
ISKCON BHOPAL BYC
June 6, 2025 at 03:30 AM
जिस प्रकार एक गाय को नाक में लंबी रस्सी से बाँधकर नियंत्रित किया जाता है, उसी प्रकार मनुष्य भी विभिन्न वैदिक नियमों द्वारा बँधा हुआ होता है और परमेश्वर के आदेशों का पालन करने के लिए विवश होता है। हर जीव चाहे वह मनुष्य हो, पशु हो या पक्षी यह सोचता है कि वह स्वतंत्र है, लेकिन वास्तव में कोई भी भगवान के कठोर नियमों से मुक्त नहीं है। भगवान के नियम कठोर होते हैं क्योंकि किसी भी परिस्थिति में उनका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। मनुष्यों द्वारा बनाए गए कानूनों को चालाक अपराधी धोखा दे सकते हैं, लेकिन परम नियमनिर्माता के नियमों में तनिक भी अवहेलना की कोई संभावना नहीं है। ईश्वर द्वारा बनाए गए नियमों की मार्गरेखा से थोड़ी सी भी विचलन एक बड़े संकट को जन्म दे सकती है, जिससे उस नियमभंगकर्ता को सामना करना पड़ता है। ऐसे सर्वोच्च नियमों को सामान्यतः धर्म के सिद्धांतों के रूप में जाना जाता है, जो विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग रूपों में प्रकट होते हैं, परंतु धर्म का मूल सिद्धांत सर्वत्र एक ही है परमेश्वर के आदेशों का पालन करना। यही भौतिक जीवन की स्थिति है। इस भौतिक जगत में सभी जीवों ने स्वयं की इच्छा से बंधनयुक्त जीवन जीने का जोखिम उठाया है और इस प्रकार वे प्रकृति के नियमों के जाल में फँस गए हैं। इस बंधन से बाहर निकलने का एकमात्र उपाय यह है कि हम परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए सहमत हो जाएँ।
श्रीमद् भागवतम् 1.13.42 के तात्पर्य से
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