
श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट
May 24, 2025 at 02:57 AM
*सज्जन को दुर्जनों से उतनी असुविधा, दिक्कत, तकलीफ नहीं होती जितनी दुर्जनों को सज्जनों से होती है -* वह भी खामख्वाह, नाहक, बेमतलब !
दुर्जन सज्जनों का अनभल भी बहुत करते हैं,
पर सज्जन तो ठहरे सज्जन सह लेते हैं,
सज्जनों की सहनशीलता ही सिद्धि है,
पर जब पानी नाक तक आता है तो सज्जन कुछ ऐसा करते हैं कि सिद्धि प्रसिद्धि में परिवर्तित हो जाती है,
*श्रीकृष्ण को शिशुपाल ने सौ गालियाँ दीं*
जानते हैं कैसी कैसी ?
*स्त्री को मारनेवाला,*
*चल-सम्पत्ति को नुकसान पहुँचानेवाला,*
*गो वंश हन्ता,*
*स्त्री-पीड़क,*
*जिसका आश्रय लिया उसी को हानि पहुँचाने वाला,*
*जीव-जन्तुओं को सताने वाला,*
*लम्पट-लबार,*
*छलिया आदि आदि*
ऐसे लोगों को सज्जनों की सभा में स्थान नहीं मिलता और वह दण्ड का पात्र होता है
शिशुपाल ने यही धाराएं कृष्ण पर लगा कर अग्र-पूजा हेतु अयोग्य घोषित किया।
*स्त्री को मारने वाला* बोलने से पहले उसने यह नहीं बताया कि पूतना स्वयं श्रीकृष्ण को मारने गयी थी
*चल-सम्पत्ति को नुकसान* पहुँचाने वाले में छकड़े को पलटना गिना पर शकटासुर का नाम न लिया,
*गोवंश हन्ता बोला पर* यह नहीं बताया कि वह बछड़ा/वत्स असुर था,
गोवर्धन धारण पर बोला कि दीमक लगे पोल मिट्टी के ढूहे को उठाना तो बच्चों का खेल है - इसमें क्या विशेष था ?
*स्त्री-पीड़क* बोला पर गोपियों के निश्छल प्रेम में वह सब हुआ यह नहीं बोला,
जिसका आश्रय लिया उसी को हानि पहुँचाने वाला बोला- पर कंस की क्रूरता नहीं बतायी,
जीव-जन्तुओं को सताने वाला - बोल कर कालिय नाग आदि का उपद्रव छिपाया,
छलिया - बोला पर ब्राह्मण रूप में जरासंध से युद्ध मांगा यह नहीं बताया...
आप समझिये, यही सब अब भी होता है।
*श्री हरिः नारायण*
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🙏
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