अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 8, 2025 at 12:10 AM
*"अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन"*(पंजीकृत) *द्वारा संचालित* *अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳* *क्रमांक~ ०२* https://photos.app.goo.gl/YEuuYWwWnH71suy67 🚩🚩 🚩🚩 *`!! श्रीमद्भागवत महापुराण !!`* `{अष्टम स्कन्ध}` *【षोडश: अध्याय:】* *(श्लोक~ 32 से 62 तक)* *_कश्यपजी के द्वारा अदिति को पयोव्रत का उपदेश..._* *आप ही लोककल्याणकारी शिव और आप हो प्रलयकारी रुद्र हैं।* समस्त शक्तियोंको धारण करनेवाले भी आप ही हैं। *आपको मेरा बार-बार नमस्कार है।* आप समस्त विद्याओं के अधिपति एवं भूतों के स्वामी हैं। *आपको मेरा नमस्कार है।* आप ही सबके प्राण और आप ही इस जगत्के स्वरूप भी हैं। *आप योग के कारण तो हैं ही स्वयं योग और उससे मिलने वाला ऐश्वर्य भी आप ही हैं।* हे हिरण्यगर्भ ! आपके लिये मेरा नमस्कार है। *आप ही आदिदेव हैं। सबके साक्षी हैं।* आप ही नरनारायण ऋषि के रूप में प्रकट स्वयं भगवान् हैं। *आपको मेरा नमस्कार है।* आपका शरीर मरकतमणि के समान साँवला है। *समस्त सम्पत्ति और सौन्दर्य की देवी लक्ष्मी आपकी सेविका है।* पीताम्बरधारी केशव ! आपको मेरा बार-बार नमस्कार। आप सब प्रकार के वर देने वाले हैं। *वर देने वालों में श्रेष्ठ है तथा जीवों के एकमात्र वरणीय हैं।* यही कारण है कि धीर विवेकी पुरुष अपने कल्याण के लिये आपके *चरणों की रज की उपासना करते हैं।* जिनके चरण कमलों की सुगन्ध प्राप्त करने की लालसा से *समस्त देवता और स्वयं लक्ष्मीजी भी सेवा में लगी रहती हैं, वे भगवान् मुझ पर प्रसन्न हों।* प्रिये ! भगवान् हृषीकेश का आवाहन पहले ही कर ले। फिर इन मन्त्रों के द्वारा पाद्य, आचमन आदि के साथ श्रद्धापूर्वक मन लगाकर पूजा करें। *गन्ध, माला आदि से पूजा करके भगवान्‌ को दूध से स्नान करावे।* उसके बाद वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, पाद्य, आचमन, गन्ध, धूप आदि के द्वारा *द्वादशाक्षर मंत्र से भगवान की पूजा करे।* यदि सामर्थ्य हो तो दूध में पकाये हुए तथा और *गुड़ मिले हुए चावल का नैवेद्य लगावे और उसी का द्वादशाक्षर मन्त्र से हवन करे।* उस नैवेद्य को भगवान् के भक्तों में बाँट दे या स्वयं पा ले। आचमन और पूजा के बाद ताम्बूल निवेदन करे। *एक सौ आठ बार द्वादशाक्षर मन्त्र का जप करे और स्तुतियों के द्वारा भगवान् ‌का स्तवन करे।* प्रदक्षिणा करके बड़े प्रेम और आनन्द से भूमि पर लोटकर दण्डवत् प्रणाम करे। *निर्माल्य को सिर से लगाकर देवता का विसर्जन करे।* कम-से-कम दो ब्राह्मणों को यथोचित रीति से भोजन करावे। *दक्षिणा आदि से उनका सत्कार करे।* इसके बाद उनसे आज्ञा लेकर अपने इष्ट-मित्रों के साथ *बचे हुए अन्न को स्वयं ग्रहण करे।* उस दिन ब्रह्मचर्य से रहे और दूसरे दिन प्रातःकाल ही नित्य कर्म आदि करके *पवित्रतापूर्वक पूर्वोक्त विधि से एकाग्र होकर भगवान् की पूजा करे।* इस प्रकार जबतक व्रत समाप्त न हो, *तब तक दूध से स्नान कराकर प्रतिदिन भगवान्‌ को पूजा करे।* भगवान्‌की पूजा में आदर-बुद्धि रखते हुए केवल पयोजती रहकर यह व्रत करना चाहिये *पूर्ववत् प्रतिदिन हवन और ब्राह्मण भोजन भी कराना चाहिये।* इस प्रकार पयोव्रती रहकर बारह दिन तक प्रतिदिन भगवान की आराधना, होम और भोजन कराता रहे। पूजा करे तथा *फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से लेकर त्रयोदशीपर्यन्त ब्रह्मचर्य से रहे, पृथ्वी पर शयन करे और तीनों समय स्नान करे। झूठ न बोले। पापियों से बात न करे। पाप की बात न करे। छोटे-बड़े सब प्रकार के भोगों का त्याग कर दे। किसी भी प्राणी को किसी प्रकार से कष्ट न पहुँचावे। भगवान्‌ की आराधना में लगा ही रहे।* त्रयोदशी के दिन विधि जानने वाले ब्राह्मणों के द्वारा शास्त्रोक्त विधि से *भगवान् विष्णु को पञ्चामृतस्नान करावे।* उस दिन धन का सङ्कोच छोड़कर भगवान्की बहुत बड़ी पूजा करनी चाहिये और *दूध में चरु (खीर) पकाकर विष्णुभगवान्‌ को अर्पित करना चाहिये।* अत्यन्त एकाग्र चित्त से उसी पकाये हुए चरु के द्वारा भगवान्‌ का यजन करना चाहिये *और उनको प्रसन्न करनेवाला गुणयुक्त तथा स्वादिष्ट नैवेद्य अर्पण करना चाहिये।* इसके बाद ज्ञानसम्पन्न आचार्य और ऋत्विजों को वस्त्र, आभूषण और गौ आदि देकर सन्तुष्ट करना चाहिये। प्रिये! *इसे भी भगवान्‌ की ही आराधना समझो।* प्रिये ! आचार्य और ऋत्विजों को शुद्ध, सात्त्विक और *गुणयुक्त भोजन कराना ही चाहिये;* दूसरे ब्राह्मण और आये हुए अतिथियों को भी अपनी शक्ति के अनुसार भोजन कराना चाहिये। गुरु और ऋत्विजों को यथायोग्य दक्षिणा देनी चाहिये। *जो चाण्डाल आदि अपने-आप वहाँ आ गये हों, उन सभी को तथा दीन, अंधे और असमर्थ पुरुषों को भी अन्न आदि देकर सन्तुष्ट करना चाहिये।* जब सब लोग खा चुकें, तब उन सबके सत्कार को भगवान्‌ की *प्रसन्नता का साधन समझते हुए अपने भाई-बन्धुओं के साथ स्वयं भोजन करे।* प्रतिपदा से लेकर त्रयोदशी तक प्रतिदिन नाच-गान, बाजे-गाजे, स्तुति, स्वस्तिवाचन और भगवत्कथाओं से भगवान्‌ की पूजा करे करावे। प्रिये ! यह भगवान्की श्रेष्ठ आराधना है। इसका नाम है *'पयोव्रत'।* ब्रह्माजी ने मुझे जैसा बताया था, वैसा ही मैंने तुम्हें बता दिया। देवि! *तुम भाग्यवती हो। अपनी इन्द्रियों को वश में करके शुद्ध भाव एवं श्रद्धापूर्ण चित्त से इस व्रत का भलीभांति अनुष्ठान करो* और इसके द्वारा अविनाशी भगवान्‌ की आराधना करो। कल्याणी ! यह व्रत भगवान्‌ को सन्तुष्ट करनेवाला है, *इसलिए इसका नाम है 'सर्वयज्ञ' और 'सर्वव्रत'।* यह समस्त तपस्याओं का सार और मुख्य दान है। *जिनसे भगवान् प्रसन्न हों—वे ही सच्चे नियम हैं, वे ही उत्तम यम हैं, वे ही वास्तव में तपस्या, दान, व्रत और यज्ञ हैं।* इसलिए देवि ! संयम और श्रद्धा से तुम इस व्रत का अनुष्ठान करो। *भगवान् शीघ्र ही तुमपर प्रसन्न होंगे और तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण करेंगे॥* *।। इस प्रकार श्रीमदभागवत महापुराण के अष्टम स्कंध का सोलहवां अध्याय(श्लोक~32 से 62 तक) पूरा हुआ।।* *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🙏🏻🙏🏻* 🕉️🌞🔥🔱🐚🔔🌷

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