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चाल, चरित्र और 19 चेहरे 2014 से 2025 तक बलात्कार और यौन शोषण के आरोप चाल, चरित्र, चेहरा जैसे अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग भारतीय जनता पार्टी को खासा भाता है और संस्कार की बात करते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ थकता नहीं. कर्नाटक में भाजपा विधायक द्वारा बलात्कार और दूसरे जघन्य अपराधों के बाद ‘टीम हरकारा’ ने 2014 से अब तक उन भाजपा नेताओं की लिस्ट बनाई है, जिन पर बलात्कार, यौन शोषण, और इससे संबंधित गंभीर अपराधों के आरोप लगे हैं. इनमें सांसद, विधायक, और पूर्व मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्ति शामिल हैं. पार्टी की प्रतिक्रिया इन मामलों में भिन्न रही है; कुछ हाई-प्रोफाइल मामलों में निलंबन और निष्कासन जैसे कदम उठाए गए हैं. https://www.harkaraonline.com/p/23052025-19

झारखंड में तथाकथित शराब घोटाला हुआ, आबकारी विभाग के प्रमुख सचिव और जॉइंट कमिश्नर जेल गए। दिल्ली में तथाकथित शराब घोटाला हुआ, एक भी अधिकारी जेल नहीं गया!! दिल्ली में जेल कौन गया- तत्कालीन मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद… सीबीआई और ईडी की माने तो मनीष सिसोदिया ने "बोला", संजय सिंह ने "टाईप किया", अरविंद केजरीवाल ने "साईन किया" और बन गई दिल्ली की नई शराब नीति, न कोई आगे, न कोई पीछे!! वहीं झारखंड में आरोप ये है कि वहाँ के आबकारी विभाग नें छत्तीसगढ़ के शराब कारोबारियों से मिलीभगत करके, ऐसी शराब नीति बनाई जिससे सरकारी ख़ज़ाने को करोड़ों का नुक़सान हुआ। कुछ सुना सुना लग रहा है न, दिल्ली जैसा? लेकिन झारखंड के केस में आरोप के दायरे में अधिकारी हैं, न कि झारखंड या छत्तीसगढ़ के मंत्री/मुख्यमंत्री/सांसद!! पर दिल्ली के केस में लगता है जैसे सभी अधिकारी उन दिनों लंबी छुट्टी पर थे लिहाज़ा नई शराब नीति तीन नेताओं ने अकेले बनाई, बनाने के बाद इन्हीं तीनों ने लागू भी की और इन्हीं तीनों ने करोड़ों का वारा न्यारा भी किया!! एक बात और। झारखंड राज्य है। आसान नहीं है किसी भी अधिकारी का अपने मंत्री या मुख्यमंत्री की बात न मानना, या ख़ुद इतना बड़ा नीतिगत निर्णय लेना। फ़िर भी जब जाँच और कारवाई होती है तो सबसे पहले अधिकारियों पर गाज गिरती है, सीधे मंत्री या मुख्यमंत्री पर नहीं। दिल्ली राज्य नहीं है। और तो और, 2015 से लेकर 2023 तक केंद्र की बीजेपी सरकार ने नोटिफिकेशन और क़ानून के ज़रिए, दिल्ली के मंत्री और मुख्यमंत्री के अधिकार भी एलजी को दे दिए। यही नहीं, अप्रैल 2021 में देश की संसद ने केंद्र की बीजेपी सरकार के उस संशोधन प्रस्ताव को मंज़ूरी दी जिसके तहत “दिल्ली सरकार का मतलब उपराज्यपाल” है। तो दिल्ली में अधिकारी अपने मंत्री और मुख्यमंत्री के किसी भी आदेश को मानने के लिए बाध्य नहीं थे। और एलजी भी कैबिनेट की “ऐड एंड एडवाइज़” के बग़ैर निर्णय ले सकते थे। ऐसे में उसी दिल्ली के दर्जनों अधिकारियों ने बिना अपना दिमाग़ लगाए नई शराब नीति की फाइल पर आँख बंद करके क्यों साइन किया? और फ़िर एलजी साहेब ने भी, जो वैसे तो हर बात में अड़ंगा लगाते थे, पर नई शराब नीति को क्यों मंज़ूरी देकर नोटिफिकेशन के आदेश दिए? और फिर जब जाँच होती है, कारवाई होती है तो कोई भी अधिकारी जेल नहीं जाता, और न ही तत्कालीन एलजी से कोई पूछताछ होती है! और जेल कौन जाता है- तत्कालीन मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद… है न कमाल? तो दिल्ली में हुए इस कमाल के बाद भी है कोई जिसे लगता है कि दिल्ली का शराब घोटाला सिर्फ एक राजनैतिक साज़िश नहीं थी?

आज इतिहास बना है। पंजाब के सरकारी स्कूलों के 32 बच्चों ने JEE एडवांस जैसे देश के सबसे कठिन एग्ज़ाम को पास कर लिया है ….और अब ये बच्चे IITs में पढ़ेंगे। कल तक पंजाब के जिन सरकारी स्कूलों में दीवारें तक नहीं थीं, आज वहाँ से बच्चों के सपने उड़ान भर रहे हैं … सीधा IIT तक। इन बच्चों की कहानियाँ ही इस बदलाव की सबसे बड़ी मिसाल हैं … - अर्शदीप, जिसकी माँ एक सफाई कर्मचारी हैं और अकेले ही बेटे को पढ़ा रही हैं। - जसप्रीत, जिसके पिता की महीने की आमदनी सिर्फ़ ₹7000 है। - लखविंदर, जो एक दलित परिवार से है और आज पूरे समाज के लिए प्रेरणा बन गया है। यह कोई संयोग नहीं है। यह @ArvindKejriwal और @BhagwantMann की सरकार का शिक्षा मॉडल है। जहाँ अच्छी शिक्षा सिर्फ कुछ खास का विशेषाधिकार नहीं, बल्कि हर गरीब, किसान, मज़दूर, दलित, पिछड़े वर्ग के बच्चे का हक़ है। यह कोई आंकड़ा नहीं … यह एक क्रांति है। जात, धर्म, वर्ग और गरीबी से परे .. हर बच्चे को समान अवसर देने की क्रांति। पंजाब बदल रहा है। अब गरीब का बच्चा भी कह सकता है - मेरा सपना IIT है, और मैं उसे हासिल कर सकता हूँ।

बड़ी बड़ी इमारत बनाते हुए मज़दूरों और उसके आस पास धूल में खेलते उनके छोटे छोटे बच्चों को देखकर अक्सर ये ख़्याल आता था: “ये इमारत, इसे बनाने वाले मज़दूरों या उनके बच्चों के लिए नहीं है, शायद वो कभी इसमें क़दम भी न रख सकेंगे” पर मनीष सिसोदिया के साथ दिल्ली सरकार के निर्माणाधीन स्कूलों की विजिट के दौरान ये भाव नहीं होता था। क्योंकि वहाँ खेलते हुए मज़दूरों के बच्चों की आँख में आँख डालकर हम ये कह पाते थे: “बच्चों आप के माँ- बाप जो आलीशान इमारत बना रहे हैं, वो आप के लिए है, आपका स्कूल है। यहाँ की एक एक ईंट आपकी ज़िंदगी को नई ऊँचाई देगी।" बस यही था दिल्ली शिक्षा क्रांति का मक़सद- मज़दूर का बच्चा मज़दूर बनने के लिए मज़बूर न हो!! वो भी सम्मान और समानता के साथ स्कूल जाए। वो भी अच्छे से पढ़े, खुलकर हँसे, खेले, बेख़ौफ़ बड़े बड़े सपने देखे और उसे पूरा करे। अब आज के हुक्मरान इसे न समझ सकें तो इसमें उनका कोई दोष नहीं है। इस भाव को समझने के लिए जो कलेजा चाहिए, वो है ही नहीं उनमें…

“मेरे बच्चों का सिस्टम पर से विश्वास उठ गया है” ये कहना है उस पिता का, जिसके 2 बच्चे उन 32 बच्चों में हैं जिन्हें DPS द्वारका ने स्कूल से निकाल दिया। ये बच्चे अपने पेरेंट्स से पूछते हैं कि: -आज कोर्ट में क्या हुआ -वो कल स्कूल जा सकेंगे या नहीं -टीचर उन्हें क्लास में बैठने देंगी की नहीं -वो अपने दोस्तों से मिल पाएंगे या नहीं -जब वो स्कूल वापस जायेंगे तो बाक़ी बच्चे उनका मज़ाक़ तो नहीं बनायेंगे… अब दिल्ली हाई कोर्ट का निर्णय चाहे जो हो, इन मासूम बच्चों के दिलों पर जो घाव लगा है, वो आसानी से नहीं भरेगा। ये बच्चे पढ़ना ही तो चाहते हैं न, उस स्कूल में जहाँ वो सालों से पढ़ रहे थे, जहाँ उनके दोस्त है!! और ये तंगदिल व्यवस्था इन 32 बच्चों को प्यार और सम्मान के साथ उनका स्कूल भी उन्हें नहीं दे सकती? शिक्षा का अधिकार क़ानून कहता है कि किसी भी बच्चे को 8 वीं क्लास तक की पढ़ाई पूरी होने तक किसी भी परिस्थिति में स्कूल नहीं निकाल सकता!! तो फ़िर 5 वीं में पढ़ने वाले बच्चे को DPS द्वारका ने कैसे स्कूल से निकाल दिया? दिल्ली की बीजेपी सरकार ने तो DPS द्वारका की जाँच के नाम पर डीएम को भेज कर राजनैतिक खानापूर्ति कर दी, पर बच्चे तो अपनी क्लास से बाहर ही रहे!! अगर दिल्ली की बीजेपी सरकार वाक़ई बच्चों की हितैषी होती, तो मजाल नहीं है कि कोई भी स्कूल बच्चों को इस तरह मानसिक यातना देने की सोचे भी। ज़्यादा पुरानी बात नहीं है जब दिल्ली बाल अधिकार आयोग ख़ुद इतना सक्षम था कि कोई प्राइवेट स्कूल किसी भी बच्चे को आँख न दिखा सके, और आज दिल्ली सरकार के डीएम भी “पॉवरलेस” हैं!! आख़िर क्या चाहते हैं ये बच्चे? पढ़ना, और पढ़ाई के लिए इतनी जद्दोजहद, इतनी बेबसी? लानत है ऐसी व्यवस्था पर!! और ये बातें करते हैं राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अमल करने की, भारत को विश्वगुरु बनाने की…

दिल्ली के एलजी साहेब के आदेश पर डीडीए ने सैकड़ों पेड़ काट दिए। सुप्रीम कोर्ट बहुत नाराज़ हुई। नतीज़ा - एलजी साहेब दोष मुक्त, अधिकारियों पर जुर्माना! दिल्ली की एक कोर्ट दिल्ली पुलिस से कपिल मिश्रा की दिल्ली दंगों से संबंधित जाँच में सुस्ती पर नाराज़ है। नतीज़ा- सुस्त जाँच ज़ारी है, कपिल मिश्रा बाइज्जत मंत्री पद पर क़ायम हैं! गुल्फ़िशा फ़ातिमा से कोई भी कोर्ट नाराज़ नहीं है। नतीज़ा- गुल्फ़िशा पिछले पाँच सालों से जेल में है। उनकी ज़मानत याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है। ये कौतूहल का विषय है कि आख़िर जब कोर्ट नाराज़ होती है तो क्या करती है? कुछ कह नहीं सकते। शायद ये देखती है की सामने कौन खड़ा है!! इसी को समझने के लिए जॉर्ज ऑरवेल ने अपनी किताब “एनिमल फ़ार्म” में लिखा था: “ऑल एनिमल्स आर इक्वल, बट सम एनिमल्स आर मोर इक्वल देन द अदर्स” अर्थात् सब जानवर बराबर हैं, पर कुछ जानवर बाक़ी सभी से ज़्यादा बराबर हैं...

100 दिन शिक्षा के नाम पर, दिल्ली की बीजेपी सरकार के राज में, अब तक... क्या हुआ? -स्कूल ऑफ़ स्पेशलाइज्ड एक्सीलेंस की जगह सीएम-श्री स्कूल बनाए जायेंगे -हैप्पीनेस करिकुलम हटा कर साइंस ऑफ़ लिविंग लागू होगी -देशभक्ति करिकुलम नहीं, राष्ट्रनीति पढ़ाई जाएगी -बिज़नेस ब्लॉस्टर का पुनर्जन्म, नीव के रूप में होगा नोट: ये बदलाव सिर्फ़ नाम का नहीं है, ये शुरुआत है सरकारी स्कूलों को वापस 2015 से पहले वाले ढर्रे पर ले जाने की!! क्या नहीं हुआ? -प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस के ख़िलाफ़ न तो विधानसभा में कोई बिल आया, न ही अध्यादेश जारी हुआ -बोर्ड रिजल्ट्स आने के हफ्तों बाद तक मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री ने सरकारी स्कूलों के बच्चों की कोई सुध नहीं ली -सरकारी स्कूलों के बोर्ड परीक्षा में परफ़ॉर्मेंस की कोई रिपोर्ट ज़ारी नहीं हुई वैसे ये कोई शिकवा-शिकायत नहीं है क्योंकि इसी बदलाव का तो वादा किया था बीजेपी ने, अब बदलाव सबके सामने है...

कल JEE-Advanced का रिज़ल्ट आया, दिल्ली सरकार के स्कूलों से कितने बच्चे सलेक्ट हुए, पता नहीं.. पिछले साल 158 बच्चे सलेक्ट हुए थे। दो महीने पहले JEE-Mains का रिज़ल्ट आया था, दिल्ली सरकार के स्कूलों से कितने बच्चे सलेक्ट हुए, अभी तक नहीं पता.. पिछले साल 783 बच्चे सेलेक्ट हुए थे। पिछले महीने बोर्ड परीक्षा के रिजल्ट्स आए थे, दिल्ली सरकार के स्कूलों का क्या परफॉरमेंस रहा, कोई ख़बर नहीं.. पिछले साल 12वीं में 97% और 10वीं में 94% रिजल्ट्स था। आख़िर इतनी खामोशी क्यों है? क्या ये सिर्फ़ बीजेपी सरकार की उदासीनता है, या फिर से सरकारी स्कूलों को हाशिए पर भेज कर प्राइवेट स्कूलों के लिए बाज़ार तैयार करने की मंशा?

इस साल दिल्ली सरकार के स्कूलों का बोर्ड परीक्षा रिजल्ट्स कैसा रहा? 2016 से 2024 तक ये ज़वाब सीबीएसई द्वारा रिजल्ट्स घोषित होने के चंद घंटों में मिल जाता था। इस बार 4 दिन बाद भी नहीं है!! यही नहीं, अगले दिन के अख़बार दिल्ली सरकार के स्कूलों के परफॉरमेंस और बच्चों को बधाई संदेश से भरे होते थे। इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। दिल्ली की बीजेपी सरकार ने इस बार 10वीं और 12वीं के दिल्ली सरकार के स्कूलों के नतीजों को अलग से जारी नहीं किया!! आख़िर क्यों दिल्ली की बीजेपी सरकार इन आंकड़ों को जनता के सामने नहीं लाना चाहती? शायद इसलिए क्योंकि 2025 का रिजल्ट्स पिछली सरकार के टर्म का आख़िरी रिज़ल्ट है। इस रिजल्ट का जो भी क्रेडिट है वो पिछली सरकार का है। पर हाँ, 2025 का रिजल्ट बीजेपी सरकार का बेसलाइन ज़रूर है। इसे मेंटेन रखने या आगे ले जाने की ज़िम्मेदारी नई सरकार पर है। और शायद बीजेपी सरकार कॉन्फ़िडेंट नहीं है कि जो लकीर आप सरकार ने खींची है, वो उससे बड़ी लकीर खींच पाएगी। इसलिए ये खामोशी है!! बता दें कि जब केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की कमान संभाली थी तो उस साल, यानि उनके बेसलाइन साल में दिल्ली सरकार के स्कूलों का 12वीं का रिज़ल्ट क्या था: -2015 में 1.4 लाख बच्चों में से 88% पास हुए थे -2024, यानि पिछले साल, 1.51 लाख बच्चों में से 97% पास हुए थे -और 2025, अभी पता नहीं… ख़ैर, मुद्दा सिर्फ़ आंकड़ों का नहीं है, ये बीजेपी सरकार की संवेदनहीनता का मसला है। दिल्ली सरकार के लगभग एक हज़ार स्कूल हैं। इस स्कूलों में तीन लाख से ज़्यादा बच्चों ने इस बार 10वीं और 12वीं की परीक्षा दी थी। रिज़ल्ट आया, बहुत सारे बच्चे सफ़ल हुए, कुछ असफल भी हुए होंगे। क्या दिल्ली की मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री का फ़र्ज़ नहीं बनता की वो अपनी ही सरकार के स्कूलों के बच्चों के लिए दो शब्द बोल दें? या कुछ न कह कर वो दिल्ली को संदेश देना चाहते हैं कि अब 2015 से पहले की तरह फ़िर से दिल्ली सरकार के स्कूल, दिल्ली सरकार की प्राथमिकता नहीं होंगे? और दिल्ली सरकार के स्कूलों और उनमें पढ़ने वाले बच्चों के प्रति मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री का कोई भावनात्मक लगाव नहीं होगा? अपने ही बच्चों के साथ कोई ऐसा व्यवहार नहीं करता। उम्मीद है बीजेपी सरकार कम से कम बच्चों के मामले में दलगत राजनीति से ऊपर उठने की कोशिश करेगी…

मोदी जी महान हैं भले ही वो भारतीय सेना में 1 लाख 80 हज़ार जवानों की संख्या कम कर दें। मोदी जी महान हैं भले ही वो अग्निवीर योजना लाकर जवानों की नौकरी 4 साल कर दें। मोदी जी महान हैं भले ही वो तीन गुना ज़्यादा दाम में राफ़ेल ख़रीदें मोदी जी महान हैं भले ही वो सूट बदल बदल कर पूरी दुनिया की सैर करें लेकिन वक़्त पड़ने पर एक भी देश समर्थन के लिए आगे न आये। मोदी जी महान हैं जिस देश में वो जाते हैं देश का भला हो न हो अडानी को ठेका ज़रूर दिलाते हैं। मोदी जी महान हैं भले ही वो पाकिस्तान को हथियार देने वाले चीन को लाखों करोड़ का व्यापार दें। मोदी जी महान हैं भले ही वो सर्वदलीय बैठक से ग़ायब रहकर बिहार की चुनावी रैली संबोधित करते हैं। मोदी जी महान हैं भले ही वो POK पर कब्जा और बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग कराने सुनहरा मौक़ा गवाँ दें। मोदी जी महान हैं भले ही वो पहलगाम में हमारी बहनों का सिंदूर उजाड़ने वाले दरिंदे आतंकवादियों को न मार पायें मोदी जी महान हैं भले ही वो आतंकवादी देश पाकिस्तान पर भरोसा कर लें मोदी जी महान हैं भले ही वो बहादुर भारतीय सेना को ट्रम्प के दबाव में सीजफायर करके रोक दें मोदी जी महान हैं भले ही वो तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार कर लें। मोदी जी महान हैं भले ही वो ट्रम्प के व्यापार बंद करने की धमकी के कारण सीजफायर कर दें। मोदी जी, “हमने तो सोचा था आप लीडर हैं,आप तो डीलर निकले”