'अपनी माटी' पत्रिका
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February 20, 2025 at 01:01 AM
जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली में रिफ्रेशर कोर्स का आज पहला दिन था। अफ़लातून को रिफ्रेशर कोर्स करना था, और वह भी केवल ऑफलाइन। ऑनलाइन के ढेर सारे विकल्प थे लेकिन हमने छोड़ दिए। हमने मल्लब अफ़लातून, बलदेव और दीपक जी। कोरोना के दौरान ऑनलाइन करना-कराना हमारी मज़बूरी थी। लेकिन अब लोगों ने इसे ही आदत बना लिया। बाहर हम जाएँगे नहीं, लोगों से मिलेंगे नहीं, पढ़ेंगे-गुनेंगे नहीं, तो तरोताज़ा (रिफ्रेश) कैसे होंगे? ऑनलाइन के फ़ायदे भी हैं लेकिन वह फेस टू फेस लर्निंग का विकल्प नहीं। और हिंदी वालों ने ‘रिफ्रेशर’ का कितना ख़राब हिंदी अनुवाद किया है- ‘पुनश्चर्या’; क्या ‘पुनर्नवा’ नहीं हो सकता था? या और कुछ भी? चलती जुबान वाली हिंदी में। हिंदी का सबसे ज्यादा कबाड़ा इन पारिभाषिक व तकनीकी शब्दावली गढ़ने वालों ने ही किया है। आमफ़हम वाली हिन्दुस्तानी जबान को कठिन तकनीकी शब्दों से लादकर, खराब अनुवाद करके। देस भाषा में भी बहुतेरे विकल्प मौजूद होते हैं लेकिन नहीं साहब, इन्हें तो कोई संस्कृतनिष्ठ जटिल शब्द ही लाना है। फिर चाहे जनता उसे बरते ही न; भले ही अंग्रेजी या अन्य भाषा के उस शब्द को ही उसी रूप में वापरने लगे।... सो, इस रिफ्रेशर कोर्स के लिए अफ़लातून सुबह पौने सात बजे डबल डेकर ट्रेन में सवार हो दौसा से चला; अलवर से दीपक जी साथ हो लिए। ट्रेन ने दस बजे दिल्ली कैंट स्टेशन उतारा। वहाँ से हमने ऑटो लिया, रास्ते में मिले जाम से जामिया तक पहुँचने में हमें तकरीबन डेढ़ घंटा लग गया। अफ़लातून को बड़े शहर इसीलिए पसंद नहीं, भारी-भरकम ट्रेफिक के कारण, घंटों लगने वाले जाम के कारण। हम पहुँचे तब तक उद्घाटन सत्र ख़त्म हो चुका था। फोटो सेशन हो रहा था। अब्दुल बिस्मिल्लाह उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता थे। हम उन्हें सुनने से वंचित रह गए लेकिन फोटो सेशन में शामिल हो लिए। अब्दुल बिस्मिल्लाह जामिया में हिंदी विभाग में प्रोफ़ेसर थे। शायद अब सेवानिवृत्त हो गए हैं। उनके परिचय के लिए उनकी एक रचना ही पर्याप्त है- ‘झीनी झीनी बीनी चदरिया’। [" अफ़लातून की डायरी (6) : जामिया में रिफ्रेशर कोर्स / विष्णु कुमार शर्मा "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( अंक 57 ) ] लिंक 👉 https://www.apnimaati.com/2024/12/6.html
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