Dr. Dilip Kumar Pareek
Dr. Dilip Kumar Pareek
February 19, 2025 at 03:38 AM
अबोली की डायरी...... अंकुरण दर्शन जायते के ठीक बाद अस्ति की ओर संसार को बढ़ाता है। अबोली का अंकुरण इसी अस्तित्व बोध का सूचक है। पर क्या यह अस्तित्व किसी अस्तित्व की संज्ञा पर खरा है जब डायरी के हर दूसरे-तीसरे पन्ने पर लिखा हो क्या मैं मर जाऊंगी ? जुवि जी की यह यात्रा सूखे पहाड़ों की यात्रा है जिसमें दूर-दूर तक कहीं कोई पेड़ नहीं जिसके साये सुस्ताया जा सके। निर्मम पत्थर हैं जिनके कानों में पारा पिघला कर डाल दिया गया है। व्यक्तिशः मुझे लगता था कि हमारे सबसे नजदीकी व्यक्ति हमें सबसे कम जानते हैं या जानने की इच्छा रखते हैं यह इस पुस्तक के अंकुरण खंड से सिद्ध हुआ। क्या हो जब यौवन की दहलीज पर खड़ी लड़की को सबसे सुरक्षित जगह रसोई लगने लग जाए ? वो भी तब जब उसे पता हो कि औरतें अधिकतर रसोई में ही मार खाती हैं। क्या हो जब सबसे प्रिय आंटी वाले अंकल नरभक्षी निगाह से ऐसी लड़की का एक्सरे निकाल रहे हों। ना कहते बनता है ना छुपाते। लड़कियों के यौन शोषण के बारे में सबसे घृणित तथ्य यह है कि यह अधिकतर सबसे नजदीकी रिश्तेदार द्वारा ही किया जाता है। मुझे आज तक ऐसी लड़की नहीं मिली जो इस दौर से ना गुजरी हो। अबोली अब भी चुप है। सास के पोते की आस और नाभि दर्शन से अनुमान की कला प्रवीणता के आगे। तब जबकि विज्ञान लिंग निर्धारण में पुरुष को शतप्रतिशत कारक सिद्ध कर चुका हो तब एक पढ़ी-लिखी लड़की इस बाबत अनपढ़ औरतों से जो ताने सुनती है वो समाज का सबसे घृणित रूप है। तब क्या हो जब विवाह जैसे रिश्ते की बुनियाद झूठ पर रख लंबे मीनार पर चढ़ने को कहा जाए.....। मैं पढ़ रहा हूँ पर अब सपनों में अबोली और उसके पीछे दिखने वाली काली छाया मेरे मनोमस्तिष्क पर घर करती जा रही है। यह अंकुरण गहन कीच में हुआ है। अगला खण्ड उत्सर्जन है..... शायद अबोली अगले खण्ड में अपने भय को उत्सर्जित कर दे हालांकि यह आशंकित कल्पना है.... मैं जुवि जी को बेबाक लेखनी के लिए साधुवाद के साथ सहानुभूति ज्ञापित करता हूँ। शेष उत्सर्जन पढ़ने के बाद...............। डॉ. दिलीप कुमार पारीक
❤️ 👍 👌 6

Comments