
'अपनी माटी' पत्रिका
February 1, 2025 at 01:59 AM
यह ज्ञात ही हैं कि आधुनिक चित्रकला का विकास पश्चिमी देशों में पहले हुआ तत्पश्चात भारत में हुआ है। विश्वभर में हुई औद्योगिक क्रांतियों, युद्धों और आंदोलनों से उत्पन्न परिवर्तनों ने सामाजिक, राजनीतिक और कलाके क्षेत्रों को आधुनिकता की ऊँचाइयों तक पहुंचाया है। इस संदर्भ में प्रभाववाद,घनवाद, बिंदुवाद, अभिव्यक्तिवाद, दादावाद और अतियथार्थवाद जैसे कला आंदोलन हुए जो पारंपरिक शैलियों से हटकर प्रायोगिक दृष्टिकोण और संकल्पनात्मक कला निर्माण की दिशा में बदल गए, इसका प्रारंभ 𝟏𝟗वीं सदी के अंत और 𝟐𝟎वीं सदी के शुरुआत में हुआ था(1)। दो विश्वयुद्धों के परिणाम स्वरूप कलाजगत पर उसका प्रभाव देखने को मिलता है जिसने आधुनिक कला को नए आयाम दिए। ऐसा हमें पश्चिमी देशों में देखने को मिलता है। भारत में भी ब्रिटिश शासनकाल में कला आंदोलन हुए जिसमें स्वदेशी आंदोलन भी शामिल था। उस समय चित्रकला के क्षेत्र में भी स्वतंत्रता की आवश्यकता थी और राजा रविवर्मा ने पाश्चात्य तकनीकों में भारतीय देवताओं के तेल चित्रण के माध्यम से सामान्य जनको उनकी पूजा का हक दिया। यहाँ से आधुनिक भारतीय चित्रकला का आरंभ होता है। इसकी शुरूआत बंगाल के पुनरुत्थान कला आंदोलन से हुई जिसमें स्वदेशी,राष्ट्रवादी आधुनिक कला को महत्वपूर्ण माना गया। इस में अवनिंद्रनाथ टैगोर अपनी चित्रकारिता के माध्यम से 𝟏𝟗वीं सदी के आधुनिक चित्रकला के प्रमुख नेता बने। 𝟐𝟎वीं सदीके अंतिम दशकमें हुए पुनरावलोकन में देखा गया कि पहले की तुलना में आधुनिक भारतीय चित्रकला अब पारंपरिक शैलियों को परिचायित नही करती है बल्कि भारतीय चित्रकारों की चेतना को एक नई दिशा की ओर बदलती है। भारतीय आधुनिक चित्रकला सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश से गहरायी से जुड़ी हुई है जब कि इसकी सीमा और मात्रा समय के साथ बदलती रहती है। यह सामाजिक सचेतता और अभ्यास से आत्म जागरूकता और सत्यापन के साथ चित्रित होती है। जिसमें कलाकार समाज की वास्तविकता को अपनी सृजनशीलता से स्व-अभिव्यक्ति की पहचान के लिए जोड़ता है।
[" शोध आलेख : भारतीय समकालीन चित्रकला में सामाजिक दृष्टिकोण और उसकी प्रयोगात्मक दिशा / प्रशांत कुवर एवं शिवानंद बंटानूर "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( दृश्यकला विशेषांक अंक - 55 ) ]
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