सुलेखसंवाद
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May 21, 2025 at 05:44 AM
फिल्म समीक्षा: ‘द डिप्लोमैट’ — नैतिक कूटनीति और भारत की वैश्विक छवि का सजीव चित्रण नेटफ्लिक्स पर हाल ही में आई फिल्म द डिप्लोमैट वास्तविक घटना पर आधारित केवल एक राजनीतिक थ्रिलर नहीं है, बल्कि यह एक दुर्लभ सिनेमाई प्रस्तुति है जो भारत की नैतिक, व्यावहारिक और करुणा-आधारित विदेश नीति को ईमानदारी से प्रस्तुत करती है। ऐसे समय में जब सिनेमा अक्सर राजनीतिक लाभ या वैचारिक ध्रुवीकरण का माध्यम बन जाता है, द डिप्लोमैट एक संतुलित, संवेदनशील और ज़िम्मेदार कहानी के रूप में सामने आती है, जो स्वर्गीय सुषमा स्वराज जैसी नेतृत्वकर्ती की छवि को उजागर करती है। नैतिक कूटनीति: सुषमा स्वराज की विरासत इस फिल्म की सबसे सशक्त बात यह है कि यह दिखाती है कि कूटनीति केवल शक्ति नहीं, बल्कि सेवा और संवेदना का माध्यम भी है। स्वर्गीय श्रीमती सुषमा स्वराज ने अपने कार्यकाल में इसी सिद्धांत को अपनाया था — चाहे वो विदेशों में फंसे भारतीयों को बचाने की बात हो, या सोशल मीडिया के ज़रिए सीधे नागरिकों से संवाद। द डिप्लोमैट इसी मानवीय दृष्टिकोण को सामने लाती है, यह दर्शाती है कि विदेश नीति केवल रणनीति नहीं, बल्कि एक नैतिक ज़िम्मेदारी है। यह भारतीय कूटनीति के उस पक्ष को उजागर करती है जिसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता है — मूल्यों, संस्कृति और मानवीय गरिमा की रक्षा। सवाल उठाना, नफ़रत नहीं आप बिना नफरत फैलाये भी सही सवाल पूछ सकते हैं। जहां एक ओर केरला स्टोरी जैसी फिल्में राजनीतिक ध्रुवीकरण और सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देने के लिए सायास प्रयास करती है और समाज को अतिरंजित पक्ष दिखाने के लिए आलोचवा का शिकार होती हैं, वहीं द डिप्लोमैट न केवल प्रणालीगत खामियों और नीति विफलताओं पर प्रश्न उठाती है, बल्कि ऐसा करते हुए किसी समुदाय, धर्म या देश को बदनाम नहीं करती। यह फिल्म तनाव नहीं, सोच उत्पन्न करती है। सिनेमा का असली उद्देश्य सवाल पूछना होता है, कटघरे में खड़ा करना नहीं। द डिप्लोमैट इसी संवेदनशीलता के साथ एक गंभीर संवाद की शुरुआत करती फिल्म है — सच के साथ, लेकिन संतुलन के साथ। भारत की असली छवि का प्रतिबिंब द डिप्लोमैट की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि यह भारत को किसी अतिरंजनात्मक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि एक यथार्थवादी, आलोचनात्मक और फिर भी राष्ट्रवादी नजरिए से दिखाती है। यह एक ऐसे भारत को दिखाती है जो लोकतांत्रिक मूल्यों, वैश्विक संवाद और ज़िम्मेदार निर्णयों में विश्वास करता है। यह फिल्म उस ‘सॉफ्ट पावर इंडिया’ की छवि को मजबूत करती है जो हिंसा या प्रचार से नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, विवेक और नैतिक नेतृत्व से दुनिया को प्रभावित करता है। : सिनेमा और विदेश नीति में एक नई दिशा द डिप्लोमैट, भारतीय सिनेमा के लिए एक नई दिशा तय करती है — जहां विदेश नीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि एक नैतिक दायित्व के रूप में प्रस्तुत होती है। यह दिखाती है कि राष्ट्रहित और मानवाधिकार एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हो सकते हैं। सुषमा स्वराज जैसी नेत्री की तरह यह फिल्म भी एक ऐसी राह दिखाती है, जिसमें संविधान, करुणा और साहस तीनों का समावेश हो। आज के समय में, जब सिनेमा अक्सर विभाजन की दीवारें खड़ी करता है, द डिप्लोमैट संवाद की पुल बनाता है — और यही इसकी सबसे बड़ी सफलता है।
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