
सुलेखसंवाद
June 8, 2025 at 02:59 PM
"आईपीएल की चमक में दबती जनता की साँसे: क्या हमें सिर्फ़ मौतें ही मिलनी हैं?"
साथियों,
आईपीएल 2025 का समापन हो चुका है। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) ने पहली बार ट्रॉफी जीतकर इतिहास रच दिया। पूरे देश में जश्न का माहौल था, ख़ासकर बेंगलुरु की सड़कों पर लाखों लोग RCB की जीत का जश्न मनाने के लिए उमड़ पड़े। लेकिन क्या आपने सुना कि इसी जश्न में कितने लोगों की जान चली गई?
हां, 3 जून की रात बेंगलुरु में भगदड़, धक्का-मुक्की और दम घुटने से लगभग 11 लोगों की मौत हुई और दर्जनों घायल हुए।
किसी को ऑक्सीजन नहीं मिली, किसी को वक्त पर अस्पताल नहीं पहुँचाया गया। प्रशासन पूरी तरह फेल रहा। भीड़ बेकाबू थी — और इस मौत की भी कोई पूछने वाला नहीं।
अब ज़रा सोचिए — जिस आयोजन से बीसीसीआई ने केवल इस साल ₹10,000 करोड़ के करीब की कमाई की, क्या उसमें जनता की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया जा सकता था?
और यहाँ तो राज्य सराकर भी ताल में ताल मिलाकर इसे मानों राज्य की टीम की तरह सेलीब्रेट करती नजर आई। तब भी व्यवस्था का फेलियर ही क्यों?
पैसे कहाँ से आए?
ब्रॉडकास्टिंग राइट्स से ₹9,678 करोड़ (₹130.7 करोड़ प्रति मैच)
TATA स्पॉन्सरशिप: ₹500 करोड़ प्रति साल
CEAT, Angel One, Aramco, Wonder Cement, आदि दर्जनों ब्रांडों से करोड़ों की अतिरिक्त कमाई
डिजिटल राइट्स (Viacom18) और टीवी राइट्स (Star Sports) से अलग-अलग रकम
बीसीसीआई को हर टीम की कमाई से भी हिस्सा मिलता है:
केंद्रीय राजस्व का 20%
लाइसेंसिंग रेवेन्यू का 12.5%
2024 में बीसीसीआई ने ₹20,686 करोड़ कमाए थे। लेकिन इन हज़ारों करोड़ में से आम जनता के लिए क्या है?
न कोई खेल सुविधा गाँव तक पहुँची,
न कोई स्टेडियम में सुरक्षा की गारंटी,
न कोई फ्री टिकट बच्चों के लिए,
और न ही कोई मुआवज़ा उन माता-पिता के लिए जिन्होंने जश्न में अपने बच्चों को खो दिया।
जनता के हिस्से क्या आया?
टिकट के लिए लंबी कतारें
स्टेडियम के अंदर बैठने की जद्दोजहद
धूप, भीड़, धक्का-मुक्की, और अंततः कुछ की मौत
RCB की जीत पर बेंगलुरु की सड़कों पर जो मौतें हुईं — क्या वो महज़ ‘दुर्घटना’ हैं?
नहीं।
वे हमारी व्यवस्था की असफलता और हमारे खेल तंत्र के लोभ का परिणाम हैं।
लोकप्रियता की फसल राजनेता से लेकर खिलाड़ी तक सब काटते हैं। लेकिन उसके लिए निवेश जिन लोगों पर करना चाहिए उन्हें बस दूध लेने के बाद बूढ़े चुके मवेशी की तरह छोड़ दिया जाता है। मीडीया को कुँभ के समय भी नैरेटिव गढना था तो चुप रहे गलत सूचना दी अब भी नैरेटिव गढ़ना है तो राज्य सरकार और उसके मुख्य घटक दल की गलती का माहौल बना रही है! ऐसा नहीं है कि उनकी गलती नहीं है लेकिन इतने पैसे से बीसीसीआई और तमाम आयोजकों ने क्रिकेट प्रेमियों के लिए क्या किया? जुएं की लत, सट्टे का खेल और भीड़ मे कुचल कर मरना स्टेडियम मे 20 की पानी की बोतल 100 मे बेचना! बस!
अब वक्त है सवाल पूछने का:
इतनी बड़ी कमाई के बावजूद सुरक्षा के लिए इंतज़ाम क्यों नहीं?
क्या IPL सिर्फ़ कॉरपोरेट का आयोजन है? या जनता की भागीदारी भी मायने रखती है?
क्या हमारी सरकार और बीसीसीआई को कोई जवाबदेही नहीं?
हम, आम नागरिकों को यह समझना होगा कि अगर हम केवल भीड़ बनकर रहेंगे, तो हमें केवल धक्के ही मिलेंगे — और कभी-कभी मौत भी।
IPL की चमक में हमारी ज़िंदगी सस्ती होती जा रही है।
क्या यही है "नया भारत"?
अब समय आ गया है कि हम खेल को तमाशा नहीं, जवाबदेह आयोजन बनाएं — जहाँ खिलाड़ियों की तरह दर्शकों की भी कद्र हो।
क्योंकि जब तक जनता की जान की कीमत नहीं होगी, तब तक हर जीत किसी की हार से ही सजी होगी।
सूचना के लिए साझा करें। यह सिर्फ खेल नहीं, हमारी ज़िंदगी का सवाल है।
❤️
🌻
🔥
😢
7