
Vivek Kolhe
February 26, 2025 at 06:09 AM
वैराग्ययोगी शिव शूलपाणी । सदा समाधी निजबोधवाणी ।
उमानिवासा त्रिपुरांतकारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥
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