'अपनी माटी' पत्रिका
'अपनी माटी' पत्रिका
February 4, 2025 at 11:57 PM
प्रस्तुत शोध पत्र में 84 सिद्धों के क्रम में नव नाथों को महत्त्व प्रदान किया है। यही नवनाथ नाथ संत परम्परा के आधार हैं। नाथ का अभिप्राय ब्रह्म का बोध कराने से है। नाथ पंथी हठयोग की विशिष्ठ साधना का अनुसारण करते थे, जिन्हें योगी कहा गया। यह गोरखनाथी, कनफटा, पवित्री, दर्शनी योगी के रूप जाने गए। गोरखपंथी लोग कान के मध्य भाग में कुण्डल धारण करते थे। यह इनकी विशेष पहचान थी । नाथ सिद्धों ने सामाजिक सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया। इस पंथ परम्परा में सभी जाति तथा धर्म के लोगों का बराबर सम्मान था। पंजाब प्रांत में मुसलमान वर्ग के भी योगी पाये गए। इन्हें रावल के नाम से पुकारा जाता है। नाथ परम्परा का प्रभाव केवल सामान्य जन मानस में ही नहीं था बल्कि राजाओं और राजवंशों के लोगों ने भी गृह त्याग कर योगी बन समाज को संदेश देने का प्रयास किया। जिसमें राजा भर्तृहरि जो उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के बडे़ भाई थे। इसी प्रकार गोपीचन्द्रनाथ जो बंगाल के राजा मानिकचन्द के पुत्र थे। इसी क्रम में कनिफानाथ यह मद्र देश के राजा सुरथ के पुत्र थे। उक्त नाथ संत राजा या राजा के भाई या पुत्रादि ने राज-पाठ छोड़कर योगी बनकर समाज को संदेश देने में महती भूमिका निभाई। नाथ योगी गोपीचन्दनाथ द्वारा आविष्कृत यंत्र सारंगी को बजाकर राजा भर्तृहरि की कहानियों को गा-गाकर गाँव-गाँव फेरी लगाते थे। 84 सिद्ध केवल वज्रयान परम्परा नहीं बल्कि नाथ परम्परा में भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। प्रत्येक परम्परा में अनेक योगी हुए लेकिन कुछ योगी विलक्षण सिद्धियों को प्राप्त करने के कारण सिद्ध संत कहलाए। प्रत्येक सम्प्रदाय या परम्परा में सिद्धों की सूची अलग-अलग मिलती है। बौद्ध एवं नाथों की सूची अलग प्राप्त होती है लेकिन उल्लेखनीय है कि बहुत सारे ऐसे नाम दोनों सम्प्रदायों में स्पष्ट देखे जा सकते हैं। यह 84 सिद्ध परम्परा नेपाल, तिब्बत, कामरूप, उड़ीसा ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी अपने अस्तित्व में थी। [" शोध आलेख : नाथ-सिद्धों में शिष्य परम्परा / रविन्द्र कुमार गौतम "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( अंक 57 ) ] लिंक 👉 https://www.apnimaati.com/2024/12/blog-post_830.html

Comments