सुलेखसंवाद
सुलेखसंवाद
June 6, 2025 at 07:01 AM
“मैसूरपाक” नहीं, अब कहिए “मैसूरश्री” — मिठास का शुद्धिकरण अभियान! सावधान रहिए, आपकी मिठाई “देशद्रोही” हो सकती है! जी हाँ, आपने अब तक जिस मिठाई को बड़े प्रेम से खाया—जिसका घी आपको डॉक्टर के पास ले गया, और जिसकी सुगंध ने पूरे मोहल्ले को दादी के घर की याद दिला दी—वह “मैसूरपाक”, अब शुद्ध भाषा प्रेमियों के रडार पर है। क्योंकि… उसमें “पाक” है। और “पाक” मतलब… पाकिस्तान? नहीं नहीं, इसका संस्कृत से कोई लेना-देना मत खोजिए! आजकल व्युत्पत्ति से ज्यादा वायरलता चलती है। कौन कहे कि “पाक” का संबंध “पक्व” या “पाकशास्त्र” से है, जब आप व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से सीख सकते हैं कि “पाक” बस एक दुश्मन देश है। अतः “पाक” शब्द भी “गद्दार” घोषित! इसलिए कुछ नवभाषाई राष्ट्रवादी राष्ट्र प्रेमी जिनके प्रेम और विमर्श में अपने देश की भाषा और पंरपरा समझने का कोई अंश नहीं ऐसे तथाकथित शुद्धतावादी सज्जनों ने प्रस्ताव रखा है कि अब से हम इसे “मैसूरश्री” कहें। आखिर “श्री” सुनने में कितना संस्कारी लगता है! अब चाहे व्याकरण बेहोश हो जाए या मिठाई का मूल अर्थ ही गल जाए, नाम तो वंदनीय हो गया न? यह परिवर्तन क्यों ज़रूरी है? क्योंकि अब भाषा वह नहीं जो हम बोलते हैं, भाषा अब वह है जो हमें कृत्रिम रूप से पवित्र लगे। अगर “पाक” कहने से कोई याद दिला दे कि संस्कृत में इसका मतलब ‘पकाना’ होता है, तो जवाब होगा: “हमें मतलब नहीं, हम भावना में जीते हैं।” पाककला विभाग अब से होगा “श्रीकला विभाग”। पाकशास्त्र अब “श्रीभोजन विज्ञान”। और ध्यान रहे, रसोईघर में अगर कोई ‘पाक’ बोलेगा, तो उसे देशभक्त चाय पर बुलाया जाएगा – बिना शक्कर, सिर्फ बुलडोज़र के स्वाद के साथ। भाषा का यह अल्पज्ञान कहाँ तक जाएगा? • पाकिट → अब से “जेबश्री” • पाकिस्तान → “अवांछनीय भूमि” • पाक कला → “आध्यात्मिक अग्नि संस्कार” भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं, वह एक सांस्कृतिक दस्तावेज होती है। शब्दों के अर्थ, उनका व्युत्पत्तिगत आधार और ऐतिहासिक संदर्भ, समाज की चेतना और सांस्कृतिक समझ को प्रकट करते हैं। इसी संदर्भ में जब हम “पाक” शब्द की बात करते हैं, तो यह महज किसी व्यंजन का पर्याय नहीं, बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक अवधारणा है। संस्कृत से निकला “पाक” शब्द मूलतः “पच्” धातु से बना है, जिसका अर्थ है पकाना या भोजन तैयार करना। “पाकशास्त्र”, “पाककला”, “पाकगृह”, “पाकविद्या” जैसे शब्दों में यह व्याप्त है। यही “पाक” शब्द दक्षिण भारत में एक प्रसिद्ध मिठाई के नाम – “मैसूरपाक” – में दिखाई देता है। खैर आने वाले समय में हो सकता है “गुलाबजामुन” पर भी गाज गिरे, क्योंकि “गुलाब” फारसी शब्द है। उसके लिए भी नया नाम सोचिए – “देशभक्त रसगोल्ला वर. 2.0”। भाषाई दुराग्रह अर्थ को नहीं, ध्वनि को देखकर शब्दों का बहिष्कार करता है। जिसे संस्कृत की ध्वनि प्यारी है पर उसका व्याकरण समझने की फुर्सत नहीं। जो “कला” को “कली” समझ बैठते हैं और “संस्कृति” को “सनातनी ड्रेसकोड”। “मैसूरपाक” का “श्रीकरण” भाषा का नहीं, मानसिकता का हास्य है।
😂 👍 ❤️ 8

Comments