Sanatan Kahaniya (Daily Story, कहानी, Kahani )
Sanatan Kahaniya (Daily Story, कहानी, Kahani )
June 8, 2025 at 05:54 AM
*अगर हर रिश्ते को नकारते ही रहेंगे... तो फिर शादी कब करेंगे?* कम पढ़ा-लिखा है? — नहीं चाहिए! पगार कम है? — नहीं चाहिए! गाँव में रहता है? — नहीं चाहिए! अपना घर नहीं है? — नहीं चाहिए! सास-ससुर साथ रहते हैं? — नहीं चाहिए! खेती नहीं है? — नहीं चाहिए! खेती करता है? — नहीं चाहिए! व्यवसाय करता है? — नहीं चाहिए! दूर शहर में रहता है? — नहीं चाहिए! रंग सांवला है? — नहीं चाहिए! बाल झड़ चुके हैं? — नहीं चाहिए! कद छोटा है? — नहीं चाहिए! बहुत लंबा है? — नहीं चाहिए! चश्मा है? — नहीं चाहिए! उम्र में अंतर है? — नहीं चाहिए! इलाका पसंद नहीं? — नहीं चाहिए! एक ही नाड़ी है? — नहीं चाहिए! मंगल दोष है? — नहीं चाहिए! नक्षत्र दोष है? — नहीं चाहिए! मैत्री दोष है? — नहीं चाहिए! अगर हर बात में “ना” ही कहनी है, तो फिर शादी कब होगी? परिवार किसके साथ बसाएंगे? माँ-बाप कब बनेंगे? सास-ससुर, दादी-नानी कब बनेंगे? इतनी सारी बातों पर लड़के को नकारते समय क्या माता-पिता यह बता सकते हैं कि उनकी बेटी में कौन-से खास गुण हैं? आज कई लड़कियों को गृहस्थ जीवन की ज़िम्मेदारियों की समझ नहीं होती — न समझौता करना आता है, न परिवार को संभालना। और अगर बेटी पढ़ी-लिखी है, आत्मनिर्भर है, तो उससे बेहतर पढ़ा-लिखा, ऊँचे वेतन वाला, प्रॉपर्टी वाला वर चाहिए — वरना हर रिश्ता ठुकरा दिया जाता है... और उम्र बढ़ती जाती है। इस सबसे सबसे ज़्यादा नुकसान उन अच्छे स्वभाव और संस्कारी लड़कों का हो रहा है, जिनकी आमदनी कम है। क्या शादी से पहले ही लड़के के पास सब कुछ होना ज़रूरी है? कई लड़के दिल से जीवनसाथी चाहते हैं, पर लड़कियों और उनके परिवारों की “परफेक्ट रिश्ता” वाली परिभाषा में वो फिट नहीं बैठते। क्या यह ज़रूरी नहीं कि हम लड़के की कमाई नहीं, बल्कि उसके हुनर और मेहनत पर भरोसा करें? लड़कों को भी अपने सपने पूरे करने, आगे बढ़ने के लिए आत्मबल और साथ चाहिए — वो कौन देगा? आजकल शादी, लड़की और लड़के से ज़्यादा उनके माँ-बाप और रिश्तेदारों के लिए “स्टेटस सिंबल” बन गई है। "मेरा दामाद डॉक्टर है, इंजीनियर है, लाखों का पैकेज है..." — यही दिखाने की होड़ मची है। लेकिन अगर सभी ऐसी ही अपेक्षाएं रखेंगे, तो बाकी साधारण लेकिन अच्छे लड़कों का क्या होगा? उनकी शादी कैसे होगी? जिस दिन से शादी में इंसान से ज़्यादा डिग्री, पैसा, प्रॉपर्टी को महत्व मिलने लगा, उसी दिन से रिश्तों में कलह, तलाक और असंतोष भी बढ़ने लगा। शादी में भौतिक सुख से ज़्यादा ज़रूरत होती है मानसिक सहारे की, समझदारी की, और एक-दूसरे को स्वीकारने की। माता-पिता अपने बच्चों की खुशी ज़रूर चाहें, लेकिन उनके बढ़ते हुए उम्र और बीतते समय का भी ध्यान रखें। कहीं तो रुकना होगा, कहीं तो समझौता करना होगा, क्योंकि अपेक्षाएं कभी पूरी नहीं होतीं — वे सिर्फ बढ़ती जाती हैं। यही जीवन का कटु सत्य है ।
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