'अपनी माटी' पत्रिका
February 10, 2025 at 02:15 AM
समकालीन कला का अर्थ तात्कालिक समय में प्रचलित कला से है, जिसमें अप्रचलित कला शैलियों व प्रवृत्तियों का विकास हुआ है, जिसका उद्देश्य सौंदर्य के साथ-साथ व्यक्तिगत विचारों और सामाजिक संदेशों को अभिव्यक्त करना है। समकालीन कला का मुख्य गुण प्रयोगवाद है। प्रयोगवाद वह रचनात्मक दृष्टिकोण है जिसमें परंपरागत कला तकनीकों, माध्यमों और शैलियों का त्याग करते हुए नवीन रूपों, विचारों और सृजनात्मक माध्यमों की खोज की जाती है। समकालीन दृश्यकला में इस प्रकार के प्रयोग निरंतर होते आए हैं। दृश्यकला अतीतकाल से ही धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा व्यक्तिगत भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम रही है। शैल-चित्रों के रूप में विकसित होकर धार्मिक अभिव्यक्ति तथा राज्याश्रयों के वैभव को प्रकट करने में इसका महत्वपूर्ण स्थान रहा। “सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक परिवर्तन से प्रभावित वैचारिकता कला में अन्तर्निहित मूल्यों को जहाँ प्रभावित करती रही है, वहीं भौतिकता के विकास एवं यान्त्रिकता की गति के प्रभाव से इसके बाहय रूप भी परिवर्तित होते रहे हैं, दरअसल कला के सृजन की आन्तरिक गत्यात्मकता कभी ठहरी नहीं है।आज भी यह तत्कालीन परिस्थितियों तथा व्यक्तिगत भावनाओं के संप्रेषण का प्रमुख माध्यम है।आधुनिक चित्रकला प्रभाववादी, घनवादी, अभिव्यंजनावादी, अमूर्त अभिव्यंजनावादी आदि प्रवृतियों का सहारा लेकर आगे बढ़ती रही। वैचारिक व तकनीकी उन्नति ने कलाकारों को अनगिनत अवसर प्रदान किए। बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशक के बाद यूरोपीय कला परिदृश्य में रचनावाद, भविष्यवाद, सूक्ष्मवाद, संरचनावाद जैसी अल्पकालिक कला प्रवृत्तियों का उद्भव हुआ, जिन्होनें तीव्र गति से कलात्मक विचारों को परिवर्तित किया तथा नवीन प्रकार के सौंदर्यशास्त्रीय व दार्शनिक विचारों का प्रादुर्भाव हुआ है। उक्त कला शैलियों व माध्यमों में विभिन्न प्रयोग हुए जिसके फलस्वरुप प्रयोगवादी युग का आरंभ हुआ तथा समकालीन कला परिदृश्य में रचनात्मक परिवर्तन होने लगे। धीरे-धीरे अन्तर्राष्ट्रीय कला समुदायों एवं संगठनों में आपसी सम्वाद और सहकारिता का वातावरण विकसित होने लगा। “ऐसे सहकारी और साझा सम्पर्कों से सृजनात्मक आदान-प्रदान के द्वारा विश्व स्तर पर कला-प्रोन्नति के अवसर बढ़े। जिसने कलाकारों को नवीन सृजन हेतु प्रेरित किया। समकालीन कलाकारों ने अभिव्यक्ति हेतु दृश्यकला के रचनात्मक माध्यमों व प्रवृत्तियों की खोज द्वारा नये आयाम स्थापित किए, जो एक कलाकार को समाज में अपने विचारों को सृजनात्मक ढंग से प्रस्तुत करने हेतु पहले की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।
[" शोध आलेख : भारतीय दृश्य कला का समकालीन परिदृश्य एवं प्रयोगवादी प्रवृतियाँ / चानण मल एवं लोकेश जैन "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( दृश्यकला विशेषांक अंक - 55 ) ]
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