
सुलेखसंवाद
May 26, 2025 at 12:08 AM
भारत की 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था — उपलब्धि की आधी कहानी
भारत ने हाल ही में 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। यह आंकड़ा न केवल भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि देश निवेश, उत्पादन और व्यापार के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है। इस उपलब्धि को जापान को पीछे छोड़ने के रूप में प्रचारित किया गया, जिसने प्रतीकात्मक रूप से भारत को एशिया की प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया है। लेकिन जब इस आर्थिक सफलता की पड़ताल हम सामाजिक व मानवीय विकास के मानकों के आधार पर करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सफलता अधूरी है।
आर्थिक विकास बनाम मानवीय विकास
भारत की अर्थव्यवस्था का आकार बड़ा हुआ है, परंतु यदि हम इसे प्रति व्यक्ति आय और मानव विकास सूचकांक (HDI) के संदर्भ में देखें, तो तस्वीर पूरी तरह से अलग है। जापान को पीछे छोड़ देने के बावजूद, भारत जापान से जीवन गुणवत्ता के कई मामलों में दशकों पीछे है।
प्रति व्यक्ति आय की विसंगति
भारत की कुल GDP भले ही 4 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गई हो, परंतु प्रति व्यक्ति आय अभी भी बहुत कम है — लगभग $2,500 प्रतिवर्ष। इसके मुकाबले जापान की प्रति व्यक्ति आय $40,000 से अधिक है। इसका अर्थ यह है कि भारत में आर्थिक विकास का लाभ बहुत सीमित वर्ग तक केंद्रित है। एक बड़े तबके के लिए यह ‘विकास’ केवल एक आंकड़ा मात्र है, जिसका उनके जीवन से कोई सीधा संबंध नहीं है।
मानव विकास सूचकांक (HDI) की वास्तविकता
मानव विकास सूचकांक तीन मुख्य क्षेत्रों को मापता है — जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और जीवन स्तर।
• जीवन प्रत्याशा: जापान की औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 84 वर्ष है, जबकि भारत की केवल 70 वर्ष के आसपास है।
• शिक्षा: भारत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता और पहुँच अभी भी असमान है, और उच्च शिक्षा में भी संसाधनों की भारी कमी है।
• स्वास्थ्य सेवाएँ: भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली संसाधनों की कमी और कुप्रबंधन से ग्रस्त है, जिससे गरीब और ग्रामीण जनता बुरी तरह प्रभावित होती है।
नीतिगत प्राथमिकताओं की खामी
भारत की आर्थिक नीतियाँ मुख्यतः सकल घरेलू उत्पाद(GDP) वृद्धि पर केंद्रित रही हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा जैसे बुनियादी क्षेत्रों में अपेक्षित निवेश नहीं हो सका है। इस एकांगी सोच का परिणाम यह है कि देश की समृद्धि केवल कुछ शहरों और औद्योगिक केंद्रों तक सीमित रह गई है, जबकि ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में विकास की रोशनी अभी तक नहीं पहुँची।
भारत में सामाजिक असमानता, बेरोजगारी, और खाद्य सुरक्षा जैसे मुद्दे अब भी गंभीर चुनौती बने हुए हैं। नीतिगत रूप से समावेशी विकास को प्राथमिकता न देने के कारण ही भारत आर्थिक आकड़ों में आगे होते हुए भी मानवीय विकास में पिछड़ रहा है।
भारत का 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना निश्चित रूप से एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन यह सफलता की आधी कहानी है। जब तक यह आर्थिक प्रगति आम नागरिक के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में योगदान नहीं देती, और जब तक देश मानव विकास सूचकांक जैसे सूचकों पर वैश्विक मानकों के करीब नहीं पहुँचता, तब तक यह विकास अधूरा रहेगा।
भारत को अब आवश्यकता है एक ऐसे दृष्टिकोण की, जो केवल आर्थिक वृद्धि पर नहीं, बल्कि समावेशी, न्यायसंगत और स्थायी विकास पर केंद्रित हो — जहाँ न केवल देश का आकार बड़ा हो, बल्कि हर नागरिक का जीवन भी बेहतर हो।
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