सुलेखसंवाद
सुलेखसंवाद
May 19, 2025 at 04:11 AM
क्या आप जानते हैं कल 18 मई को अंतरराष्ट्रीय संग्राहलय दिवस था? जब दुनिया हर क्षण रीलों, ट्रेंडों और स्क्रोलिंग के माध्यम से अनुभव की जा रही हो, तब यह प्रश्न स्वाभाविक है: संग्रहालय का स्थान आज कहाँ है? हम, जो डिजिटल तात्कालिकता और शाश्वत विरासत के बीच झूल रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस को कैसे सार्थक रूप से मना सकते थे या हैं? हर वर्ष 18 मई को मनाया जाने वाला संग्रहालय दिवस (म्यूज़ियम डे) केवल अतीत को श्रद्धांजलि देने का दिन नहीं है — यह हमें याद करने और पुनः जुड़ने का आमंत्रण है। संग्रहालय केवल स्मृतियों के मक़बरे नहीं हैं; वे मानव चेतना के जीवित मंदिर हैं। वे खिड़कियाँ हैं इतिहास की ओर और आईने हैं हमारी आत्मा के। तो इस युग में, म्यूज़ियम डे का दर्शन कैसे समझना चाहिए? संग्रहालय: विस्मृति का प्रतिकार दार्शनिक सैंटायाना ने कहा था, “जो लोग अतीत को याद नहीं रखते, वे उसे दोहराने को अभिशप्त हैं।” संग्रहालय हमारे सामूहिक स्मृति-कोश हैं — वे न केवल हमारी महानता बल्कि हमारी भूलों को भी संजोते हैं। रील्स की दुनिया तेज़ है, सतही है। संग्रहालय हमें धीरे चलना सिखाते हैं। वहाँ विचार होता है, संवाद होता है, आत्मनिरीक्षण होता है। एक चित्र या मूर्ति को देखकर हम आगे नहीं बढ़ सकते; हम ठहरते हैं, सोचते हैं, महसूस करते हैं। यही एक गूढ़, लगभग आध्यात्मिक अनुभव है — जिसे आज के युग में फिर से पाना क्रांतिकारी कृत्य है। रील्स की दुनिया की आदि यह वर्तमान सभ्यता क्षणिकता के पशोपेश में है — ट्रेंड्स की हफ्तों में बदल जाने वाली त्वरितता संग्रहालय के शाश्वत को देखने की मंद गति का विरोध है — मिट्टी का हज़ारों साल पुराना बर्तन, एक लुप्त सभ्यता का अवशेष, एक प्राचीन पांडुलिपि। तो म्यूज़ियम डे का उत्सव केवल अतीत की ओर लौटना नहीं, बल्कि विरासत और नवीनता का मिलन है। हर व्यक्ति एक संरक्षक हम अक्सर संग्रहालयों को ‘दूसरा’ मानते हैं — पर्यटन का एक पड़ाव। लेकिन म्यूज़ियम डे का सच्चा उत्सव तब होगा जब हम स्वयं को एक संरक्षक (custodian) समझें। हम सब के पास कुछ संजोने लायक है — कोई कहानी, कोई भाषा, कोई परंपरा। जहां इंस्टाग्राम जैसे डिजिटल माध्यम अपनी वृत्ति में दिखाता है क्या है, वहीं संग्रहालय का चरित्र सिखाता है कुछ भी ऐसा क्यों है। इस दिन, सबसे बड़ा दर्शन शायद यह प्रश्न है: “मैं क्या संजो रहा हूँ?”, “मैं क्या आगे पहुँचा रहा हूँ?” संग्रहालय दिवस को केवल स्मरण का नहीं, बल्कि संस्कृति की रक्षा का एक सचेतन कार्य बना सकते हैं। रीलों में केवल सेल्फ़ी नहीं, कहानियाँ हों — उन वस्तुओं की, उन लोगों की, जिनकी वजह से हम यहाँ हैं। रील्स को विरासत का वाहक बनाएँ। हैशटैग से आगे जाकर धीमी गति के सभ्यता मूलक तत्वों की बात करें। क्योंकि अंततः संग्रहालय कोई भवन नहीं, बल्कि एक विश्वास है — कि हमारा अतीत, हमारे भविष्य को आकार देता है। इस तेज़ बदलती दुनिया में, शायद यही सबसे क्रांतिकारी उत्सव है।
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