⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
June 9, 2025 at 08:36 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८२/ज्येष्ठ/शु./१३-१८१६७*
*┈┉══════❀((""ॐ""))❀══════┉┈*
🟠 *स्वदेशी चिकित्सा* 🟠
*आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्*
स्नेहस्वेदविधिस्तत्र वर्तयो भोजनानि च। पानानि वस्तयश्चैव शस्तं वातानुलोमनम् ।।
अर्थ : अपान वायु के रोकने से उत्पन्न उपरोक्त रोगों में स्नेहपान या शरीर का स्नेहन और स्वेदन करना चाहिए। गुदामार्ग में मल प्रवर्तक वर्त्तिका का लगाना और वायु को अनुलोम करने वाला भोजन-पान एवं बस्ति का प्रयोग करना उत्तम होता है।
शकृतः पिण्डिकोद्वेष्टप्रतिश्यायशिरोरूजः । ऊर्ध्ववायुः परीकर्ता हृदयस्योपरोधनम् ।। मुखेन विट्प्रवृत्तिश्च
पूर्वोक्ताश्चायमाः स्मृताः ।
अर्थ : पुरीष वेग रोध से हानि-पुरीष के वेग रोकने से जंघा (जांघ) की पिण्डिलियों में ऐंठन के समान पीड़ा प्रतिश्याय शिरःशूल, उर्ध्ववात, परिकर्त्त (कैची सी काटने की तरह गुदा में वेदना) हृदयगति की रूकावट और मुख से पुरीष का निकलना तथा अपान वायु के रोकने से जो भी रोग होते हैं वे सभी रोग हो जाते हैं।
अङ्गभङ्गाश्मरीवस्तिमेढ्वगंक्षणवेदनाः । मूत्रस्य रोधात्पूर्वे च प्रायो रोगाः।
अर्थ : मूत्र वेग रोकने से हानि-मूत्र के वेग रोकने से अगंभगं अर्थात् अगों में टूटने की तरह पीड़ा अश्मरी वस्ति मूत्रेन्द्रिय एवं वंक्षण प्रदेश में वेदना तथा अपान वायु और पुरीष के वेगों को रोकने से जो ऊपर रोग बताये गये है वे सभी रोग होते हैं। अर्थात् गुल्म, उदात वेदना, ग्लानि, अपान वायु, मूत्र, पुरीष की रूकावट, दृष्टि रोग अग्निमांद्य, हृदय रोग, पिण्डिकोद्वेष्टन, प्रतिश्याय, शिरःशूल ऊर्द्धवात, परिकर्त्त, हृदय गति की रूकावट और मुख से पुरीष की प्रवृति होती है।
*आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।*
-----------------------------------------------
*समिति के सभी संदेश नियमित पढ़ने हेतु निम्न व्हाट्सएप चैनल को फॉलो किजिए ॥🙏🚩⛳*
https://whatsapp.com/channel/0029VaHUKkCHLHQSkqRYRH2a
▬▬▬▬▬▬๑⁂❋⁂๑▬▬▬▬▬▬
*जनजागृति हेतु लेख प्रसारण अवश्य करें*
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः ।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥
*बाबा महाकाल जी की जय*
*⛳⚜सनातन धर्मरक्षक समिति⚜⛳*
🙏
1