अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 6, 2025 at 11:59 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित* *अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳* *क्रमांक~ १३* https://photos.app.goo.gl/QNEeDrFn3FJXtAfx6 🇮🇳🚩🇮🇳 *`6 जून 1674`* *_आज़ छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था।_* *छत्रपति शिवाजी महाराज ने केवल जनतंत्र की स्थापना की थी, जो सफल रही, बल्कि उनके 6 जून 1674 को आज से 350 वर्ष पूर्व हिंदू पद-पादशाही की स्थापना ने यह भी सिद्ध कर दिया कि उनके कौशल से सांस्कृतिक और सांस्कृतिक शक्ति के बल पर कोई भी संगठन खड़ा नहीं किया जा सकता।* *हमारे देश में राज्याभिषेक का गौरवशाली इतिहास कायम है। वैदिक युग से लेकर अब तक हमें इसके बहुत ही सुंदर विवरण मिलते हैं। प्राचीन काल में सभी प्रकार के यज्ञों में राजसूय यज्ञ प्रधान थे। उनके भी उद्हारण मिलते हैं, वे सभी यज्ञ राज्याभिषेक की ओर संकेत करते हैं। राजसूय यज्ञ में राजा को लेने होते थे और अग्नि को संकल्प लेने के लिए प्रजा को वचन भी देने होते थे। प्राचीन काल से ही हमें भी राज्य अभिषेक का उदहारण मिलता है,उनमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का राज्य अभिषेक तो सिरमौर माना जाता है। श्रीराम का राज्याभिषेक 14 वर्ष के वनवास और रावणवध के बाद जिन रेनॉल्डा में हुआ, वह आज भी अत्यंत पूजा भाव से देखे गए हैं।* *इतिहास में वे ही राज्याभिषेक नामांकन हुए, जो किसी नायक के कठिनतम संघर्ष की अंतिम और सुखद परिणति के रूप में देखे गए। सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य और विक्रमादित्य के राज्याभिषेकों को भी भारतीय गणराज्यों के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इन राज्य अभिषेकों ने केवल युग ही नहीं बदले, उनके मूल्यों को भी उन्नत शिखर तक पहुँचाया, जो बाद में राजघरानों में आदर्श के रूप में देखे गए। दुर्भाग्यवश विदेशी अक्रांताओं के धावा बोलने के बाद राज्यअभिषेकों की यह परंपरा पूरी तरह समाप्त हो गई।* *आज से 351 वर्ष पूर्व महाराजा छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में एक अनमोल घटना के रूप में माना जाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक ने भारत के जन-मन को बहुत प्रभावित किया। 351 वर्ष पूर्व छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्य अभिषेक हमें वेदकालीन राज्य अभिषेक की याद दिलाता है। यह मुगल साम्राज्य में सल्तनत की ताजपोशी की तरह नहीं था।* *छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक उस दौर में ऐसे महान सांस्कृतिक और राजनीतिक महोत्सव के रूप में देखा गया, जिसका उल्लास आज तक बना है। मुगलकाल में इस प्रकार के राज्य अलंकरण भरे हुए थे, क्योंकि अवसर ही कहाँ थे? शिवाजी ने जिस तरह स्वराज्य का संकल्प लेकर मुगलों से लोहा लिया, उसी संकल्प से राज्यारोहण भी किया। राज्य स्थापना से पहले शिवाजी के लोकतंत्र की रक्षा के लिए कांस्टीट्यूशन फ़्रांसीसी युद्ध चल रहा था, लेकिन वे कभी भी राजा द्वारा स्वीकार नहीं किए जा सके।* *शिवाजी का राज्याभिषेक शिवाजी की ही बनाई गई बड़ी महत्वकांक्षी योजना थी, ताकि वे पूरी ताकत के साथ बिना किसी विघ्न-बाधा के हिंदवी स्वराज्य का संकल्प पूरा कर सकें। मुगलकाल का सबसे विदरूप चेहरा तो औरंगजेब ही था, वही शिवाजी की ताकत पर आया था। दबी-कुली और राजनीतिक जनता का भरपूर साथ मिला। जनता के ही समर्थन से छह जून, 1674 को रायगढ़ दुर्ग में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ।* *छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक को राज्यारोहण, हिंदू पद-पादशाही का स्थापना दिवस भी कहा गया और हिंदी स्वराज्य का श्रीगणेश भी। पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की पुरातात्विक धरोहरों का यह महोत्सव अब केवल महाराष्ट्र में ही नहीं,संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है। शिवाजी के राज्याभिषेक राष्ट्र द्वारा सिंह-गर्जना के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।* *छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक वेदकालीन राजसूय की तरह ही था, जो पंडित गैंग भट्ट के निर्देशक और मां जीजाबाई की उपस्थिति में हुए थे। राजसूय का दृश्य दिखने के बाद दिखाई दिया, इसलिए लोगों में इसे देखने का चाव भी बहुत था। राज्याभिषेक से पहले शिवाजी का यज्ञोपवीत संस्कार हुआ, तुलादान हुआ। वैदिक रीति के अनुसार शिवाजी को पंचामृत स्नान और शुद्धोदक स्नान कराया गया।* *बताया गया है कि जब वस्त्राभूषण धारण कर शिवाजी पैलेस में आये, तब वे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ही लग रहे थे। सारणी के अनुसार 50 हजार से भी अधिक लोग सम्मिलित थे, जिनमें संत, विद्वान, धर्माचार्य, सम्राट, राजदूत, सेना-नायक, गायक-नर्तक और आबाल वृद्ध थे। इस राज्य को बहुत महत्वपूर्ण महत्व देने का बड़ा कारण यह है कि इस दिन स्वतंत्र प्रभुसत्ता की स्थापना की गई थी। वह हमारे राम का राज्याभिषेक था। उन्होंने हिंदू राजवंशों के लिए राज्याभिषेक के बाद मीलों का पत्थर साबित किया। राज्य स्थापित करने के लिए शिवाजी महाराज ने जो पवित्र घोषित किया था, वे बहुत आगे तक के लिए दिशासूचक बनें। यहां 20वीं सदी की शुरुआत तक लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने जब स्वराज्य को जन्मसिद्ध अधिकार देने का उद्घोष किया तो छत्रपति शिवाजी महाराज की मंडली में ही शामिल थे।* *छत्रपति शिवाजी महाराज का युद्धशास्त्र और नीतिशास्त्र अपना था। शिवाजी के शास्त्र की नीति और उनकी राजनीति के सिंहासन से भारत स्वतंत्रता संग्राम की स्थापना हुई। उनके म्यान से भवानी तलवारें अंततः अधम थी, जब धर्म और नीति का आदेश हुआ था। संगठन में उनका दृढ़ विश्वास था। राज्याभिषेक के दिन जिन आठ प्रधानों को उन्होंने शपथ दिलाई, वे शिवाजी की राजनीतिक मान्यताओं के साकार रूप थे। राज्य की स्थापना के बाद दक्षिण में स्वराज्य की स्थापना के लिए शिवाजी का प्रस्थान और भारत के इतिहास में उनकी दक्षिण विजय को युग परिवर्तनकारी घटना माना जाता है। शिवाजी जैसे वीर थे, वैसे ही धर्मनिष्ठ भी थे।* *समर्थ गुरु रामदास से वे सदैव प्रेरणा लेते रहे। 'दासबोध' उनका कवच था। सनातन धर्म पर उनकी आस्था अटल थी, लेकिन वे धर्म-सहिष्णु भी कम नहीं थे। वे साम्प्रदायिकता से बहुत ऊपर उठे हुए सहृदय सम्राट की तरह थे। सर्वधर्म समभाव के जैसे उदाहरण शिवाजी के जीवन में मिलते हैं, वैसे अन्यत्र दुर्लभ हैं।* *साभार~* देवभूमि मीडिया डेस्क 🕉️🌞🔥🔱🐚🔔🌷

Comments