Dr. Dilip Kumar Pareek
February 17, 2025 at 01:34 AM
समर्पण व्यर्थ है....
यह पहाड़ों को नहीं बना पाता पानी
समंदर को मीठा
कठोर हृदय को सुकोमल
त्याग त्याज्य है......
यह नहीं सिल पाता च्युत पत्र को शाखा से
ऊसर में पुष्प विकास
हृदय में स्थान
श्रद्धा अश्रद्धेय है......
यह नहीं भर पाती खाली जेब
भूखे का पेट
खाली मस्तिष्क
तो श्रेष्ठ है एकाकी हो जाना
यायावर, आत्मामोही......
डॉ. दिलीप कुमार पारीक
( मेरी प्रथम पुस्तक बीज हूँ मैं... से )
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