'अपनी माटी' पत्रिका
'अपनी माटी' पत्रिका
February 8, 2025 at 02:06 AM
दक्षिण से रामानुजाचार्य ने वैष्णव उपासना दर्शन को अवतारवाद से जोड़ा, उसके बाद रामानुजाचार्य के सिद्धांत को विशिष्टाद्वैत सिद्धांत (विशिष्टयो अद्वैतम) के रूप में जाना जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "गुणों द्वारा विशेषता वाली वास्तविकता की अद्वैतता।" विशिष्टाद्वैत का मूल सिद्धांत शरीरात्मा भाव है। इस प्रकार, ब्रह्म में पदार्थ और व्यक्तिगत आत्माएं उनके शरीर के रूप में हैं, और इसलिए वह सर्वोच्च प्राणी है, जिसमें सभी वास्तविकता समाहित है। रामानुजाचार्य के शिष्य रामानंद ने उनके दर्शन को आगे बढ़ाया।[1] रामानंद ने अपने अनन्य रामानुजाचार्य की भक्ति परंपरा को सर्वसामान्य बनाने व प्रचलित करने हेतु एक केंद्र के रुप में पंथ को स्थापित करने का काम किया। रामानंद को एक धर्म एवं समाज सुधारक के रूप में भी देखा जाता है। इन्होंने पारंपरिक व्यवस्था जिसमें शिक्षा पर केवल ब्राम्हणों का एकाधिकार था उसे बदलकर सभी जाति एवं वर्ग के लोगों के लिए राम की उपासना का सरल माध्यम प्रदान किया। भगवान विष्णु के अवतार (महापुरुष) के रूप में राम को स्थापित करने का काम किया। उपासना विधि एवं कर्मकांड से ऊपर राम को कर्मयोगी मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप परिभाषित कर रामानंद ने अस्तित्व एवं आस्था को एक नया रूप प्रदान किया। काशी को रामानंदी सम्प्रदाय का केंद्र बनाने के साथ ही हिन्दी भाषा को पंथ के प्रचार का माध्यम भी इन्होंने बनाया ताकि जनमानस तक ज्यादा से ज्यादा उनका विचार पहुंच सके। एक विचारक व समाज सुधारक के रूप में रामानंदाचार्य ने समकालीन सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए अपने पंथ के विचारों को परिभाषित किया। जब समाज इस्लामिक संस्कृति के प्रभावों पहली बार परिचित हो रहा था वैसे समय में धार्मिक समरसता को बनाने एवं जातीय वैमनस्यता को त्यागने की शिक्षा उन्होंने दी। [" शोध आलेख : रामानंदी पंथ का उद्भव और विकास / अनुजा त्रिपाठी "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( अंक 57 ) लिंक 👉 https://www.apnimaati.com/2024/12/blog-post_777.html
❤️ 🙏 2

Comments