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श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट

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About श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट

Shree Venkatesaya Seva Trust was established in September 2022 as a registered charity trust and a non-profit organization. The main objective of establishing Shree Venkatesaya Seva Trust is to strive to bring back our lost knowledge by educating people about Sanatana Dharma, History, Vedic Science, Yoga and Indian Culture and to support the development of the elderly and retired, as well as the abandoned and the underprivileged. To promote, which may result in third generation revolution of socially responsible society in general, and also we aim to enhance Indian tradition, cultural activity and its heritage, and value system all over India. Shree Venkatesaya Seva Trust endeavors to provide medical relief to the sick and infirm by supplying medicines, treating and arranging financial assistance to the elderly, sick, and suffering who are in need of assistance. The organization also focuses on fostering and educating orphans and the poor, regardless of their caste or creed. Equip them with financial support in the form of grants, aids and scholarships to enable them to continue their studies; assisting poor girls in conducting their marriages; helping people affected by natural calamities such as floods, droughts and fires; And providing social services through construction of wells and tree plantation are some of the services we focUS on. Sri Venkatesaya Seva Trust aspires to empower the younger generation, especially women to recognize their strengths and potential which they can use to benefit the society, thereby making them psychologically and financially self-reliant.

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श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट
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5/13/2025, 11:45:00 AM

_*।। दुख जीवन का कठोर शिक्षक ।।*_ तनाव एवं समस्याएं ही हमारे मन को जागृत रखते हैं समाधान खोजते समय अनजाने ही हमारा व्यक्तित्व निखरता है। जैसे सोने में खोट मिलाए बिना आभूषण नहीं बनते, वैसे ही समस्याओं को सुलझाए बिना हमारा आत्मविश्वास नहीं बढ़ता है। दुःख ही हमें अपनो और गैरों से परिचित करवाता है। इसलिए अपने जीवन के किसी भी दुख को नकारात्मक ढंग से देखना सही नहीं है। दुख विद्यालय के सबसे कठोर अध्यापक की वह कक्षा है, जिसमें हम बेमन से तो बैठते हैं, लेकिन सबसे अधिक उसी दौरान सीखते भी हैं। *आज का दिन शुभ मंगलमय हो।* *श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट* https://whatsapp.com/channel/0029VabAWY87z4kcQNes4543

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5/13/2025, 1:44:15 PM

सृष्टि के प्रथम पत्रकार देवऋषि नारद जयंती आज ---------- हर वर्ष ज्येष्ठ माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि पर देवर्षि नारद जी की जयंती मनाई जाती है. शास्त्रों की माने तो नारद जी ने बहुत कठोर तपस्या की जिसके बाद उन्हें देवलोक में ब्रम्हऋषि का पद मिल सका. नारद जी को वरदान है कि वो कभी किसी भी समय तीनों लोकों में भ्रमण कर सकते हैं. नारद जी को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र कहा जाता है. ब्रह्माण्ड के संदेशवाहक के रूप में भी उन्हें जाना जाता है. नारद जी को उनकी विष्णु भक्ति के लिए जाना जाता है. मान्यता है कि नारद जयंती के दिन अगर पूरे मन से देवर्षि नारद जी की पूजा अर्चना की जाए तो भक्त को ज्ञान की प्राप्ति तो मिलती ही है. इस साल भी बहुत धूमधाम से नारद जी की जयंती मनाई जाएगी. जिसकी तिथि है- वैशाख शुक्ल द्वितीया है और यह तिथि इस साल 24 मई 2024 को पड़ रही है. नारद मुनि की रोचक जन्म कथा ------------------ पौराणिक कथाओं की मानें तो अपने पूर्व जन्म में नारद जी 'उपबर्हण' नाम के एक गंधर्व हुआ करते थे जिन्हें अपने रूप पर अति घमंड था. एक बार की बात है जब स्वर्ग में अप्सराएं व गंधर्व गीत और नृत्य में लीन थे और ब्रह्मा जी की उपासना अपनी कलाओं से कर रहे थे. इसी समय उपबर्हण स्त्रियों के साथ वहां आ गए, उपासना के समय ही वो रासलीला करने में लीन हो गए. यह देखकर ब्रह्मा जी क्रोध से भर गए और उपबर्हण को श्राप दिया कि उनका जन्म 'शूद्र योनि' में होगा. ब्रह्मा जी का श्राप और नारद जी का जन्म ----------------------- ब्रह्मा जी के श्राप का फल ये हुआ कि 'उपबर्हण' 'शूद्रा दासी' के घर जन्मे. इस जन्म में वो हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहा करते थे. कथा है कि एक दिन एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठकर वो तप कर रहे थे कि एकाएक भगवान की एक झलक उन्हें दिखाई दी लेकिन यह झलक तुरंत अदृश्य भी हो गई. ईश्वर के प्रति वो और अधिक आस्थावान हो गए. एक दिन आकाशवाणी की गई कि- हे बालक, अब तुम मेरे दर्शन इस जन्म में नहीं कर पाओगे पर अगले जन्म में तुम्हें मेरा पार्षद नियुक्त किया जाएगा. फिर क्या था 'उपबर्हण' अपने इस दूसरे जन्म में भगवान विष्णु के घोर तप में लीन हो गए जिसके कारण तीसरे जन्म में उपबर्हण का ब्रम्हा जी के मानस पुत्र के रूप में नारद जी के रूप में अवतरण हुआ. 🙏🏻🌸 *श्री हरिः नारायण* 🌸🙏🏻

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5/15/2025, 11:10:24 AM

🙏🏵️ *श्री हरिः नारायण* 🏵️🙏

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5/13/2025, 1:43:41 AM

_*।। कालचक्र और जीवन की गति ।।*_ जो बीत गया वह लौटने वाला नहीं। कालचक्र की गतिमय प्रकृति को समझते हुए अतीत के अनपेक्षित प्रसंगों का विश्लेषण, चिंतन मनन इस सीमा तक तो उचित है कि इनमें निहित संदेशों को समझा अपनाया जाए, किंतु इनमें लिपटे रहने का अर्थ है दूरदृष्टि का अभाव। यह प्रकृति व्यक्ति को नकारात्मकता के कुचक्र से नहीं उबरने देगी। बीते अप्रिय प्रसंगों में चित्त उलझा रहेगा तो आगामी कार्यों के लिए आवश्यक उत्साह और ऊर्जा नहीं बचेगी नाना रंग रूपों से सराबोर प्रकृति की वृहत योजना में जीवन प्रतिदिन घुट घुटकर जैसे तैसे गुजारने के निमित्त नहीं है। चिंताग्रस्त, शोकाकुल चेहरे और हावभाव न केवल किरदार पर बोझ होते हैं बल्कि आसपास के वातावरण में नकारात्मकता का प्रसार करते हैं। *आज का दिन शुभ मंगलमय हो।* *श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट*

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5/12/2025, 4:00:17 AM

_*।। अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस ।।*_ _मानवता की सेवा में रात - दिन रत सभी नर्सों को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!_ आपका नि:स्वार्थ सेवाभाव और स्नेहपूर्ण देखभाल हमारे समाज को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है जिसके लिए हम जैसे सभी मानव सदैव आप सभी के कृतज्ञ रहेंगे। *द लेडी विद द लैंप* के नाम से विश्वविख्यात मिस फ्लोरेंस नाइटिंगेल जी का जन्म 12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस शहर के कुलीन परिवार में हुआ था परिवार वालो के न चाहने के बाद भी नर्स सेवा का रास्ता चुना था। वो भी दौर था जब एक हाथ में लालटेन लेकर मरीजों को सेवा करती थी। उनके सम्मान में उनकी जयंती के दिन 1974 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया गया था। इसलिए आज के दिन देश भर में चिकित्सकीय सेवा देने वाली सभी नर्सों को एक बार पुनः हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। कोरोना महामारी के दौरान आप सभी स्वास्थ्य कर्मी एवं फ्रंटलाइन वर्करों का प्रयास प्रशंसनीय रहा था और आज भी है, ईश्वर आप सभी को उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्रदान करें। *श्री हरिः नारायण*

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श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट
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5/15/2025, 2:12:19 AM

_*।। अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस ।।*_ ( परिवार एक मंदिर ) मानव जीवन में संस्कारों की प्रथम पाठशाला का नाम ही परिवार है। एक आदर्श परिवार के बिना एक आदर्श जीवन का निर्माण कदापि संभव ही नहीं। परिवार ही वो मंदिर है जिसमें माता-पिता के रूप में स्वयं वो निराकार ब्रह्म, साकार रूप में विराजमान होकर रहते हैं। सच ही कहा गया है कि जिस घर में माँ-बाप हँसते हैं, उसी घर में भगवान बसते हैं। परस्पर प्रेम, सम्मान और सहयोग की भावना के साथ-साथ कर्त्तव्यनिष्ठा से ही मकान, घर और घर, परिवार बन जाता है। वर्तमान परिदृश्य में अथवा आज की इस सदी में हम इकट्ठे होकर ना रह सकें कोई बात नहीं लेकिन कम से कम एक होकर रहना अवश्य सीखना होगा । परिवार के साथ रहें, संस्कार के साथ रहें। *आप सभी को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।* आज का दिन शुभ मंगलमय हो। *श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट*

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श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट
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5/16/2025, 4:38:50 AM
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5/16/2025, 4:20:12 AM

_*शान्तिपूर्वक एक साथ रहने का अंतरराष्ट्रीय दिवस ( International Day Of Living Together In Peace )*_ हर साल 16 मई को मनाया जाने वाला शांतिपूर्वक एक साथ रहने का अंतरराष्ट्रीय दिवस हमें एक गहरे आध्यात्मिक सत्य की याद दिलाता है—शांति केवल बाहरी परिस्थितियों में नहीं, बल्कि हमारे भीतर की गहराई में बसती है। यह दिवस हमें न केवल दूसरों के साथ, बल्कि स्वयं और समस्त सृष्टि के साथ सामंजस्य स्थापित करने का निमंत्रण देता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, शांति का अर्थ है मन का वह शुद्ध अवस्था, जहां क्रोध, भय और द्वेष की छाया नहीं होती। यह वह अवस्था है, जहां हम हर प्राणी में एक ही दिव्य चेतना को देखते हैं। भारतीय दर्शन में, *वसुधैव कुटुंबकम्* का सिद्धांत हमें सिखाता है कि संपूर्ण विश्व एक परिवार है। इस दिवस पर, हम इस भावना को आत्मसात कर सकते हैं, जहां मतभेदों को स्वीकार करते हुए भी हम प्रेम और करुणा के धागे से जुड़ते हैं। शांतिपूर्वक एक साथ रहना केवल सामाजिक सहिष्णुता तक सीमित नहीं है; यह एक आंतरिक यात्रा है। जब हम ध्यान, प्रार्थना या आत्म-चिंतन के माध्यम से अपने मन को शांत करते हैं, तो हम न केवल स्वयं को, बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी शांति का उपहार देते हैं। एक छोटा सा क्षण, जब हम किसी के प्रति दया दिखाते हैं, किसी की बात को बिना पूर्वाग्रह सुने हैं, या किसी भिन्न संस्कृति को सम्मान देते हैं, वह शांति का बीज बोता है। आज, 16 मई 2025, आइए हम एक संकल्प लें—अपने हृदय में शांति की लौ जलाएं और उसे दूसरों तक पहुंचाएं। एक शांत मन ही वह दीपक है, जो अंधेरे को दूर कर सकता है। *आज का दिन शुभ मङ्गलमय हो।* *श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट* https://whatsapp.com/channel/0029VabAWY87z4kcQNes4543

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श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट
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5/11/2025, 5:05:29 AM

_*।। विश्व मातृ दिवस ।।*_ वैदिक धर्म में प्रतिदिन मातृदिवस, पितृदिवस तथा आचार्य दिवस होता है। तैत्तिरीयोपनिषत् में 'मातृदेवोभव, पितृदेवोभव, आचार्यदेवोभव..' से यह सत्य पुष्ट होता है। इसी वैदिक वचन के अनुरूप मनुस्मृति ( २/२२५-२३७ ) आदि में इन तीनों की सेवा को परम तप कहा गया। ( मनु०२/२२९ ) ये तीनों तीन लोक हैं, तीन आश्रम हैं, तीन वेद हैं और तीन अग्नि हैं। ( मनु०२/२३० ) जब तक ये जीवित रहें, तबतक इनकी नित्य शुश्रूषा ( परिचर्या ) करे। *तेष्वेव नित्यं शुश्रूषां कुर्यात् प्रियहिते रतः।* ( मनु०२/२३५ ) इनकी सेवा ही श्रेष्ठ धर्म है। *एष धर्मःपर साक्षात्।* ( मनु०२/२३७ ) विश्व मातृ दिवस ( पाश्चात्त्य परम्परानुसार मईमास का द्वितीय रविवार ) पर हम पराम्बा भगवती दुर्गा, पराम्बा भगवती लक्ष्मी तथा पराम्बा भगवती सरस्वती-इत्यादि के साथ समस्त मातृ चरणों में सादर सविनय प्रणिपात करते हैं। *पराम्बाचरणकमलेभ्यो नमः 🙏।* *श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट* https://whatsapp.com/channel/0029VabAWY87z4kcQNes4543

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श्री वेंकटेसाय सेवा ट्रस्ट
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5/12/2025, 4:19:40 AM

_*।। बुद्ध पूर्णिमा ।।*_ _बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर आपसभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।_ बुद्ध यह शब्द न केवल बोध का द्योतक है, अपितु चेतना की उस परम स्थिति का बिम्ब है, जहाँ आत्मा अज्ञान के आवरणों को चीरकर ज्ञान की आलोक-धारा से स्वयं को प्रकाशित कर लेती है। इस चराचर जगत में यदि कोई वस्तु परम मूल्यवान कही जा सकती है, तो वह है—ज्ञान। सकल पुरुषार्थ वस्तुतः अज्ञानजन्य विकारों से मुक्त होकर ज्ञान-प्राप्ति की दिशा में ही अग्रसर होते हैं। जो पुरुष आत्मस्वरूप का साक्षात्कार कर, अपने अंतःकरण को विशुद्ध ज्ञान से अभिसिक्त कर चुका होता है, वही वस्तुतः बुद्ध है—जाग्रत आत्मा, प्रकाशमान चेतना, करुणा की मूर्तिमान प्रतिमा। भगवान बुद्ध न केवल करुणा के साक्षात् अवतार हैं, अपितु सनातन धर्म-संस्कृति की अक्षुण्ण धारा से अभिन्न रूप से सम्बद्ध भी हैं। जिस हृदय में अन्य के दुःख और क्लेश को देखकर सहज ही संवेदना की तरंगें उठें, वही दीनबन्धु, वही ईशतुल्य होता है। ऐसी करुणा ही सच्चे बोध की प्रथम सीढ़ी है। बुद्ध पूर्णिमा का यह पावन दिवस हमें आह्वान करता है कि हम अपने अन्तःकरण को करुणा, सौजन्य और सहानुभूति से सिञ्चित करें। उपेक्षित, पीड़ित और शोषित जनों के प्रति अपने हृदय में प्रेम और संवेदना का नवप्रस्फुटन करें। यही बुद्ध की सच्ची वन्दना है। आध्यात्मिक साधना के पथ पर सांसारिक यश-अपयश, लाभ-हानि, जय-पराजय आदि द्वंद्वमय वृत्तियाँ केवल छाया-समान हैं। इनसे प्रभावित हुए बिना, दीर्घकाल तक अविचल श्रद्धा और अपरिसीम धैर्य से अपने लक्ष्य की सिद्धि की ओर प्रयाण करना ही साधक की महती साधना है। अतः इस शुभ अवसर पर, आइये ! हम आत्म-निरीक्षण करें, आत्मावलोकन करें। क्या हमारे भीतर बोध का आलोक है? क्या हमारे भावों में करुणा है, विचारों में समत्व है, और कर्मों में परोपकार की गन्ध है ? यदि नहीं, तो यही क्षण है, अपने भीतर बुद्धत्व की प्रथम आभा को आमंत्रित करने का—शान्त, गंभीर और सन्नद्ध होकर प्रबुद्ध चेतना की ओर एक नवयात्रा आरम्भ करने का। 🙏🏵️ *श्री हरिः नारायण*🏵️🙏

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