'अपनी माटी' पत्रिका
'अपनी माटी' पत्रिका
February 18, 2025 at 01:33 AM
कला के माध्यम के रूप में रंग, तूलिका, कागज, कैनवास, पत्थर, लकड़ी, मिट्टी, धातु और अन्य पारंपरिक सामग्रियों की जगह कुछ बनी-बनाई वस्तुओं का भी प्रयोग 20वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में किया जाने लगा था। दादावाद का यह प्रयोग कला के क्षेत्र में एक अविश्वसनीय घटना के लिए प्रचलित हुआ। आज के समय में यह प्रक्रिया प्रचलित है की हर-एक वस्तु का प्रदर्शन कलाकृतियों के रूप में किया जा सकता है। कलाकार किसी भी वस्तु को अपने अनुभव अपने ज्ञान (ज्ञान वहीं जो हमें अपने इंद्रियों के सहारे प्राप्त सूचना से बनता है) के अनुरूप विवेचित करता है, उसे कलाकार की कल्पना कहते हैं। कल्पना तो यथार्थ की अनुभूतियों के आधार पर ही बनती हैं। खैर... हम यहाँ कुछ कलाकारों के उन कलाकृतियों की विवेचना करने का प्रयास कर रहे हैं जिन कलाकृतियों में वस्तु अपना मूल धर्म छोड़ कर किसी और कारण से प्रदर्शित किए गए हैं। एक सामान्य चर्चा कला कल्पना की करेंगे अपितु जिन कलाकृतियों को हम यहाँ देखेंगे वह कला और कल्पना का मूर्त रूप है। कल्पना के बिना कला की संभावना नहीं उपजती है। जब मनुष्य अपने अनुभव अपनी कल्पना को मूर्त रूप देता है तो वह कला की संज्ञा धारण करने के योग्य हो जाती है। टॉमस हॉब्स कहते हैं “कल्पना संवेदन का मूल होता है।”(1) इमैजिनेशन एक लैटिन शब्द है जो इमेज से संबंधित है। कल्पना मानव-मस्तिष्क की बिंब-विधायिनी शक्ति है। अनुभव से प्राप्त बिंब को संचित करना मानव-मस्तिष्क का प्राथमिक कार्य है जिसके आधार पर हमारी कल्पना जन्म लेती है। लोंगिनुस ने कहा है कि बिंब और कल्पना के लिए ग्रीक शब्द ‘फेंटेसिया’ उपयुक्त है। जिसका उपयोग काव्य और दृश्य कलाओं के लिए किया जाता है। अरस्तू ने अनुकरण शब्द का प्रयोग कला के संदर्भ में किया है। तात्पर्य यह कि कला मूल का पुनरुत्पादन मात्र है और जिसका मूल अनुभूति और कल्पना को माना है। कलाकृति तो निर्माता के मन में उपजे बिंब का प्रतिफल है। कॉलरिज ने कल्पना को दो भागों में वर्गीकृत किया है मुख्य कल्पना और गौण कल्पना साथ ही कल्पना और ललित कल्पना (फैंसी) में अंतर दिखला कर दोनों की अलग-अलग विशेषताओं पर विवेचना की है। [" शोध आलेख : कला में सामग्रियों का नव विनियोग / रमाकांत "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( दृश्यकला विशेषांक अंक - 55 ) ] लिंक 👉 https://www.apnimaati.com/2024/12/blog-post_89.html
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