⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
June 7, 2025 at 02:29 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८२/ज्येष्ठ/शु./१२-१८१४१*
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⛳🚩🚩🛕 *जय श्रीराम* 🛕🚩🚩⛳
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🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏
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🌞 *श्रीरामचरितमानस* 🌞
🕉️ *सप्तम सोपान* 🕉️
☸️ *उत्तर काण्ड*☸️
⛳ *चौपाई १ से ४, दोहा ६५*⛳
*बहुरि राम अभिषेक प्रसंगा। पुनि नृप बचन राज रस भंगा ॥ पुरबासिन्ह कर बिरह बिषादा। कहेसि राम लछिमन संबादा ॥*
फिर श्रीरामजी के राज्याभिषेक का प्रसङ्ग, फिर राजा दशरथजी के वचन से राजरस (राज्याभिषेक के आनन्द) में भङ्ग पड़ना, फिर नगरनिवासियों का विरह, विषाद और श्रीराम-लक्ष्मण का संवाद (बातचीत) कहा ॥ १ ॥
*बिपिन गवन केवट अनुरागा। सुरसरि उतरि निवास प्रयागा ॥ बालमीक प्रभु मिलन बखाना। चित्रकूट जिमि बसे भगवाना ॥*
श्रीराम का वनगमन, केवट का प्रेम, गङ्गाजी से पार उतरकर प्रयाग में निवास, वाल्मीकिजी और प्रभु श्रीरामजी का मिलन और जैसे भगवान् चित्रकूट में बसे, वह सब कहा ॥ २ ॥
*सचिवागवन नगर नृप मरना । भरतागवन प्रेम बहु बरना ।। करि नृप क्रिया संग पुरबासी । भरत गए जहँ प्रभु सुख रासी ॥*
फिर मन्त्री सुमन्त्रजी का नगर में लौटना, राजा दशरथजी का मरण, भरतजी का [ननिहाल से] अयोध्या में आना और उनके प्रेम का बहुत वर्णन किया। राजा की अन्त्येष्टि क्रिया करके नगरनिवासियों को साथ लेकर भरतजी वहाँ गये जहाँ सुख की राशि प्रभु श्रीरामचन्द्रजी थे ॥ ३॥
*पुनि रघुपति बहु बिधि समुझाए। लै पादुका अवधपुर आए ॥ भरत रहनि सुरपति सुत करनी । प्रभु अरु अत्रि भेंट पुनि बरनी ॥*
फिर श्रीरघुनाथजी ने उनको बहुत प्रकार से समझाया, जिससे वे खड़ाऊँ लेकर अयोध्यापुरी लौट आये, यह सब कथा कही। भरतजी की नन्दिग्राम में रहने की रीति, इन्द्रपुत्र जयन्त की नीच करनी और फिर प्रभु श्रीरामचन्द्रजी और अत्रिजी का मिलाप वर्णन किया ॥ ४ ॥
*दोहा*
*कहि बिराध बध जेहि बिधि देह तजी सरभंग। बरनि सुतीछन प्रीति पुनि प्रभु अगस्ति सतसंग ॥ ६५ ॥*
जिस प्रकार विराध का वध हुआ और शरभंगजी ने शरीर त्याग किया, वह प्रसंग कहकर, फिर सुतीक्ष्णजी का प्रेम वर्णन करके प्रभु और अगस्त्यजी का सत्संग वृत्तान्त कहा ॥ ६५ ॥
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मयि, आसक्तमनाः, पार्थ, योगम्, युंजन्, मदाश्रयः,
असंशयम्, समग्रम्, माम्, यथा, ज्ञास्यसि, तत्, श्रृणु।।
*भगवान शनिदेव जी की जय*
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