
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 6, 2025 at 11:58 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित*
*अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳*
*क्रमांक~ १२*
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साभार......…
*हमारे बुद्धिजीवी अक्सर देश में मजहबी समस्या के बारे में काफी चिंतित दिखाई देते हैं—*
*तो* अगर वाकई हमें मजहबी चिंता है तो हमें कुछ बेसिक बातें समझनी होगी तभी हम इस समस्या को बेहतर ढंग से सुलझा पाएंगे।
देखा जाए तो *हमारे सनातन धर्म* और *अरबी मजहब में कुछ बेसिक अंतर है* जहाँ हम सभ्य और सुसंस्कृत हैं वहीं मजहब जाहिलाना सोच से परिपूर्ण है।
हम नारियों के सम्मान पर और प्रकृति पूजन पर जोर देते हैं *दान-पुण्य पर विश्वास करते हैं* जीव-हत्या से परहेज करते हैं।
वहीं वे गैर-महजब तो छोड़ो अपनी माँ-बहनों को भी खेती मानते है *प्रकृति का विघटन करते है* और जीव हत्या को सबसे बड़ा मजहबी कार्य मानते है।
और तो और *जहाँ दुनिया इस गर्मी में कम और हल्के कपड़े पहनते हैं* वहीं उनकी महिलाएँ इस भीषण गर्मी में भी *काले तंबू के लबादे में ढंकी रहती है* ऊपर से तीन निकाह, हलाला, मुताह आदि तो है ही।
*मतलब कि हमारी और उनकी कोई तुलना ही नहीं है* लेकिन फिर भी… *लव जिहाद* और *धर्म परिवर्तन से हम परेशान हैं वो नहीं* बल्कि तरीके से इसका बिल्कुल उल्टा होना चाहिए था।
*क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ये उल्टी गंगा बह क्यों बह रही है???*
असल में इसका मुख्य कारण है हमारी अज्ञानता, अपने धर्म के प्रति उदासीनता और दूसरों को अपने से बेहतर मानने की प्रवृति।
*तो* इसमें समस्या ये आती है कि अपने लोग अपने धर्म की महानता नहीं जानते है *या फिर हम अपने लोगों को अपना धर्म नहीं समझा पाते हैं* इसीलिए सामने वाला उन्हें अपना अधर्म समझा जाता है।
जिससे हमारे लिए लव जिहाद और धर्म परिवर्तन जैसी समस्याएं आने लगती है।
और हम हिंदुओं में ये समस्या सिर्फ धार्मिक तौर पर ही नहीं है बल्कि सामाजिक और राजनीतिक तौर भी है।
उसी समस्या के कारण *लोग हिंदू होते हुए भी अपने ही* करवा चौथ, छठ पूजा, वट सावित्री पूजा, रक्षाबंधन *जैसे त्योहारों का मिम्स बनाते हैं* और दूसरे हिंदू उस पर ठहाके लगाते हैं।
*और सिर्फ त्योहारों तक ही सीमित नहीं है* ये हम सब जानते हैं कि अपने देश में संसदीय प्रणाली है और देश कानून से चलता है।
इसका मतलब हुआ कि देश वैसे ही चलेगा *जैसा देश की संसद चाहेगी* अथवा जैसी कानून बनाएगी।
*तो* यदि हमें देश को अपने हिसाब से चलाना है तो फिर सत्ता अपने हाथ में चाहिए।
ये समझने के लिए किसी का वैज्ञानिक होना जरूरी नहीं है बल्कि इतनी आसान सी बात को कोई बच्चा भी समझ भी समझ सकता है *लेकिन हम करते क्या हैं???*
हम अपने ही त्योहार, अपनी ही पार्टी की हंसी उड़ाते हैं और उसके विरुद्ध कैम्पेनिंग करते हैं।
*और* मजे की बात है कि ऐसा करने वालों को कोई विधर्मी नहीं बल्कि अपने ही लोग समर्थन करते है।
*लेकिन* कोई ये समझने के लिए तैयार नहीं है कि हम हिंदू सिर्फ राजनीतिक तौर पर ऐसा नहीं करते हैं *बल्कि धार्मिक रूप से भी इसी समस्या से ग्रसित हैं* अज्ञानता, उदासीनता और दूसरों को अपने से श्रेष्ठ मानने की प्रवृति।
लेकिन *यकीन मानें कि* जिस तरह धर्म के मामले में सर्वश्रेष्ठ होने के बावजूद भी हम आज लव जिहाद और धर्म परिवर्तन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं *ठीक उसी तरह* राजनीतिक मामले में भी अज्ञानता, (घटनाक्रम के बारे में आधी-अधूरी जानकारी होना) उदासीनता (ज्यादा मतलब नहीं रखना) और दूसरों को अपने से श्रेष्ठ मानने की प्रवृति *(खान्ग्रेस*, *सपा*, *राजद*, *टीएमसी आदि को कार्यकर्ता मामले में बेहतर मानने की प्रवृति)* के कारण बहुत ही जल्द हम राजनीतिक मामलों में भी उसी लव जिहाद और धर्म परिवर्तन (सत्ता परिवर्तन) की समस्या झेलेंगे।
और ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस होती है *अर्थात* जिसकी सत्ता होती है देश उन्हीं की विचारधारा के अनुसार चलता है।
अंत में चलते-चलते ये बता दूँ कि मुगलिया हमले के समय भी अपने राजाओं से असन्तुष्ट होकर अथवा निजी स्वार्थ से वशीभूत होकर किले के अंदर से ही दुश्मनों के लिए दरवाजा खोलने की ये प्रथा काफी पुरानी है जो कि आज भी बदस्तूर जारी है।
अंतर सिर्फ ये है कि उस समय राजा से असन्तुष्ट होकर अथवा निजी स्वार्थ से वशीभूत होकर मुगलिया सेना के लिए किले के दरवाजे खोले जाते थे।
और आज अपने राजा से असन्तुष्ट होकर अथवा निजी स्वार्थ से वशीभूत होकर मुगलों के सरपरस्तों के लिए किले अर्थात संसद के दरवाजे खोलने का प्रयास जारी है।
*जय महाकाल*
सभी को राम राम रहेगी🙏🏻🙏🏻
अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश
*मोबाईल – 9451221253 : साभार*
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