
सुलेखसंवाद
May 22, 2025 at 12:24 AM
“बुकर पुरस्कार और भारतीय भाषाएँ: अनुवाद के माध्यम से वैश्विक मंच पर साहित्यिक पुनर्जागरण”
2025 में कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक की लघुकथा-संग्रह Heart Lamp को इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया जाना केवल एक साहित्यिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह भारतीय भाषाओं, विशेषकर कन्नड़ जैसी क्षेत्रीय भाषाओं के लिए एक सांस्कृतिक और भाषायी पुनर्जागरण की शुरुआत का प्रतीक है। पहले जब अनुवाद के माध्यम से हिंदी की रेत समाधि को यह पुरस्कार मिला तो यह घटना न केवल भारतीय साहित्य के लिए गौरव की बात रही, बल्कि वैश्विक साहित्यिक परिदृश्य में भाषायी विविधता के महत्व को रेखांकित करती हुई घटना साबित हुई।
अब जब हर्ट लैंप को यह पुरस्करा मिला है तो हमें इसके अनुवादक को जानना चाहिए। हर्ट लैंप की अंग्रेज़ी अनुवादिका दीपा भास्थी ने मूल रचनाओं की आत्मा को न केवल भाषा में, बल्कि भाव, संवेदना और सामाजिक यथार्थ में भी ईमानदारी से रूपांतरित किया। यह उदाहरण दिखाता है कि अनुवाद केवल भाषाई हस्तांतरण नहीं है, बल्कि यह एक संस्कृति का एक दूसरी संस्कृति से संवाद है। अनुवाद के माध्यम से हाशिए की आवाज़ें, जो मुख्यधारा के विमर्श से अक्सर बाहर रह जाती हैं, अब वैश्विक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो पा रही हैं।
भारतीय भाषाओं की पुनराविष्कृति
बहुभाषी भारत में साहित्य लंबे समय से क्षेत्रीय स्तर पर समृद्ध रहा है, लेकिन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेज़ी भाषा ने साहित्यिक प्रतिनिधित्व में प्रमुख स्थान घेर रखा था। हर्ट लैंप जैसी कृतियाँ और उनका सम्मान यह संकेत देते हैं कि अब हिंदी, कन्नड़, बंगाली, तमिल, मलयालम आदि भाषाओं का साहित्य भी वैश्विक मूल्यांकन और पाठकीयता का हिस्सा बन रहा है।
इस नए युग में, भारतीय भाषाओं का साहित्य अब केवल “लोकल” नहीं रहा, वह “ग्लोबल” हो रहा है — पर शर्त यही है कि अनुवादक मूल रचना की चेतना को विश्व के संवेदनशील पाठकों तक पहुंचा सकें।
साहित्यिक न्याय और प्रतिनिधित्व
बानू मुश्ताक की कहानियाँ दलित, मुस्लिम, औरतों और गरीब तबके के जीवन की उन सच्चाइयों को उघाड़ती हैं, जिन्हें आमतौर पर साहित्य के सौंदर्यशास्त्र में ‘अप्रिय’ या ‘अनदेखा’ कहा जाता है। बुकर जैसी वैश्विक मान्यता यह दर्शाती है कि अब साहित्य में राजनीतिक चेतना, सामाजिक यथार्थ और भाषायी विविधता को नकारा नहीं जा सकता। यह एक साहित्यिक न्याय है — वह न्याय जो कहानियों, कविताओं और अनसुनी आवाज़ों को बराबरी का स्थान देता है।
बुकर पुरस्कार का कन्नड़ साहित्य को मिलना, और उसके अनुवाद के माध्यम से विश्व-पटल पर पहुंचना, एक संकेत है कि यह भारतीय भाषाओं के लिए एक नया युग है — जहाँ वे न केवल अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखेंगी, बल्कि विश्व-साहित्य में निर्णायक हस्तक्षेप भी करेंगी।
अब ज़रूरत है कि मराठी, उड़िया, असमिया और अन्य भाषाओं के सशक्त साहित्य को भी योजनाबद्ध तरीके से विश्वस्तरीय अनुवाद मिले, ताकि हर्ट लैंप की तरह अनेक “छिपे हुए दीपक” वैश्विक साहित्यिक आकाश में चमक सकें।
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