
ललित हिन्दू
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🚩भारत माता की जय🚩 🚩काम तो राम ही आएंगे🚩 🚩अहिंसा परमो धर्म: धर्महिंसा तथैव च 🚩
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"चुपचाप चलने वाला वो आदमी..." साल 1945... उत्तराखंड की पहाड़ियों में एक छोटे से गाँव में एक बच्चा पैदा होता है — नाम रखा जाता है अजीत। कौन जानता था कि ये बालक एक दिन उन लड़ाइयों का हिस्सा बनेगा, जिनके बारे में इतिहास की किताबें भी नहीं लिखेंगी। वो लड़ाइयाँ जो संसद में नहीं, बल्कि परछाइयों में लड़ी जाती हैं। नकाब में। झूठी पहचान में। मौत के साए में। उसकी आँखों में एक अलग चमक थी — न डरने वाली, न रुकने वाली। 22 की उम्र में UPSC निकाली। IPS बना। लेकिन ये उसकी मंज़िल नहीं थी — ये तो सिर्फ रास्ता था। --- 1971, केरल। दंगे फूट चुके थे। पुलिस थर-थर काँप रही थी। और तभी एक दुबला-पतला नौजवान, बिना बंदूक, अकेला, दंगाइयों की भीड़ में घुस जाता है। बोलता है, समझाता है, डर नहीं दिखाता — और एक हफ्ते में शांति लौट आती है। लोग पूछते हैं — “ये कौन है?” किसी ने धीरे से कहा, “नाम याद रखना — अजीत डोभाल।” --- मिज़ोरम। जंगलों में विद्रोही छिपे थे। लालडेंगा और उसका संगठन, भारत के खिलाफ। डोभाल वहाँ गया — लेकिन किसी अधिकारी की तरह नहीं। वो उनके साथ रहने लगा। उनके साथ खाना खाया, उनके जैसे बोला। धीरे-धीरे कमांडरों का विश्वास जीत लिया। एक दिन लालडेंगा चीख पड़ा — "उसने मेरे आदमी चुरा लिए!" --- कभी सिक्किम में, कभी पाकिस्तान में। सिक्किम को भारत में मिलाना था — तो डोभाल भेजे गए। न टैंक, न बम। केवल एक आदमी — और उसका दिमाग। पाकिस्तान के काहूटा में — जहाँ परमाणु हथियार बन रहे थे — डोभाल भिखारी बनकर घूमे। नाई की दुकानों से बाल उठाए, दो बार मौत से बचे — और भारत तक वो जानकारी पहुँची, जो किसी सैटेलाइट से नहीं मिलती। --- 1988, अमृतसर। स्वर्ण मंदिर। खालिस्तानी आतंकवादी अंदर छिपे थे। डोभाल, एक मुसलमान बनकर अंदर दाखिल हुए। उर्दू बोली। दोस्ती की। भरोसा जीता। और फिर सर्जिकल ऑपरेशन से पहले पूरी जानकारी भारत को दे दी। कई लोगों की जानें बच गईं — और किसी को पता तक नहीं चला कि अंदर एक "डोभाल" बैठा था। --- 1999, कंधार। एक हाइजैक्ड प्लेन। 180 भारतीय बंधक। जब देश थम गया था, तब डोभाल एयरपोर्ट पर खड़ा था — सौदेबाज़ी कर रहा था। 3 आतंकवादी छोड़ने पड़े — लेकिन हर यात्री ज़िंदा लौट आया। --- सेवानिवृत्ति के बाद? लोग आराम करते हैं। पर डोभाल ने "विवेकानंद फाउंडेशन" बनाई। युवाओं को जोड़ना शुरू किया। रिपोर्ट्स लिखीं। काले धन पर रिसर्च। देश की नीतियों पर दबाव बनाया। --- 2014। नरेंद्र मोदी सत्ता में आए — और उन्होंने एक फोन किया: “डोभाल जी, अब आपको NSA बनना होगा।” अब वो सिर्फ एक जासूस नहीं थे — अब वो भारत की रणनीति थे। --- इसके बाद? म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक उरी और पुलवामा का जवाब — बालाकोट एयर स्ट्राइक अनुच्छेद 370 हटाना इराक से भारतीय नर्सों की वापसी हर बड़ी घटना में एक साया था — एक नाम था, जो कभी कैमरे में नहीं आया — अजीत डोभाल। --- आज भी... वो लड़ते हैं — सिर्फ पाकिस्तान या आतंक से नहीं, बल्कि उन आरोपों से भी जो उनके परिवार पर लगाए गए। उनका बेटा बदनाम हुआ — डोभाल ने मुकदमा किया, और कोर्ट में जीत हासिल की। --- अजीत डोभाल। वो चुप हैं, लेकिन कमजोर नहीं। वो दिखते नहीं, पर हर जगह मौजूद हैं। वो नारे नहीं लगाते — वो परिणाम लाते हैं। जब भारत सोता है — डोभाल जागते हैं। साभार

जब भी आपका मन बहुत विचलित हो , सिर दर्द हो , थकान हो , शरीर से लेकर मन में शिथिलता हो , मन बहुत ही व्यग्र हो , आपको शांति चाहिए हो , तब एक काम कीजियेगा । अपने आस पास कोई पुराना वृक्ष ढूँढिये । पीपल , आम , बरगद , नीम या कोई भी ।पीपल या बरगद हो तो और भी अच्छा । लेकिन यह ध्यान रखिएगा कि पुराना हो । न भी पुराना हो तब भी चलेगा , लेकिन वह वृक्ष होना चाहिए कोलाहल से दूर । बस उसके पास जाईये। बिल्कुल निश्चेष्ट होकर अपने दोनों हाथों से या भुजाओं से उस वृक्ष को गले लगाईये और आँखों को बंद कर लीजिए लगभग 10 मिनट तक ऐसे ही उस वृक्ष को भुजाओं में भरे रहिए । आँख बंद कर कुछ मत सोचिए , बस उस वृक्ष की धड़कन या उसकी शिराओं में बहने वाली energy या ऊर्जा को महसूस करिये । ऐसा स्थान चुनिए , जहाँ आपको यह आभास या hesitation न हो कि ऐसा करते हुए हमें कोई देख रहा है । बस आँख मूँद कर उस वृक्ष को बाहों में भरकर उससे मन ही मन बात करते हुए उसके आंतरिक नैसर्गिक सौंदर्य को आत्मसात करने का प्रयत्न कीजिये । मात्र 10 मिनट तक संसार के सभी कुछ कार्य भूल जाईये । बस आप और वह आपका चिरंतन मित्र वृक्ष । Trust me ! विश्वास मानिए , आपका सारा दुःख दर्द , शिथिलता , अशांति , भय , Frustration , अवसाद , depression , तनाव , सिर दर्द , थकान सब खत्म हो जाएगा । ऐसा लगेगा जैसे आपकी सारी पीड़ा , उस वृक्ष ने ले ली हो और उसे अपनी ऊर्जा से नष्ट कर दिया हो । रोज़ प्रतिदिन का नियम बना लीजिए सुबह और शाम या हो सके तो दोपहर भी । 10 minute से बढ़ाकर इसे घंटों कर सकते हैं । आप यकीन मानिए , यह एक वृहद ऊर्जा स्रोत का कार्य करेगा । मैं आपको challenge के साथ कह सकता हूँ कि आपके कई दबे हुए रोग जैसे diabetes, blood pressure , मानसिक अस्थिरता धीरे धीरे खत्म हो जाएंगे । आप ऐसा समझिये कि ये वृक्ष Charging Station या point की तरह कार्य करेंगे । वृक्ष असीम ऊर्जा के स्रोत हैं । यह निरंतर भूमि , जल , आकाश , वायु और तेज से ऊर्जा ग्रहण करते रहते हैं। अगर हम में ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता 2 गुना है तो वृक्षों की इन पाँच तत्वों से ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता हमसे लाख गुणा अधिक है । यही पाँच तत्व इस संसार को चलाते हैं । जो कुछ है इस संसार में दिखता है , वह इन्हीं पंच तत्वों से निर्मित है । इन्हीं पंच तत्वों में अनंत ऊर्जा का महासागर है । वृक्ष इन पाँच तत्वों के सबसे अधिक नज़दीक होते हैं और यह प्रकृति की ऐसी मशीन हैं जो इन पाँच तत्वों से ऊर्जा को सबसे उपयुक्त तरीके से ग्रहण करते हैं । जब हम वृक्ष को गले लगाते हैं या उनके स्पंदन को हृदय से अनुभूत करते हैं , तो यही अज्ञात , अदृश्य ऊर्जा हमारे शरीर में प्रवेश करती है । यह ऊर्जा हमारे शरीर के अंदर प्रवेश करके हमारे brain cells को अच्छे hormones जैसे Serotonin और Dopamine को secrete करने के लिए induce करते हैं जिससे हम शांति , सुख , प्रसन्नता का आभास करते हैं । यही ऊर्जा हमारे शरीर में कई biological reactions को भी catalyse करती है जिससे कई रोगों को जड़ से खत्म होने में सहायता मिलती है । बहुत ही कारगर बात बता रहा हूँ , जिसे अपना भला करना हो , वह यह बात मान ले और यह प्रयोग कर के देखे, फिर मुझे बताए । आपके जीवन में आनंद का प्रवेश न हो जाये तो बताना । आज कल तो advance बनने के चक्कर में माँ बाप ने अपने छोटे बच्चों को मिट्टी में खेलना तक निषिद्ध कर रखा है । यह केवल और केवल घोर मूर्खता के अलावा कुछ नहीं है । ऐसे माँ बाप अपने बच्चों के सबसे बड़े दुश्मन हैं , शत्रु हैं जो बच्चों को मिट्टी से दूर रखते हैं। यही बच्चे बताशे के बेना हो जाते हैं और इनका पूरा जीवन Doctors और Hospitals के चक्कर लगाते लगाते और दवाईयों पर अपनी कमाई का आधा प्रतिशत लगाने में गुजर जाता है । विदेशों में लोग इस वैदिक तकनीक की महत्ता समझ रहे हैं। वहाँ ऐसे पार्क बनाये गए हैं जहाँ प्रति घण्टा और minute के हिसाब से Charge किया जाता है । वहाँ लोग आते हैं और पेड़ों को घण्टों तक चिपटाए रखते हैं। Japan में तो इसे सरकार तक promote कर रही है । corporate companies तक अपने employees को इस वैदिक तकनीक को करवाती हैं ताकि उनके employees खुश रह सकें और उनकी productivity या कार्य करने की क्षमता में वृद्धि हो सके । वहाँ लोग मिट्टी मँगाते हैं और उसमें घण्टों तक बच्चों को धूल धूसरित होने देते हैं। एक हम ही दुर्भाग्यशाली लोग हैं जो मशीनों के बीच रहकर , doctors और hospitals में bed book कर अपने आपको advance दिखाते हैं । हम बहुत बड़े मूर्ख हैं । अब भी समय है, इन पाँच तत्वों से संपर्क साधिये और अपने जीवन को सुंदर जीवन में परिवर्तित कीजिये। वृक्षों से मेल जोल बढाईये और उनके पास जो अथाह ऊर्जा का भंडार है, उसका लाभ लीजिए ।

हिसार की यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा जासूसी के आरोप में गिरफ्तार 4 बार पाकिस्तान जा चुकी, एजेंट्स को भारत की खुफिया जानकारियां भेजने का शक


अद्भुत शौर्य एवं पराक्रम के प्रतीक, महान मराठा योद्धा, श्री छत्रपति शिवाजी महाराज के छावा(पुत्र) श्री छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती पर उन्हें कोटिशः वंदन। #Chava #sambhajimaharaj

*संतोष का अर्थ है: जो कुछ है सुंदर है; श्रेष्ठ है, इससे बेहतर संभव नहीं है।* *हां कहने की अनुभूती है संतोष, साधारणतया मन कहता है कुछ भी ठीक नहीं है। साधारणतया मन शिकायत खोजता है - यह गलत है, वह गलत है। साधारणतया मन इंकार करता है, वह 'न' कहनेवाला होता है, वह नही सरलता से कह देता है, मन के लिए हां कहना बड़ा कठिन है,* *क्योंकि जब तुम हां कहते हो तो मन ठहर जाता है; तब मन की कोई जरूरत नहीं होती।जब तुम नही कहते हो, तब मन आगे और आगे सोच सकता है; क्योंकि नहीं पर अंत नही होता, नहीं के आगे कोई पूर्ण-विराम नहीं है; वह एक शुरुआत है।* *'नहीं' एक शुरुआत है; 'हां' अंत है. जब तुम हां कहते हो, तो एक पूर्ण विराम आ जाता है; अब मन के पास सोचने के लिए कुछ नहीं रहता, बडबडाने खीझने के लिए, शिकायत करने के लिए कुछ नहीं रहता। जब तुम हां कहते हो तो मन ठहर जाता है; और मन का ठहरना ही संतोष है।*

दिन विशेष : 31 मई, जयंती : पुण्यश्लोक राजमाता अहिल्या देवी होळकर जी : भारत के स्वर्णिम इतिहास में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा स्मरण किया जाता है, उनमें रानी अहिल्या देवी होळकर जी का नाम प्रमुख है। उनका जन्म 31 मई 1725 को ग्राम छौंदी, अहिल्या देवी नगर, महाराष्ट्र (तत्कालीन अहमदनगर) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री. मनकोजीराव शिंदे परम शिवभक्त थे। अतः यही धार्मिक संस्कार बालिका अहिल्या पर भी पडे थे। एक बार इंदौर के राजा श्री. मल्हारराव होळकर जी ने वहां से जाते हुए मंदिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी। उन्होंने उस बालिका के पिता को बुलवाकर उसे अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजीराव भला क्या कहते, उन्होंने शीश झुका दिया। अब वह आठ वर्षीय बालिका इंदौर राजघराने के कुंवर खंडेराव जी की पत्नी बनकर राजमहल में आ गई। इंदौर में आकर भी अहिल्या देवी पूजा एवं आराधना में रत रहती। कालांतर में उन्हें दो पुत्रीयों तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई। सन 1754 में उनके पति श्री. खंडेराव जी एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। सन 1766 में उनके ससुर श्री. मल्हारराव जी का भी देहांत हो गया। इस संकटकाल में रानी जी ने तपस्वी की भांति श्वेत वस्त्र धारण कर राजकाज चलाया, परंतु कुछ समय बाद उनके पुत्र, पुत्री तथा पुत्रवधू भी चल बसे। इस तीव्र वज्राघात के बाद भी रानी जी अविचलित रहते हुए अपने कर्तव्य मार्ग पर निरंतर डटी रहीं। ऐसे में पडोसी राजा पेशवा राघोबा ने इंदौर के दीवान गंगाधर यशवंत चंद्रचूड के साथ मिलकर अचानक आक्रमण कर दिया। रानी जी ने ऐसी विपरीत परिस्थितियों में अपना धैर्य न खोते हुए पेशवा को एक मार्मिक पत्र लिखा। रानी जी ने लिखा कि, यदि युद्ध में आप विजय हो जाते हैं, तो एक विधवा को पराजित करके आपके नाम एवं कीर्ति में किंचित वृद्धि भी नहीं होगी। और यदि आप पराजित हो गए, तो आपके मुख पर सदा के लिए यह कालिख पुत जाएगी कि, आप एक महिला से पराजित हो गए। मैं मृत्यु अथवा युद्ध में पराजय जैसे अप्रिय परिणामों से कदापि भयभीत नहीं हूं। मुझे राज्य अथवा सत्ता का कदापि लोभ नहीं है, परंतु फिर भी मैं मेरे जीवन के अंतिम क्षण तक युद्ध करूंगी। इस पत्र को पाकर पेशवा राघोबा चकित रह गए। इसमें जहां एक ओर रानी अहिल्या देवी ने उन पर कूटनीतिक प्रहार किया था, वहीं दूसरी ओर अपने कठोर संकल्पबल एवं शक्ति का परिचय भी दे दिया था। रानी ने देशभक्ति का परिचय देते हुए उन्हें अंग्रेजों के षडयंत्र से भी सावधान किया था। अतः उसका मस्तक रानी के प्रति श्रद्धा से झुक गया एवं वे बिना युद्ध किये ही पीछे हट गए। रानी जी के जीवन का लक्ष्य राज्यभोग नहीं था। वे प्रजा को भी अपनी संतान समझती थीं। वे अश्व पर सवार होकर स्वयं जनता से मिलती थीं। उन्होंने जीवन का प्रत्येक क्षण राज्य तथा धर्म के उत्थान में लगाया। असाधारण न्यायप्रियता : एक बार अक्षम्य अपराध करने पर उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र को भी हाथी के पैरों के नीचे कुचलने का आदेश दे दिया था; परंतु जनता के अतीव अनुरोध पर उसे कोडे मारने की शिक्षा देकर जीवित छोड दिया गया। अत्यंत धर्मप्रेमी होने के कारण रानी ने अपने राज्य के साथ-साथ देश के अन्य तीर्थों में भी मंदिर, कुएं, बावडी, धर्मशाला आदि का निर्माण करवाया। वर्तमान महेश्वर घाट एवं ओंकारेश्वर घाट आदि में से बहुतांश निर्माण कार्य उनकी व्यक्तिगत देखरेख में पूर्ण किये गए हैं। उन्होंने ही सन 1780 में वाराणसी के वर्तमान श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उनके शासन काल में राज्य में कला, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, कृषि आदि सभी क्षेत्रों का भरपूर विकास हुआ। 01 सितंबर 1795 को 70 वर्ष की आयु में उनका देहांत हुआ। उनका जीवन धैर्य, साहस, सेवा, त्याग और कर्तव्य पालन का प्रेरक उदाहरण है। इसीलिए एकात्मता स्तोत्र के 11वें श्लोक में उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तमिलनाडु की रानी चेनम्मा, रुद्रमांबा जैसी वीर नारियों के साथ स्मरण किया जाता है। अपने परिवार के समस्त सदस्यों के असामयिक निधन उपरांत भी स्थितप्रज्ञ बनकर जनता की सेवा में अपना जीवन एवं समस्त राजकोष लगा देनेवाली इस महान देवी को सहृदय नमन। संपूर्ण राष्ट्र आपका ऋणी है।

एक ऐसे एकमात्र स्वातंत्रय योद्धा जिनको 2 बार आजीवन कारावास की सजा मिली,जिनसे पूरा अंग्रेजी सिस्टम डरता था,जिन्होंने राष्ट्रप्रेम में जेल की दीवारों पर कोयले से 10 हजार पंक्तियों की कविताएं लिख दी थी,ऐसे दिव्यपुरुष श्री विनायक दामोदर सावरकर जी को उनके अवतरण दिवस पर कोटि कोटि प्रणाम #वीरसावरकर🙏🏻


बलूचिस्तान पाकिस्तान नहीं है" बलूच नेताओं ने किया आजादी का ऐलान। बलूचिस्तान में बलोच नेताओं ने खुला विद्रोह कर दिया है और कहा है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान नहीं है। नेताओं ने पाकिस्तान से आजादी की घोषणा की है और भारत सहित पूरी दुनिया के देशों से समर्थन मांगा है। स्वागतं


*मेहंदीपुर बालाजी आने वाले भक्तों को पीछे मुड़कर देखने की क्यों है मनाही?* *मंदिर का प्रसाद घर क्यों नहीं लाया जाता ?* *मेहंदीपुर बालाजी के विग्रह के पीछे कहानी ?* कृपया अंत तक पढ़े👇 मेहंदीपुर बालाजी मंदिर भगवान हनुमान जी जिन्हें 'संकट मोचन' माना जाता है, यानी, संकट का नाश करने वाले, बल के देवता, के लिए समर्पित है यह मंदिर दुनिया भर के कई तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है क्योंकि यह धार्मिक उपचार और बुरी आत्माओं के अनुलग्नकों और काले जादू या मंत्रों से भूत भगाने के लिए प्रसिद्ध है। भक्तों का दृढ़ विश्वास यह है कि मेहंदीपुर बालाजी मंदिर बुरी आत्माओं- भूतों और प्रेतों को भगाने का सबसे बेहतर वरदान/आशीर्वाद देता है। बालाजी हनुमान का बाल रूप हैं। हनुमान जी स्थानीय पुजारी के सपनों में आये और उनसे यहां उनके नाम पर एक मंदिर का निर्माण करने को कहा। यह मंदिर विशेष रूप से बुरी आत्माओं से छुटकारा पाने के लिए जाना जाता है। सैकड़ों तीर्थयात्री किसी ना किसी संकट से यहाँ आते हैं और स्थानीय पुजारी भूत भगाने का काम करते हैं। उपचार हल्के (पवित्र ग्रंथों को पढ़ना और पूरी तरह से शाकाहारी भोजन का सेवन करना) से लेकर अधिक तीव्र (हिंसक रोगियों को झाड़-फूंक से पहले जंजीरों में जकड़ दिया जाता है) तक होता है। होली, हनुमान जयंती जैसे उत्सव के अवसर ऐसी आत्माओं से छुटकारा पाने के लिए सबसे प्रभावी समय माने जाते हैं।ऐसी मान्यता है कि बालाजी महाराज के हजारों गण यानि कि अतशप्त आत्माएं यहां बालाजी के नित्य लगने वाले भोग की खुशबू से तृप्त हो रही हैं। इसलिए यहां भूत प्रेत के साये से परेशान लोग आते हैं और ठीक होकर जाते हैं। मंदिर से जुडी कहानी है कि यहां तीन देवों की प्रधानता है श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल (भैरव)। यह तीन देव यहां आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व प्रकट हुए थे। इनके प्रकट होने से लेकर अब तक बारह महंत इस स्थान पर सेवा-पूजा कर चुके हैं और अब तक इस स्थान के दो महंत इस समय भी विद्यमान हैं। शुरुआत में मेहंदीपुर धाम में घना जंगल हुआ करता था और यहां जंगली जानवरों का वास था। सुनसान होने के कारण यहां चोर-डाकुओं का भी डर था। ऐसे में आम आदमी की पहुंच इस जगह से काफी दूर थी। पौराणिक कथा के अनुसार यहां एक मंदिर के सबसे पुराने महंत के पूर्वजों को सपना आया और सपने में ही उठकर एक बड़ी विचित्र जगह पहुंच गए। उन्होंने देखा कि एक ओर से हजारों दीपक प्रज्वलित थे और हाथी-घोड़ों की आवाज के साथ एक बहुत बड़ी फौज चली आ रही है। उस फौज ने बालाजी महाराज की मूर्त्ति की तीन प्रदक्षिणाएं की और उन्हें प्रणाम किया। उसके बाद वे जिस रास्ते से आए थे, उसी रास्ते से चले गए। महाराज ये सब लीला बहुत ही आश्चर्य के साथ देख रहे थे। उन्हें ये सब देखने के बाद डर लगा और वे वापस अपने गांव चले गए। घर जाकर उन्होंने इस लीला के बारे में बहुत सोचा, वहीं जैसे ही उनकी आंखें लगी तो उन्हें एक और सपना आया। इस बार सपने में तीन मूर्त्तियां, मन्दिर और विशाल वैभव दिखाई पड़ा और उनके कानों में यह आवाज आयी उठो, मेरी सेवा का भार ग्रहण करों। मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगा। यह बात कौन कह रहा था, कोई दिखाई नहीं पड़ा। महाराज ने एक बार भी इस पर ध्यान नहीं दिया तो खुद हनुमान जी महाराज ने इस बार स्वयं उन्हें दर्शन दिए और उन्हें पूजा करने का आदेश दिया। दूसरे दिन महाराज ने आस-पास के लोगों को सारी बातें बताई। जैसे ही सपने के बताए अनुसार खुदाई की गई वहां से प्रतिमा निकल कर आ गई। कुछ लोगों ने वहां एक छोटे से मंदिर की स्थापना करवा दी और भोग की व्यवस्था भी करवा दी। ऐसा होने से वहां चमत्कार होने लगे। कुछ कपटी और दुष्ट लोगों ने इसे ढोंग माना। बालाजी महाराज की प्रतिमा/ विग्रह जहाँ से निकाली थी, वह मूर्ति फिर से वहीं लुप्त हो गई। इससे सभी लोगों ने शक्ति को माना और क्षमा मांगी। लोगों के क्षमा मांगने के बाद मूर्तियाँ दिखाई देने लगी।रहस्य यह है कि महाराज की बायीं ओर छाती के नीचे से एक बारीक जलधारा निरन्तर बहती रहती है जो पर्याप्त चोला चढ़ जाने पर भी बंद नहीं होती। उस जल के छींटे भक्तों के लगते हैं और इसे बालाजी का आशीर्वाद माना जाता है। मेहंदीपुर में राजा का राज्य था, बाबा ने राजा को ही राजा को पूरी घटना के बारे में अवगत करवाया। राजा को भी ये कोई कला लगी और राजा ने इस पर यकीन करने से मना कर दिया। इससे मूर्तियां वापिस अदृश्य होकर जमीन में चली गई। राजा ने उस जगह की खुदाई करवाई लेकिन मूर्तियां नहीं मिली। इसके बाद राजा ने इसे चमत्कार माना और बाबा से क्षमा मांगी और खुद को अज्ञानी मूर्ख बताया। इसके बाद मूर्ति ने वापिस दर्शन दिए। राजा ने महाराज को पूजा का भार ग्रहण करने के आदेश दिए। इसके बाद राजा ने बालाजी महाराज का एक विशाल मन्दिर बनवाया। महंत गोसाई जी महाराज वृद्धा अवस्था तक बालाजी की सेवा की। बाद में उन्होंने बालाजी की आज्ञा से समाधि ले ली और बालाजी से अंतिम क्षण में प्रार्थना की , मेरा वंश ही आगे तक आपकी सेवा पूजा करें। मंदिर की स्थापना से अब तक महाराज का परिवार ही सेवा कर रहा है। 1000 वर्षों के काल से अब तक यहां 11 महंत सेवा दे चुके है। मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में प्रेत-बाधाओं को दूर करने के लिए देनी होती है अर्जी मेहंदीपुर बालाजी का मंदिर राजस्थान के दौसा जिल के करीब दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। इस मंदिर से जुड़ी प्रचलित मान्यता यह है कि यहां हर तरह के जादू-टोना और भूत-प्रेत बाधाओं से व्यक्ति को छुटकारा मिल सकता है। लेकिन इसके लिए सबसे पहले यहां अर्जी लगाई जाती है। अर्जी लगाने के लिए मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में लंबी लाइन लगी रहती है। जानकारी के मुताबिक, हर दिन 2 बजे मंदिर में कीर्तन किया जाता है उसके बाद जो लोग नकारात्मक शक्तियां और ऊपरी चक्कर से पीड़ित है उन्हें इन सब से मुक्त कराया जाता है। मेहंदीपुर बालाजी में पीछे देखने की होती है मनाही मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में दो तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। एक दर्खावस्त और दूसरी अर्जी। दर्खावस्त का मतलब होता है अर्जी। इस प्रसाद को दो बार खरीदा जाता है। वहीं अर्जी में 3 थालियों में प्रसाद दिया जाता है। दर्खावस्त का प्रसाद चढ़ाने के बाद वहां से तुरंत निकलना पड़ता। वहीं अर्जी के प्रसाद को लौटते समय पीछे फेंकने की प्रथा है। मान्यताओं के अनुसार, प्रसाद को फेंकने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। अर्जी वालों को प्रसाद लौटते समय दिया जाता है। मेहंदीपुर बालाजी का प्रसाद घर क्यों नहीं लाया जाता है? आमतौर पर हर मंदिर का प्रसाद घर लाना अच्छा माना जाता है लेकिन मेहंदीपुर बालाजी से प्रसाद घर लाने की मनाही होती है। दरअसल, यह मंदिर भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से मुक्ति के लिए जाना जाता है। तो कहा जाता है कि अगर यहां का प्रसाद कोई खा लें या अपने साथ घर ले जाए तो उसपर नकारात्मक शक्तियां हावी हो जाती है। मेहंदीपुर बालाजी से जुड़े जरूर नियम मेहंदीपुर बालाजी के दर्शन के बाद प्रभु राम और माता सीता के दर्शन जरूर करें। बालाजी के दरबार में आने से करीब एक सप्ताह पहले प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा का सेवन बंद कर दें। मेहंदीपुर बालाजी की आरती के समय सिर्फ भगवान की तरफ ही देखें। आरती के समय पीछे मुड़ना या किसी की आवाज सुन कर पीछे नहीं देखना चाहिए। मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का प्रसाद कभी घर लेकर न जाएं। प्रसाद के साथ ही कोई भी खाने-पीने की या अन्य चीजों को भी साथ ले जाना निषेध है। *@ललित_चौहान*