
ललित हिन्दू
May 13, 2025 at 11:50 PM
*मेहंदीपुर बालाजी आने वाले भक्तों को पीछे मुड़कर देखने की क्यों है मनाही?*
*मंदिर का प्रसाद घर क्यों नहीं लाया जाता ?*
*मेहंदीपुर बालाजी के विग्रह के पीछे कहानी ?*
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मेहंदीपुर बालाजी मंदिर भगवान हनुमान जी जिन्हें 'संकट मोचन' माना जाता है, यानी, संकट का नाश करने वाले, बल के देवता, के लिए समर्पित है
यह मंदिर दुनिया भर के कई तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है क्योंकि यह धार्मिक उपचार और बुरी आत्माओं के अनुलग्नकों और काले जादू या मंत्रों से भूत भगाने के लिए प्रसिद्ध है। भक्तों का दृढ़ विश्वास यह है कि मेहंदीपुर बालाजी मंदिर बुरी आत्माओं- भूतों और प्रेतों को भगाने का सबसे बेहतर वरदान/आशीर्वाद देता है।
बालाजी हनुमान का बाल रूप हैं। हनुमान जी स्थानीय पुजारी के सपनों में आये और उनसे यहां उनके नाम पर एक मंदिर का निर्माण करने को कहा। यह मंदिर विशेष रूप से बुरी आत्माओं से छुटकारा पाने के लिए जाना जाता है। सैकड़ों तीर्थयात्री किसी ना किसी संकट से यहाँ आते हैं और स्थानीय पुजारी भूत भगाने का काम करते हैं। उपचार हल्के (पवित्र ग्रंथों को पढ़ना और पूरी तरह से शाकाहारी भोजन का सेवन करना) से लेकर अधिक तीव्र (हिंसक रोगियों को झाड़-फूंक से पहले जंजीरों में जकड़ दिया जाता है) तक होता है। होली, हनुमान जयंती जैसे उत्सव के अवसर ऐसी आत्माओं से छुटकारा पाने के लिए सबसे प्रभावी समय माने जाते हैं।ऐसी मान्यता है कि बालाजी महाराज के हजारों गण यानि कि अतशप्त आत्माएं यहां बालाजी के नित्य लगने वाले भोग की खुशबू से तृप्त हो रही हैं। इसलिए यहां भूत प्रेत के साये से परेशान लोग आते हैं और ठीक होकर जाते हैं। मंदिर से जुडी कहानी है कि यहां तीन देवों की प्रधानता है श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल (भैरव)। यह तीन देव यहां आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व प्रकट हुए थे। इनके प्रकट होने से लेकर अब तक बारह महंत इस स्थान पर सेवा-पूजा कर चुके हैं और अब तक इस स्थान के दो महंत इस समय भी विद्यमान हैं।
शुरुआत में मेहंदीपुर धाम में घना जंगल हुआ करता था और यहां जंगली जानवरों का वास था। सुनसान होने के कारण यहां चोर-डाकुओं का भी डर था। ऐसे में आम आदमी की पहुंच इस जगह से काफी दूर थी।
पौराणिक कथा के अनुसार यहां एक मंदिर के सबसे पुराने महंत के पूर्वजों को सपना आया और सपने में ही उठकर एक बड़ी विचित्र जगह पहुंच गए। उन्होंने देखा कि एक ओर से हजारों दीपक प्रज्वलित थे और हाथी-घोड़ों की आवाज के साथ एक बहुत बड़ी फौज चली आ रही है।
उस फौज ने बालाजी महाराज की मूर्त्ति की तीन प्रदक्षिणाएं की और उन्हें प्रणाम किया। उसके बाद वे जिस रास्ते से आए थे, उसी रास्ते से चले गए। महाराज ये सब लीला बहुत ही आश्चर्य के साथ देख रहे थे। उन्हें ये सब देखने के बाद डर लगा और वे वापस अपने गांव चले गए। घर जाकर उन्होंने इस लीला के बारे में बहुत सोचा, वहीं जैसे ही उनकी आंखें लगी तो उन्हें एक और सपना आया।
इस बार सपने में तीन मूर्त्तियां, मन्दिर और विशाल वैभव दिखाई पड़ा और उनके कानों में यह आवाज आयी उठो, मेरी सेवा का भार ग्रहण करों। मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगा। यह बात कौन कह रहा था, कोई दिखाई नहीं पड़ा। महाराज ने एक बार भी इस पर ध्यान नहीं दिया तो खुद हनुमान जी महाराज ने इस बार स्वयं उन्हें दर्शन दिए और उन्हें पूजा करने का आदेश दिया।
दूसरे दिन महाराज ने आस-पास के लोगों को सारी बातें बताई। जैसे ही सपने के बताए अनुसार खुदाई की गई वहां से प्रतिमा निकल कर आ गई। कुछ लोगों ने वहां एक छोटे से मंदिर की स्थापना करवा दी और भोग की व्यवस्था भी करवा दी। ऐसा होने से वहां चमत्कार होने लगे। कुछ कपटी और दुष्ट लोगों ने इसे ढोंग माना। बालाजी महाराज की प्रतिमा/ विग्रह जहाँ से निकाली थी, वह मूर्ति फिर से वहीं लुप्त हो गई। इससे सभी लोगों ने शक्ति को माना और क्षमा मांगी। लोगों के क्षमा मांगने के बाद मूर्तियाँ दिखाई देने लगी।रहस्य यह है कि महाराज की बायीं ओर छाती के नीचे से एक बारीक जलधारा निरन्तर बहती रहती है जो पर्याप्त चोला चढ़ जाने पर भी बंद नहीं होती। उस जल के छींटे भक्तों के लगते हैं और इसे बालाजी का आशीर्वाद माना जाता है।
मेहंदीपुर में राजा का राज्य था, बाबा ने राजा को ही राजा को पूरी घटना के बारे में अवगत करवाया। राजा को भी ये कोई कला लगी और राजा ने इस पर यकीन करने से मना कर दिया। इससे मूर्तियां वापिस अदृश्य होकर जमीन में चली गई। राजा ने उस जगह की खुदाई करवाई लेकिन मूर्तियां नहीं मिली। इसके बाद राजा ने इसे चमत्कार माना और बाबा से क्षमा मांगी और खुद को अज्ञानी मूर्ख बताया। इसके बाद मूर्ति ने वापिस दर्शन दिए।
राजा ने महाराज को पूजा का भार ग्रहण करने के आदेश दिए। इसके बाद राजा ने बालाजी महाराज का एक विशाल मन्दिर बनवाया। महंत गोसाई जी महाराज वृद्धा अवस्था तक बालाजी की सेवा की। बाद में उन्होंने बालाजी की आज्ञा से समाधि ले ली और बालाजी से अंतिम क्षण में प्रार्थना की , मेरा वंश ही आगे तक आपकी सेवा पूजा करें। मंदिर की स्थापना से अब तक महाराज का परिवार ही सेवा कर रहा है। 1000 वर्षों के काल से अब तक यहां 11 महंत सेवा दे चुके है।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में प्रेत-बाधाओं को दूर करने के लिए देनी होती है अर्जी
मेहंदीपुर बालाजी का मंदिर राजस्थान के दौसा जिल के करीब दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। इस मंदिर से जुड़ी प्रचलित मान्यता यह है कि यहां हर तरह के जादू-टोना और भूत-प्रेत बाधाओं से व्यक्ति को छुटकारा मिल सकता है। लेकिन इसके लिए सबसे पहले यहां अर्जी लगाई जाती है। अर्जी लगाने के लिए मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में लंबी लाइन लगी रहती है। जानकारी के मुताबिक, हर दिन 2 बजे मंदिर में कीर्तन किया जाता है उसके बाद जो लोग नकारात्मक शक्तियां और ऊपरी चक्कर से पीड़ित है उन्हें इन सब से मुक्त कराया जाता है।
मेहंदीपुर बालाजी में पीछे देखने की होती है मनाही
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में दो तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। एक दर्खावस्त और दूसरी अर्जी। दर्खावस्त का मतलब होता है अर्जी। इस प्रसाद को दो बार खरीदा जाता है। वहीं अर्जी में 3 थालियों में प्रसाद दिया जाता है। दर्खावस्त का प्रसाद चढ़ाने के बाद वहां से तुरंत निकलना पड़ता। वहीं अर्जी के प्रसाद को लौटते समय पीछे फेंकने की प्रथा है। मान्यताओं के अनुसार, प्रसाद को फेंकने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। अर्जी वालों को प्रसाद लौटते समय दिया जाता है।
मेहंदीपुर बालाजी का प्रसाद घर क्यों नहीं लाया जाता है?
आमतौर पर हर मंदिर का प्रसाद घर लाना अच्छा माना जाता है लेकिन मेहंदीपुर बालाजी से प्रसाद घर लाने की मनाही होती है। दरअसल, यह मंदिर भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से मुक्ति के लिए जाना जाता है। तो कहा जाता है कि अगर यहां का प्रसाद कोई खा लें या अपने साथ घर ले जाए तो उसपर नकारात्मक शक्तियां हावी हो जाती है।
मेहंदीपुर बालाजी से जुड़े जरूर नियम
मेहंदीपुर बालाजी के दर्शन के बाद प्रभु राम और माता सीता के दर्शन जरूर करें।
बालाजी के दरबार में आने से करीब एक सप्ताह पहले प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा का सेवन बंद कर दें।
मेहंदीपुर बालाजी की आरती के समय सिर्फ भगवान की तरफ ही देखें।
आरती के समय पीछे मुड़ना या किसी की आवाज सुन कर पीछे नहीं देखना चाहिए।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का प्रसाद कभी घर लेकर न जाएं।
प्रसाद के साथ ही कोई भी खाने-पीने की या अन्य चीजों को भी साथ ले जाना निषेध है।
*@ललित_चौहान*