनील जी नें तिहाड़ जेल में पैंतीस साल सर्विस की है और इनके सामने अफ़ज़ल गुरु से पहले, कश्मीरी अलगाववादी मक़बूल बट्ट, इंदिरा गांधी जी के हत्यारे सतवंत सिंह-केहर सिंह, मासूम बच्चों के हत्यारे रंगा-बिल्ला और करतार-उजागर को फाँसी हुई थी।
कैदियों, न्याय प्रणाली और जेल के अपने तजुर्बे के आधार पर सुनील जी कहते हैं:
-अगर अफ़ज़ल गुरु को बेहतर वक़ील मिलते तो उनके केस का अंज़ाम कुछ और होता।
-इंदिरा गांधी जी की हत्या में ट्रायल कोर्ट नें तीन लोगों को फाँसी की सज़ा सुनाई थी। पर तीसरा अभियुक्त बलबीर सिंह सुप्रीम कोर्ट से बरी हो गया था क्योंकि उसके वकील राम जेठमलानी थे।
-बच्चे-औरतों को मारकर उनके माँस ख़ाने के विभत्स आरोपी मोहिंदर पंढेर और सुरिंदर कोली फाँसी से बच गए क्योंकि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में अच्छे वकीलों ने डिफेंड किया।
-फाँसी जैसी सख़्त सज़ा उन्हें मिलती है जिन्हें क़ाबिल डिफेंस लॉयर न मिला हो।
अब अफ़ज़ल गुरु क्या थे, उनका अपराध क्या था, ये बहस का मुद्दा नहीं है। देश की सर्वोच्च अदालत ने उन्हें दोषी पाया, ये महत्वपूर्ण है। जो उस फैसले से सहमत नहीं थे, उन्होंने अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए देश के राष्ट्रपति से माफ़ी की अपील की, जो मंज़ूर नहीं हुई।
इस घटना के इतने सालों बाद स्वाति मालीवाल का इस मामले में स्वघोषित कोर्ट बनना ये दर्शाता है कि उनके लिए भी आतंकवाद और फाँसी जैसे संवेदनशील मुद्दे सिर्फ़ व्यक्तिगत ख़ुन्नस और राजनैतिक स्वार्थ पूर्ति का ही ज़रिया हैं....
*ज़्यादा जानकारी के लिए सुनील जी की किताब “ब्लैक वॉरेंट:कन्फ़ेशंस ऑफ़ ए तिहाड़ जेलर” पढ़िए, या नेटफ़्लिक्स पर इनकी वेब सीरीज़ देखिए।
https://x.com/shail2018/status/1885698007750131746?s=19