
Abu Muhammad ابو محمد
June 4, 2025 at 08:38 AM
*"क्या मांस खाना क्रूरता है ? तर्कपूर्ण विवेचना !!"*
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हम सबका रब, जिसने इस ब्रह्मांड की रचना की, जिसने हमें पैदा किया, हमारे जीवन को सरल और आसान बनाने के लिए हर चीज़ को हमारे लिए अनुकूल बनाया।
*वह रब अत्यंत दयालु, कृपालु और प्रेम करने वाला है।*
वह अपने हर बंदे से, हर इंसान से उसकी मां से भी अधिक मोहब्बत करता है, वह केवल इंसानों से ही नहीं, बल्कि अपनी पूरी सृष्टि से प्रेम करता है।
पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, जल और थल सब उसी की रचना हैं।
*और उसी रब ने इंसान को मांस खाने का अधिकार भी दिया है।*
*उसने न केवल इसकी अनुमति दी है, लगभग सभी धर्मों की धार्मिक पुस्तकों में इसको उपयोगी और वैध बताया है।*
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या आज के वह लोग, जो जीव हत्या के नाम पर मांसाहार का विरोध करते हैं, *खुद को रब से भी अधिक दयालु समझते हैं ?*
जबकि उनकी अपनी हालत यह होती है कि....
*उनका पड़ोसी तक उनसे त्रस्त होता है,*
*अपने सगे भाई-बहन से वर्षों बोलचाल बंद रहती है,
इंसानियत की बातें सिर्फ भाषणों में सजीव रहती हैं, व्यवहार में नहीं।*
*इन हालातों में जब कोई रब की योजना पर अंगुली उठाता है, तो क्या वह स्वयं को रब से भी ऊपर समझता है ?*
पवित्र क़ुरान में रब ने फ़रमाया...
*"और चौपायों को भी उसने तुम्हारे लिए पैदा किया है, जिनमें से कुछ तुम पर बोझ उठाते हैं और कुछ तुम खाते हो।"*
(सूरह नहल 16:5)
यह साफ़ संकेत है कि चौपायों का उपयोग केवल बोझ ढोने या दूध देने तक सीमित नहीं, बल्कि उनका मांस भी इंसान के लिए रब की नेमत है।
यह अनुमति केवल भोजन के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण पारिस्थितिक संतुलन के लिए है। मनुष्य को सर्वाहारी बनाया गया है। अगर पूरी मानव जाति शुद्ध शाकाहारी बन जाए, तो.....
*खाद्य श्रृंखला टूट जाएगी,*
*खेती पर दबाव बढ़ेगा,*
*आवारा जानवरों की भरमार हो जाएगी,*
*भूख और कुपोषण की स्थिति उत्पन्न होगी।*
हर भाषा में तमाम अच्छे नाम रब के हैं, लेकिन यहां मैं अरबी भाषा की बात करूगां, *अरबी भाषा में रब के 99 नामों में से कई बार उसे "अर-रहीम" (कृपालु) और "अर-रहमान" (परम दयालु) कह कर पुकारा जाता है।*
और इसी दयालु रब ने ही इंसान को मांस खाने की अनुमति भी दी। इसका मतलब यह है कि दया और भोजन के लिए पशु-हत्या, दोनों में विरोधाभास नहीं, बल्कि संतुलन है।
चलिए थोड़ा उन जीव प्रेमियों के नजरिये की बात करते हैं, जिनसे उनका अपना पड़ोसी तक दुखी हैं।
*अगर सभी लोग शाकाहारी हो जाये तो समस्याएं खत्म होगीं, या फिर नई नई समस्याएं जन्म लेगीं ?*
*बूढ़े और अनुपयोगी जानवरों को कौन पालेगा ?*
*महंगाई के दौर में इंसान खुद का खर्च नहीं उठा पा रहा, तो इन अनुपयोगी जानवरों का भार कैसे उठाएगा ?*
*जब सभी लोग साग-सब्जी पर निर्भर होंगे, और खेतों को आवारा जानवर चट कर जाएंगे, तब भोजन कहाँ से आएगा ?*
जिसमें सबसे बुरा असर किसी पशु प्रजाति पर पड़ेगा, तो वह है बकरा, क्यों कि यह तो मांस के अलावा और किसी भी काम का नहीं है।
इसकी हालत तो गली के कुत्तों से बुरी हो जायेगी, गली के कुत्ते गली की रखवाली करते हैं यही सोचकर बहुत से लोग उसे दो रोटी दे देते हैं।
बकरा तो इस काम का भी नहीं हैं।
लिहाजा यही गली के कुत्ते उसे हर चौक चोराहे पर चीरते फाड़ते फिरेगें।
और इसका परिणाम यह होगा कि गली के कुत्ते भी हिंसक हो जायेगें, जो फिर इंसानों पर हमला करने लगेगें।
देश की अर्थव्यवस्था पर इसका असर अलग से पड़ेगा, आज लाखों लोग जो मीट इंडस्ट्री, डेयरी, चमड़ा, दवाओं और पशुपालन से जुड़े हैं, उनका जीवन संकट में पड़ जाएगा।
*रब ने यह दुनिया 'अति' से नहीं, 'संतुलन' से चलने के लिए बनाई है।*
जहां पेड़ काटना ज़रूरी है, वहीं वृक्षारोपण भी।
जहां दवा के लिए प्रयोग होते हैं, वहीं जीवन बचाना भी जरूरी है।
जहां भोजन के लिए जानवरों का मांस खाया जाता है, वहीं उनकी रक्षा और देखभाल भी इंसानी फर्ज है।
इसलिए यह समझना ज़रूरी है कि मांसाहार कोई क्रूरता नहीं, बल्कि रब की बनाई हुई प्राकृतिक व्यवस्था का हिस्सा है। इसका विरोध केवल अज्ञान, अहंकार या समुदाय विशेष से घृणा तो हो सकता है, इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं।
*याद रखिए, जीव हत्या का विरोध तब तक वैध है जब वह अत्याचार के खिलाफ हो, लेकिन अगर यह विरोध रब की बनाई योजना के खिलाफ हो जाए, तो वह खुद ‘अन्याय और अत्याचार' बन जाता है।*
