
अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳
June 9, 2025 at 03:34 AM
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*अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳*
*क्रमांक~ ०४*
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*_शत-शत नमन 9 जून/जन्म-दिवस, महान स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण प्रसाद दुबे..._*
लक्ष्मण प्रसाद दुबे भारत के *स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे।* शिक्षकीय कर्तव्य को अपनी साधना मानने वाले लक्ष्मण प्रसाद दुबे का *संपूर्ण जीवन एक शिक्षक के रूप में बीता था,* जिस कारण उन्हें *'गुरुजी'* के रूप में जाना जाता रहा। उन्होंने अपने जीवन में *कई लोगों को शिक्षित कर उनके मन में देशभक्ति की भावना को जागृत किया।* वहीं कई लोगों को शिक्षक बनने हेतु प्रेरित भी किया। लक्ष्मण प्रसाद जी *देश में नारी स्वतंत्रता एवं नारी शिक्षा के प्रबल पक्षधर थे।*
लक्ष्मण प्रसाद दुबे का जन्म *छत्तीसगढ़ स्थित दुर्ग ज़िले के दाढी गांव में 9 जून, 1909 को हुआ था।* वे गांव में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद *बेमेतरा से उच्चतर माध्यमिक व शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर शिक्षकीय कार्य में जुट गये।* उनकी पहली नियमित पद स्थापना सन 1929 में भिलाई के माध्यमिक स्कूल में हुई थी। *उस समय दुर्ग में स्वतंत्रता आंदोलन का ओज फैला हुआ था।* ज्योतिष के विद्वान लक्ष्मण प्रसाद दुबे ने यूनानी चिकित्सा व *वैद विशारद की परिक्षा भी पास की थी* एवं शिक्षा के साथ चिकित्सा कार्य भी किया।
भिलाई में शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए लक्ष्मण प्रसाद दुबे का *संपर्क ज़िले के वरिष्ठ सत्याग्रही नरसिंह प्रसाद अग्रवाल से हुआ।* उस समय किशोर व युवजन के अग्रवाल जी आदर्श थे। उनके मार्गदर्शन व आदेश से लक्ष्मण प्रसाद जी *भिलाई में अपने साथियों एवं छात्रों के साथ मिलकर 'मद्य निषेध आंदोलन' व 'विदेशी वस्त्र आंदोलन' को हवा देने लगे।* उसी समय उन्होंने भिलाई में विदेशी वस्तुओं के साथ *जार्ज पंचम का चित्र भी जलाया।* बढ़ते आंदोलन की भनक से अक्टूबर, 1929 में भिलाई का मिडिल स्कूल बंद कर दिया गया *और उनका स्थानांतरण बालोद मिडिल स्कूंल में कर दिया गया।* लक्ष्मण प्रसाद दुबे को अपने नेता के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हो गया, क्योंकि अग्रवाल जी बालोद के मूल निवासी थे।
बालोद के ग्राम पोडी में हुए *जंगल सत्याग्रह* की पूरी रूपरेखा एवं दस्तावेजी कार्य नरसिंह प्रसाद *अग्रवाल जी ने इन्हें सौंप दिया था।* इन दस्तावेजों को दुर्ग पुलिस एवं गुप्तचरों से बचाते हुए *’जंगल सत्याग्रही* व अन्य क्रियाकलापों का विवरण वे एक रजिस्टर में दर्ज करते रहे। *अग्रवाल जी के जेल जाने के बाद भी उनके द्वारा जंगल सत्याग्रह को नेतृत्व प्रदान करते हुए कायम रखा गया।* वे बतलाते थे कि उस समय सत्याग्रह रैली व सभाओं में 8-10 महिलायें भी आती थीं, जो चरखा लेकर आंदोलन का प्रतिनिधित्व करती थीं।
उन्हीं दिनों सन 1930 में बालोद के *सर्किल ऑफीसर नायडू से से लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी की बहस हो गई।* तब अग्रवाल परिवार की मध्यस्थता से इनका स्थानांतरण धमधा कर दिया गया। *अब इनकी दौड़ बालोद-दुर्ग, धमधा दाढी तक होती रही।* वे विश्वनाथ तामस्कर, रघुनंदन प्रसाद सिंगरौल, लक्ष्मण प्रसाद बैद के साथ *सत्याग्रह आंदोलन के क्रियाकलापों से जुड़े रहे।* नरसिंह प्रसाद अग्रवाल के इस क्षेत्र में *दौरे का प्रभार लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी के पास ही होता था।* सन 1932 में अग्रवाल जी के दाढी के दौरे में वे रास्ते भर सक्रिय रहे। नरसिंह प्रसाद अग्रवाल युवा *सत्याग्रहियों को हमेशा समझाया करते थे कि जोश के साथ होश मत खोना,* क्योंकि जोश के कारण सभी बड़े नेता *"सरकार की हिट लिस्ट में आ गये थे,* जिस कारण उनकी गिरफ़्तारी होती रहती थी।
स्वतंत्रता आंदोलन को जीवंत रखने के लिए *द्वितीय पंक्ति के सत्याग्रहियों को अपना दायित्व निभाना था,* अत: लक्ष्मण प्रसाद दुबे अपने गांधीवादी नरम रवैये से शिक्षकीय कार्य करते रहे। *1942 में लक्ष्मण प्रसाद दुबे का स्थानांतरण डौंडी लोहारा कर दिया गया।* जंगल सत्याग्रह की *रणनीति में माहिर लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी के लिए यह स्थान बालोद जैसा ही रहा,* क्योंकि यह स्थान जंगलों के बीच है, अत: वे वहां अपने मूल कार्य के साथ *पैदल गांव-गांव का दौरा कर सत्याग्रह का पाठ पढ़ाते रहे।* इस बीच उनको मार्गदर्शन नरसिंह प्रसाद अग्रवाल से मिलता रहा।
1942 में ही जमुना प्रसाद अग्रवाल अपने बडे भाई नरसिंह प्रसाद का *संदेश लेकर लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी के पास आये और उन्हें सचेत किया कि आपकी भी गिरफ़्तारी हो सकती है।* यहां से वापस लौटते ही जमुना प्रसाद अग्रवाल को *बालोद में गिरफ़्तार कर लिया गया और उसी रात लक्ष्मण प्रसाद दुबे को भी गिरफ़्तार करने का आदेश डौंडी में जारी कर दिया गया,* जिसे लाल ख़ान सिपाही ने तामील करने के पहले ही लीक कर दिया और लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी *स्कूल का त्यागपत्र मित्रों के हाथ सौंपकर फरार हो गये एवं बालोद आ गये।* जहां से वे भूमिगत हो गए। रायपुर के प्रमुख सक्रिय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मोतीलाल जी त्रिपाठी से पारिवारिक संबंधों का लाभ इन्हें मिलता रहा और *लक्ष्मंण प्रसाद दुबे घुर जंगल क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की लौ जलाते रहे।* 1942 से 1947 तक ये खानाबदोश जीवन व्यतीत करते रहे। दुर्ग ज़िले के ग्रामीण क्षेत्रों में *पैदल घूम-घूम कर सत्याग्रह-* शिक्षा का अलख जगाने के कारण ये गिरफ़्तारी से बचे रहे।
लक्ष्मण प्रसाद दुबे शिक्षक जीवन से अवकाश प्राप्त करने के बाद सक्रिय *राजनीति में जनपद पंचायत बेमेतरा के सदस्य रहे।* उन्होंने दुर्ग ज़िला कांग्रेस की सदस्यता 1930 में ग्रहण की थी। 1942 से 1947 *तक ज़िला कांग्रेस के कार्यकारिणी सदस्य के रूप में उन्होंनें कार्य किया। अपनी मृत्यु 23 जुलाई, 1993 तक वे ज़िला कांग्रेस के सक्रिय सदस्य रहे थे।*
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