
Dr. Dilip Kumar Pareek
February 16, 2025 at 05:45 AM
यात्राएँ बहुधा अंतहीन हो जाती हैं...
एक यात्रा भविष्य में होने वाली यात्राओं का आधार बन जाती हैं। पड़ाव आते हैं, हम चलते हैं, हम थकते हैं, हम रुकते हैं लेकिन हम वापस खड़े हो जाते हैं।
मुझे वापस खड़े होकर चलने से सुंदर क्रिया आज तक नहीं मिली।
महाकुम्भ की यात्रा सम्पन्न हुई। काशीविश्वनाथ का आशीर्वाद भी मिला। रामलला की स्नेह सिक्त मनमोहक छवि हृदय में सर्वदा विराजमान रहे और हम भगवान भास्करवत् सदैव गतिमान रहें इसी कामना के साथ....
चरन् वै मधु विन्दति.....🙏
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