
धर्म ज्ञान R P Pathak
February 7, 2025 at 05:19 AM
देवी का वास्तविक स्वरूप
जो त्रिदेव तक भी नहीं जानते
यस्या स्वरूपं ब्रह्मादयो
न जानन्ति-तस्मादुच्यते अज्ञेया |
एकैव विश्वरूपिणी-तस्मादुच्यते नैका ||
यस्या जननं
नोपलभ्यते तस्मादुच्यते अजा ||
देवी अज्ञेय है।
एक है अजा है अलक्ष्या है।
महादेवी ब्रह्मस्वरूपा है।
तथा उनसे ही समस्त जगत की उत्पत्ति हुई है।
वही विज्ञान तथा अविज्ञानरूपिणी हैं।
ब्रह्म भी हैं।
अब्रह्म भी हैं।
वह वेद भी हैं।
अवेद भी हैं।
वही सम्पूर्ण जगत की ईश्वरी हैं।
वह वेदों द्वारा वन्दित तथा पाप नाशिनी देवमाता अदिति या दक्षकन्या सती के रूप की हैं।
वही "आठवसु" "एकादश रूद्र" "द्वादश आदित्य" "असुर" "पिशाच" "यक्ष" और "सिद्ध" भी हैं।
वह आत्मशक्ति हैं।
विश्व को मोहित करने वाली हैं।
श्रीविद्यास्वरूपिणी महा त्रिपुरसुन्दरी है।
त्वमेव सर्व जननी-मूल प्रकृति ईश्वरी |
त्वमेवाद्या सृष्टि विधौ-स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका ||
परब्रह्म स्वरूपा त्वं-सत्या नित्या सनातनी |
सर्वबीज स्वरूपा च-सर्वपूज्या निराश्रया ||
यह शक्ति
मूल-प्रकृति रूपा है।
त्रिगुणात्मिका है।
परमब्रह्मस्वरूपा है।
सर्वपूज्या है।
प्रख्यात् ग्रन्थ
"वरिवस्या रहस्य" के अनुसार
महाशक्ति को प्रकाश तथा विमर्श दोनों स्वरूपों में माना गया है।
‘स जयति महान प्रकाशो यस्मिन दृष्टे न दृश्यते किमपि |
कथमिव यस्मिन ज्ञाते सर्वं विज्ञात मुच्यते वेदैः ||
उस महान प्रकाश रूप
महाशक्ति की जय हो
जिसे देखने तथा जानने के पश्चात समस्त ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है।
नैसर्गिकी स्फुरत्ता विमर्श रूपा अस्य वर्तते शक्तिः |
तद् विज्ञानार्थ मेव चतुर्दश विद्या स्थानानि ||
उस महान विमर्श रूपा
महाशक्ति को जानने के लिए चतुर्दश विद्याओं की सहायता ली जाती है।
शक्ति का
प्रमुख लक्षण स्पन्दन गति है।
स्पन्दन समाप्त होते ही जीवन समाप्त हो जाता है।
शास्त्रों में परमेश्वर को शक्तिमान तथा परमेश्वरी को उसकी शक्ति बताया गया है।
जिस प्रकार अग्नि का महत्व तभी तक है जब तक उसके अन्दर दाहिका-शक्ति जलाने की शक्ति विद्यमान रहती है।
उसी प्रकार परमेश्वर भी तभी तक शक्तिसम्पन्न रह पाता है जब तक उसके अन्दर शक्ति विद्यमान रहती है।
ब्रह्म को सर्वशक्ति की
प्रमुख तीन शक्ति "ज्ञानशक्ति" "इच्छाशक्ति" तथा "क्रियाशक्ति" है।
यही शक्ति समस्त ब्रह्माण्ड की रचना पालन तथा संहार करने का कार्य करती है।
यही शक्तियां समस्त जड़-चेतन पदार्थों के अन्दर नाना रूपों तथा तथा नामों से विद्यमान है।
संसार की
रचना में : स्पन्दशक्ति
जल में : द्रवशक्ति
अग्नि में : दाहकशक्ति
आकाश में : शून्यशक्ति
चेतन शरीर में : चितशक्ति
वीर पुरूषों में : वीर्यशक्ति विद्यमान रहती है।
जय माँ भवानी 🙏🙏🌹🌹
🙏
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