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May 19, 2025 at 04:41 PM
#मुक्ति_और_आत्मज्ञान
ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती किंतु आत्म ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है, आत्मज्ञान के बाद भी अहंकार शेष रह जाता है। जिससे फिर वासना का उदय हो सकता है, अहंकार के बचे रहने से ही व्यक्ति फिर अपने को कर्ता एवं भोक्ता मानने लगता है जो उसके फिर जन्म मरण का कारण बन जाता है अहंकार के कारण वासना बीज रूप से विद्यमान रहती है। अतः वासना के त्याग के बिना मुक्ति नहीं हो सकती इसलिए इस वासना का प्रयत्न पूर्वक क्या करना चाहिए आत्मज्ञान के बाद जब जान लिया जाता है कि मैं शरीर नहीं बल्कि आत्मा हूं तो भी अहंकार के बच रहने के कारण मनुष्य का यह भाव बना रहता है कि मैं शरीर एवं इंद्रियां हूं जो अनात्म पदार्थ है। इन अनात्म पदार्थों में उसका मैं और मेरा भाव बना रहता है इसी को अभ्यास कहते हैं मुक्ति की इच्छा रखने वाले कोई इस भाव को भी दूर कर देना चाहिए कि मैं शरीर हूं तभी मुक्ति संभव है अन्यथा वासना का यह बीच अवसर पाकर फिर मनुष्य के संसार का कारण बन सकता है।
अनेक जन्मों से मनुष्य की अनात्म वस्तुओं में आत्म बुद्धि हो गई है किंतु आत्मज्ञान के बाद जब जान लिया कि मैं आत्मा हूं जो बुद्धि एवं उसकी विधियां का साक्षी है तो उसके बाद अनात्न वस्तुओं में दृढ हुई आत्मबुद्धि का त्याग कर देना चाहिए अन्यथा यह मन फिर वासना ग्रस्त हो सकता है। वासना चाहे किसी भी प्रकार की हो संसार की हो देह की हो अथवा शास्त्रों की सभी छोड़ देनी चाहिए क्योंकि फिर शास्त्रों का भी कोई प्रयोजन नहीं रहा पुणे छोड़ ही देना चाहिए उसी प्रकार शास्त्र मात्र मार्ग निर्देशक ही है जब पहुंच गए तो फिर शास्त्रों कोई प्रयोजन ही नहीं रहा। इसलिए उन्हें भी छोड़ देना चाहिए जिसे छोड़ने की इच्छा नहीं होती वह फिर बंधन का कारण बन जाता है वासना के कारण ही मनुष्य वस्तुओं को पकड़ता है इसलिए इन तीनों की वासना का भी त्याग कर देना चाहिए उसे जबरदस्ती रोकना भी वासना ही है किसी के प्रति कोई आग्रह ना हो तो ऐसा जीवन बना लेना चाहिए इस प्रकार आत्मा में अभ्यास हो गया है उसे छोड़ देना ही मुक्ति है।
वासना मन की उपज है मन की प्रवृत्ति विषयों की ओर ही होती है जिससे विभिन्न प्रकार की वासनाएँ पैदा होती है इनमें लोक वासना शास्त्र वासना एवं देह वासना की पूर्ति में ही मन की सारी शक्ति व्यय हो जाती है। जिससे वह आत्म स्वरूप को देख ही नहीं पाता इसलिए इन तीन प्रकार की वासनाओं को छोड़े बिना उसे कभी अपनी आत्मा का ज्ञान नहीं हो सकता।
यह वासनाएँ ही उसे निरंतर भटकाती रहती हैं जो ब्रह्मज्ञ है, जिसको ब्रह्म ज्ञान हो गया है उन्होंने इन तीनों प्रकार की वासनाओं को ही संसार बंधन का कारण माना है, संसार बंधन नहीं है न इनके भोग बंधन है बल्कि इसके प्रति जो वासना है आसक्ति है राग है वही बंधन है।।
जिससे मनुष्य उसे छोड़ना नहीं चाहता संसार अथवा उसके विषयों ने मनुष्य को नहीं बाँधा है बल्कि वासना के कारण वह स्वयं से बंधा है इसलिए इन तीनों प्रकार की वासनाओं का त्याग करना ही मुक्ति है मुक्ति के लिए और कोई श्रम साधना तपस्या नहीं करनी पड़ती।
शुद्ध बुद्धि ही आत्म स्वरूप के जानने में सक्षम होती है किंतु जब उस पर वासना का आवरण चढ़ जाता है तो उसका आत्मस्वरूप लुप्त होकर वासना युक्त आवरण की प्रतीत होने लगता है, जो वासना का यह आवरण दूर हो जाता है तो आत्मा पुनः अपने शुद्ध रूप में प्रकट हो जाता है इसलिए वासना का त्याग ही मुक्ति का कारण है।
आत्मा को जानने की इच्छा आनात्म वस्तुओं की वासनाओं के कारण छिप गई है मनुष्य अनात्म वस्तुओं की ही वासना करता है जो नित्य नहीं है तथा मनुष्य को कभी सुख नहीं दे सकती यही वासना जन्म मृत्यु का कारण भी है इसलिए बुद्धिमान पुरुष को इनकी वासनाओं का त्याग करके निरंतर आत्मनिष्ठा में ही स्थित रहने से इन अनात्म वस्तुओं की वासना अपने आप छूट जाती है तथा आत्मा का स्वरूप स्पष्ट भासने लगता है। जिस प्रकार अंधकार को सीधा नहीं हटाया जा सकता दीपक जलाना ही उसे हटाने का एकमात्र विधि है।
उसी प्रकार आत्मज्ञान के भाव में ही मनुष्य अनात्न वस्तुओं का वासना करता है। इन वासनाओं को सीधा दूर नहीं किया जा सकता पंचाग्नि तब करने भूखे रहने शरीर को सताने धन-संपत्ति छोड़ देने नग्न हो जाने आदि से वासनाएं छूटती नहीं।
झोपड़ा छोड़ देने से महल नहीं मिल जाता बल्कि महल मिल जाने पर झोपड़ा अपने आप छूट जाता है इसी प्रकार आत्मज्ञान हो जाने पर सभी प्रकार की सांसारिक वासनाएं अपने आप छूट जाती हैं । उन्हें पर्यटन करके छोड़ना नहीं पड़ता जब तक उच्च की प्राप्ति नहीं हो जाति तब तक निम्न को छोड़ना संभव है युवा सुनाएं धर्मगुरुओं के उपदेशों से छूटने वाली नहीं है और आज तक ने किसी की छूटी है।
धर्मगुरु सोम उपदेश देने की वासना से दृष्ट है जिससे उनके अहंकार को तुष्टि मिलती है, इसलिए इनका कोई प्रभाव नहीं होता वासना त्याग का ही एक उपाय है मनका अंतर्मुखी करके निरंतर आत्म चिंतन में लीन रहना चाहिए इसी से बाह्य वासनाएँ छूट जाती हैं।
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