'अपनी माटी' पत्रिका
'अपनी माटी' पत्रिका
February 6, 2025 at 03:00 AM
क्या आप ऐसी दुनिया की कल्पना कर सकते हैं जिसमें खेल और खिलौने बिलकुल भी न हों? जहां बचपन हो, मगरउसकी निश्छल हंसी, उसकी शरारतें, सपने और उमंगें सब नदारद हों. नहीं न! गरीब से गरीब और विपन्नतम स्थितियों में जी रहा बचपन भी अपने लिए खिलौने चुन लेता है. खिलौनों का महंगा या दुर्लभ होना कतई आवश्यक नहीं हैं. बच्चे की रचनात्मक क्षमता मिट्टी, रेत, फूलों, पत्तों, कागज, पेंसिल यहां तक कि संपर्क में आने वाली प्रत्येक वस्तु को खिलौना बना सकती है. ‘जंगल बुक’ के पात्र ‘मोगली’ से कौन परिचित नहीं है. ऐसे ही एक और बालक की कल्पना करते हैं जो जन्म के साथ ही अपने माता-पिता से बिछुड़ गया हो. जो मानव पेड़-पौधों, वन-लताओं और जंगली जानवरों के बीच बड़ा हुआ हो. उस अवस्था में वह मानव-सभ्यता से दूर होगा. मगर उन परिस्थितियों में भी उसकी कल्पना, उसका कौतूहल अपने लिए खिलौने खोज ही लेगा. बालक द्वारा अपने परिवेश को समझने की शुरुआत खिलौनों के माध्यम से ही होती है. बगैर खिलौनों के बचपन की कल्पना असंभव है. जब से मनुष्य ने दुनिया को समझने की शुरुआत की थी, तभी से खिलौने और बालक की कल्पना एक-दूसरे को समृद्ध करते आए हैं. बच्चों की भौगोलिक परिस्थितियों में अंतर हो सकता है. उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थितियां भिन्न हो सकती हैं. इस हिसाब से उनके खिलौनों का रंग-रूप, मूल्यादि भी अलग-अलग हो सकते हैं....परंतु यह कतई संभव नहीं है कि बालक हो और खिलौने बिलकुल न हों. गैबरियल गुटोन के शब्दों में खिलौने बालक के समाजीकरण का माध्यम होते हैं. उसी के शब्दों में—‘खेल वह युक्ति हैं जिनके माध्यम से बच्चे अपने परिवेश से जुड़ते हैं. जिनकी मदद से वे संसार को अनुभव करना शुरू करते हैं. नए कौशल का अभ्यास करते हैं, नवीन विचारों को आत्मसात करते हैं. कुल मिलाकर खेल बचपन के लिए अनिवार्य गतिविधियां हैं.’(गुटेन, यूजिंग टॉयजटू सपोर्ट इन्फेंट टोडलर्स लर्निंग एंड डेवपलमेंट). और खेल यदि बचपन की नैसर्गिक गतिविधियां हैं तो खिलौने भी बालक की नैसर्गिक आवश्यकता कहे जा सकते हैं बालक और खिलौनों का संबंध सभ्यता के आदिकाल से है. प्रस्तर युग में बालक के खिलौने भी पत्थर के ही रहे होंगे. नदी और समुद्र किनारे रहने वाले बच्चों के लिए रेत का घर ऐसा खिलौना होता है जिसे वे रोज तोड़ते और बनाते हैं। [" आलेख : बचपन के खेल, गीत, और बाल साहित्य / ओमप्रकाश कश्यप "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( बाल साहित्य विशेषांक अंक - 56 ) ] लिंक 👉 https://www.apnimaati.com/2024/12/blog-post_35.html
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