⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
June 6, 2025 at 09:11 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈* *लेख क्र.-सधस/२०८२/ज्येष्ठ/शु./११-१८१३७* *┈┉══════❀((""ॐ""))❀══════┉┈* राग-गुड़-दाडिम-मासाद्यारागाश्चांशुकगालिताः । खाडव-'स्वादम्लपटुकवाद्याप्रले हस्तत्र खाडवा। पत्रचसारपानक-मधुखर्जूर मृद्धिका परूषकसिताम्भसा । मन्थोवा पञसारेण सघृतैः लाजशक्तुभिः ।। तुल्यांशैः कल्पितं पूर्त शीतं कर्पूरवासितम् ।। पानकं पंचसाराख्यं दाहतृष्णानिवर्त्तकम् ।।" इस प्रकार राग, खाडव और पञचसार पानक बनाने की विधियां बताई गई हैं। आदानग्लानवपुषामग्निः सन्नो९पि सीदति। वर्षासु दौषैर्दुष्यन्ति ते९ म्बुलम्बाग्बुदे ९ म्बरे ।। सतुषारेण मरूता सहसा शीतलेन च। भूबाष्पेरगाम्लपाकेन मलिनेन च वारिणा।। वह्रिनैव च मन्देन, तेष्वन्योन्यदूषिषु। भजेत्साधारणं सर्वमूष्मरगस्तेजनं च यत् ।। आस्थापनं शुद्धतनुर्जीर्ण धान्यं रसान् कृतान्। जागंर्ल पिशितंयूषान् मध्वरिष्टं चिरन्तनम् ।। मस्तु सौवर्चलाडयं वा पन्चकोलावचूर्रिगतम्। दिव्यं कौपं शृंत चाम्भो भोजनं त्वतिदुर्दिने ।। व्यक्ताम्ललवरगस्नेहं संशुष्कं क्षौद्रवल्लघु। अपादचारी सुरभिः सततं धूपिताम्बरः ।। हर्म्यपृष्ठे वसेद्वाष्पशीतशीकरवर्जिते । नदीजलोदमन्थाहः स्वप्नायासान्परित्यजेत् ।। अर्थ : वर्षा ऋतुचर्या आदान काल में प्रत्येक व्यक्ति का शरीर मलिन रहता है। अतः अग्नि भी दुर्बल होती है। वह अग्नि वर्षा ऋतु में जब जल से भरे लम्बे-लम्बे मेघ आकाश में आते हैं तो, दोषों के प्रकोप से अग्नि और अधिक मन्द हो जाती है। अग्नि के मन्द होने से, तुषार युक्त सहसा शीत वायु की वृद्धि से वायु जल वर्षा से निकलते हुए पृथ्वी के वाष्प से, खाये हुये आहार का अम्ल पाक होने से, जल के गन्दे होने और अग्नि के मन्द होने से खाये हुए आहार का समुचित पाचन न होने से दोष दूषित हो जाते हैं, इस प्रकार अग्नि के मन्द होने से समुचित पाचन का अभाव और भूवाष्प गन्दे जल शीतल वातावरण से अग्नि मन्द हो जाती है, इस प्रकार दोष अग्नि को और अग्नि दोषो को दूषित करने वाले होते है। इसलिये सामान्यतः अग्नि को तीव्र करने वाले आहार विहार का सेवन करना चाहिए। दोषों की शुद्धि के लिये आस्थापन (अर्थात् निरूहवस्ति) से शरीर की शुद्धि के लिये आस्थापन (अर्थात् निरूहवस्ति) से शरीर की शुद्धि हो जाने पर पुराना अन्न मूंग आदि द्विदल वर्ग का यूष, पुराना मधु, पुराना अरिष्ट अथवा द्राक्षारिष्ट सोचर नमक मिलाया हुआ अवा पत्रचकोल ("पिप्ली पिप्ली मूल चव्य चित्रक नागरः") का चूर्ण मिलाया हुआ दही का पानी आकाश का जल या कुएँ का जल या गर्म किया हुआ जल पीने के लिए प्रयोग में लाना चाहिए। यदि इस ऋतु में दुर्दिन हो अर्थात् अधिक मेधा आँधी तूफान हो तो उसदिन जो भी आहार सेवन करे, वह, अम्ल, लवण, और स्नेह से युक्त एवं सूखा हो उसमें मधु मिला हो। ऐसे लघु गुण युक्त आहार का सेवन करना चाहिए। इस काल में शरीर र में में इत्र इत्र आदि आदि सुगन्धित वस्तुआ का लेप और अगर के धूयें से धूपित वस्त्रों को पहनना चाहिए। और जहाँ पृथ्वी का वाष्प या शीत, शीकर (फहारा) न आता हो ऐसे कोठे के छत के ऊपर रहना चाहिये। वर्षा ऋतु में त्याज्या वस्तु-नदी का जल सत्तू दिवा स्वप्न अधिक परिश्रम और अधिक धूप का सेवन नहीं करना चाहिये। विश्लेषण: संक्षेप में वर्षा ऋतु में अग्नि बहुत हो भन्द रहती है उसके मन्द होने के कारण गर्मी के दिनों में पसीना के द्वारा उष्मा का बाहर निकल जाना होता है। वर्षा के दिनों में वातावरण के शीतल होने पर भी पसीने का निकलना बन्द नहीं होता। इस लिये अग्नि बाहर निकलती रहती है। वर्षा काल में गर्मी को दिनों में संन्तप्त पृथ्वी जल के गिरने से शीतल होती है किन्तु बाष्प अधिक निकल कर शरीर को दूषित करता है। पीने के लिये गंन्दा जल ही मिलता है जो अधिक गरिष्ट होता हैं। स्वाभावतः मन्द अग्नि आहार मिलेगा तो उसका पाचन नहीं ही हो पाता है। पृथ्वी से गर्म गर्म वाष्प निकलने से दोष कुपित होते हैं इसलिए इस ऋतु में हलका मूंग यव गेहूं चावल आदि का प्रयोग करना चाहिए। शाकाहारी व्यक्तियों के लिये पर्याप्त मात्रा में सोचर नमक मिलाकर दही का पानी कूप जल को गरम कर पीना चाहिए। और विशेष कर जब अधिक वर्षा या हवा हो तो हल्का और सूखा आहार में पर्याप्त अम्ल नमक घृत मिलाकर लेना चाहिए। इस ऋतु में नदी का जल सत्तू कदा९ पि नहीं खाना चाहिये व्यायाम, दिन में शयन और धूप में अधिक बैठना नहीं चाहिए। ▬▬▬▬▬▬๑⁂❋⁂๑▬▬▬▬▬▬ *जनजागृति हेतु लेख प्रसारण अवश्य करें* योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना । श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥ *माता महालक्ष्मी जी की जय* *⛳⚜सनातन धर्मरक्षक समिति⚜⛳*
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