
Dr. Dilip Kumar Pareek
February 16, 2025 at 11:29 AM
रोटियाँ जितनी सुलभ हैं....
बुभुक्षा का मर्दन.....
उतना ही दुष्कर....
आदमी पाशविकता के हद तक
गिरता हुआ
गिराता हुआ
पुच्छ विषाण हीनता की
निर्लज्जता पर
अतिहास से
जिनके उदर में अति है।
उनकी उतनी अधोगति है
किसी गरीब से चंद कागज के टुकड़े की
दुर्दम्य आशा
रौरव की पालकी है
रिक्शा चलाकर अर्जित धन की
अनुचित लिप्सा से मृत्यु श्रेयस्कर है....
प्रभु
जो भी हो
मगर पेट छोटा देना
डॉ. दिलीप कुमार पारीक
( मेरी प्रथम पुस्तक बीज हूँ मैं... से )