
'अपनी माटी' पत्रिका
February 15, 2025 at 01:35 AM
“शिक्षा का उद्देश्य तथ्यों को सीखना नहीं होता है बल्कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य दिमाग को प्रशिक्षित करना होता है।” - अल्बर्ट आइंस्टीन
इस उक्ति के आलोक में जब हम अपनी शिक्षा व्यवस्था को देखते हैं तो बहुत संतोषजनक स्थिति नहीं दिखायी पड़ती।खासकर बाल शिक्षण में यह स्थिति और ख़राब है।तथ्यों को रटने की प्रवृति से ही हमारे यहाँ टॉपर का चुनाव होता है। एक बच्चे के भीतर कितनी संवेदना विकसित हुई? या उसमें नागरिकता बोध का कितना विकास हुआ, इस पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। जबकी होना ऐसा ही चाहिए। हम वर्तमान शिक्षा व्यवस्था से एक ऐसे भावी समाज की कल्पना करते हैं जहाँ मानवीय मूल्य गौण होंगे। मनुष्य की संवेदनाओं का कोई खास महत्त्व नहीं होगा। किसी को किसी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।भविष्य के इस समाज की आहट कहीं-कहीं हमें सुनाई भी देने लगी है। अभीहाल ही में लखनऊ के एक पब्लिक स्कूल की वह घटना ने मुझे विचलित कर दिया था किजब छात्रों का एक गुट आपस में लड़ जाते हैं।एक बच्चे को एक लड़का गमला उठाकर उसके सिर परमार देता है और वह लड़का वही मर जाता है। शिक्षक जब इस घटना का विरोध करते हैं तो बच्चे उन्हें पिस्तौल दिखाकर मारने की धमकी देते हैं। पहले इस तरह की घटनाएँ पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका वगैरह में सुनाई देती थी कि बच्चे अपने शिक्षकों पर गोली चला देते हैं। लेकिन आज भारतीय परिप्रेक्ष्य में जहाँ शिक्षा और संस्कार का अन्योन्याश्रित संबंध है वहाँ इस तरह की घटना, यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि आखिर शिक्षा का उद्देश्य क्या है?निश्चित रूप से भारतीय शिक्षा का उद्देश्य यह तो नहीं है।इस सन्दर्भ में श्री अरविंद ने शिक्षा के उद्देश्य को परिभाषित करते हुए कहा है कि -“बालक की प्रकृति में जो कुछ सर्वोत्तम, सर्वाधिक शक्तिशाली,सर्वाधिक अन्तरंग और जीवन पूर्ण है, उसको व्यक्त करना शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए।
[" शोध आलेख : हिंदी की बाल पोथियों में शामिल कविताओं और वर्णमाला का बालमन पर प्रभाव / संगीता मौर्य "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( बाल साहित्य विशेषांक अंक - 56 ) ]
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