
Sanatan Kahaniya (Daily Story, कहानी, Kahani )
May 23, 2025 at 02:45 AM
. *एक अनोखे व श्रेष्ठ शिष्य की गुरुभक्ति गाथा*
मिलारेपा(शिष्य) की इच्छा तो पवित्र थी परन्तु वह जब तक गुरु के मार्गदर्शन में था तब तक सुरक्षित था। परन्तु जैसे ही वह किसी और के प्रभाव में आया तभी से उसके पतन का प्रारम्भ हो गया। इच्छा पवित्र हो परन्तु संगती गलत हो तो कभी काम नहीं बनेगा। तुम इस मार्ग पर चल रहे हो तो तुम्हारा मार्गदर्शक कौन है ?इसका बड़े ही सूक्ष्मता से विचार करना चाहिये। गुरु कोई आज्ञा करें और तुमको उन आज्ञाओं का पालन करने में तकलीफ महसूस होती हो या तुमको वह आज्ञा प्रतिकूल लगती हो तो समझो कि तुम उनके मार्गदर्शन में नहीं हो। तुम अपने मन के मार्गदर्शन में हो, विकारों के मार्गदर्शन में हो और ये विकार कभी उन्नतिकारक मार्गदर्शक नहीं हो सकते। जो इनको अपना मार्गदर्शन बनाता है या ऐसे कह लो कि गुरु के अलावा जो अन्य को अपना मार्गदर्शक बनाता है वह गुरुद्वार पर कैसे टिकेगा ? नहीं टिक पाएगा। मिलारेपा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
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प्यारे शिष्यो मेरा रोष धर्मयुक्त था वह दुनियावी क्रोध की तरह तपाने वाला नहीं था। मेरी सभी क्रियांऐं धर्मयुक्त, शिष्य के कल्याण के लिये, लोगों के कल्याण के लिये और मोक्ष मार्ग में अग्रसर करने के लिए हैं। प्यारो! जिनकी साधना अभी तक पूर्ण नहीं हुई हैI जो अभी तक अपनी मंज़िल तक पहुंचे नहीं हैI उनको कभी भी अपनी निष्ठा को डिगने से बचाना चाहिये। अपनी निष्ठा की जितनी सुरक्षा होगी उतनी ही स्वः की सुरक्षा होगी। अगर निष्ठा हिली तो समझना कि तुम्हारी जड़ें हिल गयीं। गुरु मारपा कहते हैं कि जब तक ज्ञान न हो तब तक अपनी निष्ठा को एकाकार रखना चाहिये। अगर मिलारेपा की गुरु में एकनिष्ठा होती तो अभी तक मिलारेपा को सिद्धि प्राप्त करने में इतनी देर ना लगी होती। मैंने मिलारेपा की नौ प्रकार की कसौटी करनी चाही परन्तु दगमे की ममता ने उसे उत्तीर्ण होने नहीं दिया। मिलारेपा ने तो मेरी आठ कसौटियों को पार करके लगभग अपने सारे पाप कर्मों को काट लिये परन्तु नौवीं कसौटी को पार नहीं कर पाया कचास रह गयी।
मिलारेपा मैं तुमको स्वीकार करता हूं। बेटे! मैं तो इसलिये यहां हूं कि शिष्य का कल्याण कर सकूं। तुम मेरे से दीक्षा लेने के लिए तड़पते रहे। तुम चाहते रहे कि मैं तुमको अपना शिष्य स्वीकार करूं परन्तु मिलारेपा मैं चाहता था कि जल्दी जल्दी तुम्हारे सभी कर्मों को नष्ट करके तुमको समस्त कर्म बन्धनों से मुक्त कर दूं। पगले तुझे स्वीकार ही किया था तभी तो तुझे अपनी आज्ञाओं में रखा। ज्यूं ही गुरु मारपा के ये वचन मिलारेपा ने सुना वह खुशी के मारे उछल पड़ा और गुरु मारपा के चरणों में गिर पड़ा। और अपने आंसुओं से गुरुदेव के चरणों को पखारने लगा। कितना सूंदर दृश्य है इस दृश्य को मिलारेपा ने ही पूरी तरह से अनुभव किया होगा। या तो कोई सत्शिष्य ही अनुभव कर पाता होगा जिसने स्वयं को ब्रह्मज्ञानी गुरु के चरणों में सर्मपित कर दिया है।
गुरु मारपा ने मिलारेपा को दीक्षित किया मुंडन करके उसे बोधी सत्व की उपाधि प्रदान की। गुरु मारपा ने मिलारेपा का नया नामकरण भी किया। “मिलावज्र”।
आगे गुरु मारपा ने खोलते हुए रहस्य बताया कि शुरुआत में मिलारेपा जब तुम मुझे खोज रहे थे तब तुम्हारे आने से पहले ही मुझे ज्ञात हो गया था कि तुम मेरे पास आने वाले हो। इसीलिए तो मैंने हल लेकर खेतों में मज़दूरी करने का स्वांग किया था। क्या तुम्हें याद है? और क्या तुमने मुझे उसके बाद खेतों में काम करते हुए फिर कभी देखा ? सिर्फ तुम्हारा हाथ पकड़कर लाने के लिए ही मैं वहां पहले से पहुंच गया था। और बात भी बिल्कुल सही है कि सभी को गुरुदेव ही तो ले आते हैं। आगे मारपा कहते हैं कि मुझे मालूम था तुम्हीं हो जो मेरे ज्ञान को मेरी विद्या को पूर्णतः आत्मसात करोगे।मिलारेपा तुम इतिहास में मेरे प्रमुख शिष्य के रूप में जाने जाओगे। मैंने तुम्हारे हीन कर्मों को जलाकर तुम्हें पाप मुक्त करने के लिये तुम्हारे से हवेली बनवाई। प्रत्येक बार तुमको शिष्यों के समूह से बाहर धकेल दिया परन्तु तुमने अपने मन में मेरे लिए कभी दुर्भाव उत्पन्न नहीं होने दिया। तुमने मुझसे निभाया है इसीलिए तुम्हारे जो भी शिष्य होंगे वे भी तुमसे निभाएंगे। गुरु मारपा ने मिलारेपा को ध्यान की प्रकिया बताई और मिलारेपा भूखा तो था ही। मिलारेपा की भूख भी बड़ी गजब की थी कि वर्षों तक बकरार ही रही। ऐसी भूख सभी शिष्य को होनी चाहिये। गुरु की युक्ति लेकर मिलारेपा गुरु आज्ञा से दक्षिण दिशा की एक गुफा में ध्यान करने लगा । प्रारम्भ में उसने मन और शरीर को स्थिर करने के लिए अपने सिर पर दीपक जला कर रखा और ध्यान शुरू किया। फिर तो मिलारेपा की बड़ी ही सुन्दर गति हो गयी ध्यान समाधि में। इस बार तो वह गहराइयों की अनुभूति में खोता चला गया।
कुछ समय पश्चात एक दिन गुरु मारपा अपने गुरुदेव से मिलने भारत आए उन्होंने मिलारेपा के बारे में बताया। गुरु मारपा के गुरुदेव थोड़े ध्यानस्थ हुए और बड़े ही उच्च स्वर में उन पहाड़ों की वादीयों में बोलने लगे दोनों हाथ ऊपर करके। वाह कैसा आश्चर्य है कि तिब्बत की अन्धकारमय धरती पर एक सूर्य के समान शिष्य साधना कर रहा है। धन्य है ऐसा शिष्य। तभी से भारत के उस स्थान के पर्वत का ऊपरी भाग और वहां के पेड़ पौधे तिब्बत की ओर झुक गए उसी दिशा में जहां मिलारेपा साधना कर रहा था। मानो ऐसे गुरुभक्त को प्रकृति भी प्रणाम कर रही हो। आज तक उसी दिन से भारत के पुलाहरी के पर्वत और वृक्ष उसी दिशा में झुके हुए मिलेंगे। जो मिलारेपा की गुरुभक्ति और गुरु निष्ठा का प्रमाण है।
धन्य है ऐसा गुरुभक्त आज भी बौद्ध धर्म की सभी शाखाएँ मिलारेपा को मानती हैं। कहते हैं कि कई देवताओं ने भी मिलारेपा को गुरु रूप में स्वीकार किया। आज भी तिब्बत के हर घर घर में मिलारेपा के स्त्रोत एवं प्राथनाओं का पाठ किया जाता है। ऐसे गुरुभक्त सत्शिष्य को हम सभी प्रणाम करते हैं और अपने गुरुदेव के चरणों में प्रार्थना करते हैं कि हम भी एकनिष्ठ बनें और गुरुदेव के बताये हुए मार्ग पर सच्चाई से चलते रहें ।
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