'अपनी माटी' पत्रिका
'अपनी माटी' पत्रिका
February 13, 2025 at 01:16 PM
देश में बाल साहित्य के लिए प्रामाणिक नाम माने जाने वाले नेशनल बुक ट्रस्ट ने हाल ही में बच्चों के लिए एक किताब छापी - खाटू श्याम पर। उसके चतुर्थ आवरण पर एक चित्र है जिसमें कोई किसी की कटी हुई गर्दन हाथ ले कर खड़ा है। वैज्ञानिक चेतना और तार्किक समाज के लिए प्रतिबद्व संस्था से पहले भी रामायण और महाभारत पर, मनोज दास जैसे लेखक द्वारा लिखी ‘कृष्ण कथा’ जैसी किताबें आई हैं लेकिन उसमें प्रसंग, चित्र आदि बाल मन के अनुरूप थे। यह बानगी है कि बाल साहित्य तैयार कने में हमारी संवेदना और सरोकार किस तरह शून्य हो रहे हैं। सनद रहे बाल मन और जिज्ञासा एक-दूसरे के पूरक शब्द ही हैं ।बचे के संबंध में जिज्ञासा का सीधा संबंध कौतुहल से है। वह जो पढ़ता है, उससे अधिक जो देखता है उससे कुछ कम जो सुनता है , वह उसके मानसिक विकास का आधार बन जाता है। शिशुकाल में उम्र बढ़ने के साथ ही अपने परिवेश की हर गुत्थी को सुलझाने की जुगत लगाना बाल्यावस्था की मूल-प्रवृत्ति है। भौतिक सुखों व बाजारवाद की बेतहाशा दौड़ के बीच दूषित हो रहे सामाजिक परिवेश और बच्चों की नैसर्गिक जिज्ञासु प्रवृत्ति पर बस्ते के बोझ के कारण एक बोझिल सा माहौल पैदा हो गया है। ऐसे में बच्चों के चारों ओर बिखरे संसार की रोचक जानकारी सही तरीके से देना बच्चों के लिए राहत देने वाला कदम होता है। पुस्तकें इसका सहज, सर्वसुलभ और सटीक माध्यम रही हैं। भले ही शहरों में रहने वाले बच्चों का एक वर्ग इंटरनेट व अन्य माध्यमों से ज्ञानवान बन रहा है, लेकिन आज भी देश के आम बच्चे को ज्ञान, मनोरंजन, और भविष्य की चुनौतियों का मुकाबला करने के काबिल बनाने के लिए जरूरी पुस्तकों की बेहद कमी महसूस होती है। विशेष रूप से हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओँ में एक तो किताबें बहुत कम हैं, फिर उनकी सुदूर आंचलिक क्षेत्र की बात छोड़ दें, दिल्ली-मुंबई जैसे नगरों में भी उपलब्धता बेहद कमजोर है। *[ आलेख : बच्चों को चाहिए ढेर सारी किताबें / पंकज चतुर्वेदी* - लिंक - https://www.apnimaati.com/2024/12/blog-post_100.html?m=1 *]
🙏 1

Comments